लाई डेटेक्टर टेस्ट, जिसे पॉलिग्राफ टेस्ट भी कहा जाता है, एक प्रकार का वैज्ञानिक परीक्षण है जिसका उपयोग किसी व्यक्ति के सत्य बोलने या झूठ बोलने का पता लगाने के लिए किया जाता है। इस परीक्षण में व्यक्ति के शारीरिक प्रतिक्रियाओं जैसे कि रक्तचाप, नाड़ी दर, श्वसन दर, और त्वचा के संचालन की माप की जाती है। लाई डेटेक्टर टेस्ट का उपयोग मुख्यतः अपराध जाँच, सरकारी और निजी क्षेत्र में सत्यापन परीक्षणों में किया जाता है।
निर्माण और विकास
लाई डेटेक्टर टेस्ट का आविष्कार अमेरिका में किया गया था। इसका प्रारंभिक रूप 1921 में जॉन ए. लार्सन, एक पुलिस अधिकारी और फिजियोलॉजिस्ट, द्वारा विकसित किया गया था।
उपयोग के क्षेत्र
- अपराध जाँच: पुलिस और अन्य जाँच एजेंसियाँ इसका उपयोग अपराधियों की जाँच के लिए करती हैं।
- न्याय प्रणाली: अदालतों में गवाहों की सत्यता की जाँच के लिए।
- सरकारी विभाग: सरकारी कर्मचारियों और उम्मीदवारों के सत्यापन के लिए।
- निजी क्षेत्र: निजी कंपनियाँ कर्मचारियों की जांच और सत्यापन के लिए।
- मनोवैज्ञानिक अनुसंधान: विभिन्न मनोवैज्ञानिक प्रयोगों और अनुसंधानों में।
लाई डेटेक्टर टेस्ट क्या है?
लाई डेटेक्टर टेस्ट, जिसे पॉलिग्राफ टेस्ट भी कहा जाता है, एक वैज्ञानिक उपकरण है जो किसी व्यक्ति के शारीरिक प्रतिक्रियाओं को मापकर यह निर्धारित करने की कोशिश करता है कि वह व्यक्ति सच बोल रहा है या झूठ। इस उपकरण का उपयोग आमतौर पर पुलिस और अन्य जाँच एजेंसियों द्वारा किया जाता है। पॉलिग्राफ उपकरण विभिन्न शारीरिक मापदंडों जैसे कि रक्तचाप, नाड़ी दर, श्वसन दर, और त्वचा की विद्युत चालकता को मापता है। जब व्यक्ति कोई सवाल का जवाब देता है, तो इन मापदंडों में होने वाले परिवर्तन रिकॉर्ड किए जाते हैं और उनका विश्लेषण किया जाता है ताकि यह पता चल सके कि व्यक्ति सच बोल रहा है या झूठ।
लाई डेटेक्टर टेस्ट का इतिहास और निर्माण
लाई डेटेक्टर टेस्ट का आविष्कार अमेरिका में हुआ था। इसका प्रारंभिक रूप 1921 में जॉन ए. लार्सन, जो एक पुलिस अधिकारी और फिजियोलॉजिस्ट थे, द्वारा विकसित किया गया था। लार्सन ने यह उपकरण बर्कले, कैलिफोर्निया पुलिस विभाग के लिए बनाया था। यह उपकरण बाद में लार्सन के सहकर्मी लियोनार्ड कीलर द्वारा और अधिक परिष्कृत किया गया, जिन्होंने 1930 के दशक में पॉलिग्राफ में सुधार किए और इसे व्यावसायिक रूप से उपलब्ध कराया।
लाई डेटेक्टर टेस्ट का उपयोग
- अपराध जाँच: पुलिस और अन्य जाँच एजेंसियाँ लाई डेटेक्टर टेस्ट का उपयोग अपराधियों की जाँच और उनसे पूछताछ के लिए करती हैं। यह उपकरण संदिग्धों और गवाहों की सत्यता की जाँच करने में मदद करता है।
- न्याय प्रणाली: कुछ न्यायालयों में लाई डेटेक्टर टेस्ट का उपयोग गवाहों की सत्यता की जाँच के लिए किया जाता है। हालांकि, यह हर देश में कानूनी रूप से मान्यता प्राप्त नहीं है और इसके परिणामों को हमेशा प्रमाणिक नहीं माना जाता।
- सरकारी विभाग: सरकारी विभाग और एजेंसियाँ उम्मीदवारों और कर्मचारियों के सत्यापन के लिए लाई डेटेक्टर टेस्ट का उपयोग करती हैं। उदाहरण के लिए, गुप्तचर एजेंसियाँ और रक्षा विभाग इस परीक्षण का उपयोग अपने कर्मचारियों की सत्यता की जाँच करने के लिए कर सकते हैं।
- निजी क्षेत्र: कुछ निजी कंपनियाँ और संगठनों द्वारा कर्मचारियों की भर्ती और सत्यापन के लिए लाई डेटेक्टर टेस्ट का उपयोग किया जाता है। यह विशेष रूप से उन नौकरियों में किया जाता है जहाँ सत्यता और विश्वसनीयता अत्यधिक महत्वपूर्ण होती है।
- मनोवैज्ञानिक अनुसंधान: लाई डेटेक्टर टेस्ट का उपयोग विभिन्न मनोवैज्ञानिक प्रयोगों और अनुसंधानों में भी किया जाता है। इससे वैज्ञानिकों को मानव व्यवहार और मनोवैज्ञानिक प्रतिक्रियाओं को समझने में मदद मिलती है।
लाई डेटेक्टर टेस्ट की विश्वसनीयता और आलोचना
लाई डेटेक्टर टेस्ट की विश्वसनीयता पर हमेशा से विवाद रहा है। कई वैज्ञानिक और कानूनी विशेषज्ञ मानते हैं कि यह उपकरण पूरी तरह से विश्वसनीय नहीं है और इसके परिणाम हमेशा सही नहीं होते। शारीरिक प्रतिक्रियाएँ सिर्फ व्यक्ति की भावनात्मक स्थिति को दर्शाती हैं, न कि उसके द्वारा बोले गए शब्दों की सत्यता को। इसके अलावा, कुछ लोग इस उपकरण को धोखा देने में सक्षम होते हैं और उनकी झूठी प्रतिक्रियाएँ भी सत्य के रूप में प्रकट हो सकती हैं।
लाई डेटेक्टर टेस्ट एक महत्वपूर्ण उपकरण है जिसका उपयोग कई क्षेत्रों में किया जाता है, लेकिन इसकी विश्वसनीयता पर संदेह बना रहता है। यह उपकरण व्यक्ति की शारीरिक प्रतिक्रियाओं को मापकर सच और झूठ का पता लगाने की कोशिश करता है, लेकिन इसके परिणामों को हमेशा प्रमाणिक नहीं माना जा सकता। फिर भी, यह उपकरण कई मामलों में उपयोगी साबित हुआ है और इसकी मदद से कई जाँचों में महत्वपूर्ण जानकारी प्राप्त की गई है।
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