आंवले की खेती-हमारे भोजन में फलों का विशेष महत्व है। फलों से हमें भरपूर मात्रा में विटामिन तथा खनिज प्राप्त होते हैं। आंवला एक उपयोगी फल है। इसमें विटामिन-सी अच्छी मात्रा में पाया जाता है। यह फल स्वास्थ्य की दृष्टि से बहुत ही उपयोगी माना जाता है। आंवला से अचार, मुरब्बा, चटनी के अलावा फल को सुखाकर, चूर्ण बनाकर उपयोग किया जाता है। आंवले के बीज से तेल निकाला जाता है। आंवले को भारतीय गूजबेरी के नाम से भी जानते हैं।
- जलवायु: आंवाला की खेती नम तथा सूखी दोनो प्रकार की जलवायु में सफलता पूर्वक हो सकती है। इसके वृक्ष तराई से लेकर पहाड़ों तक 1200 मीटर की ऊंचाई पर उगे दिखाई देते हैं।
- मिट्टी: आंवला हल्की तथा भारी दोनो तरह की मिट्टी में उगाया जा सकता है। अच्छे उत्पादन के लिए उपजाऊ दोमट मिट्टी सर्वोत्तम मानी जाती है।
- किस्में: आंवले की व्यापारिक स्तर पर दो किस्में प्रचलित हैं। चकैया तथा बनारसी, इसके अलावा देशी किस्में भी हैं। कुछ नवीनतम व्यावसायिक किस्में-कंचन, चकैया, फान्सिस, नरेन्द्र आंवला-4, कृष्णा, सोलेक्सन-7, नरेन्द्र-3, नरेन्द्र-5 आदि किस्में हैं।
उगाने की विधि
आंवले को पहले बीज द्वारा उगाया जाता था। जिससे फल छोटे आकार में खराब किस्म के पैदा होते थे। इस समया इसका प्रसारण वानस्पतिक विधियों द्वारा किया जाता है। आंवला कलिकायन विधि तथा इनाचिंंग विधि द्वारा तैयार किया जाता है। इसमें कालिकायन विधि सबसे सफल मानी जाती है। इस विधि द्वारा तैयार पौधे को जुलाई महीने में गड्ढों में 9×9 मीटर की दूरी पर लगाना चाहिए।
खाद एवं उर्वरक
आंवले की अच्छी वानस्पतिक वृद्ध के लिए छोटे पौधे को 20 किग्रा अच्छी सड़ी गोबर की खाद तथा 200 ग्राम अमोनियम सल्फेट प्रति वृक्ष-प्रति वर्ष देना अच्छा होता है। पौधों पर फलू आने से पहले 500-600 ग्राम सुपर फॉस्फेट प्रति वृक्ष-प्रति वर्ष देना उचित समझा जाता है। खाद सितंबर से अक्टूबर महीने में देनी चाहिए।
सिंचाई
गर्मी के मौसम में छोटे पौधों की 10-15 दिन के अंदर पर सिंचाई करनी चाहिए। फल देने वाले वृक्षों को अप्रैल से जून तक पानी की नियमित रूप से आवश्यकता होती है। इससे फल भी नहीं गिरते और उपज अच्छी होती है। आंवले में 20-25 दिन के अंतराल पर आवश्यकता के अनुसार सिंचाई करते रहना चाहिए।
कटाई और छंटाई
आंवले में कटाई-छंटाई की विशेष आवश्यकता नहीं पड़ती। जेसे सूखी तथा रोग ग्रसित शाखाओं को निकालते रहना चाहिए।
मृदा प्रबंध
आंवले के बाग में समय-समय पर निराई-गुड़ाई करना उचित होता है। मृदा की उर्वरा शक्ति बनाये रखने के लिए वर्षा ऋतु में उड़द, मूंग, लोबिया आदि फसलें हरी खाद के रूप में लेनी चाहिए, जिससे मिट्टी की उर्वरा शक्ति के साथ अच्छी फलत मिल सके।
पुष्पन और फलन
दिसंबर-जनवरी महीने में पौधे की पत्तियां गिर जाती हैं। मार्च-अप्रैल में नई पत्तियां तथा पुष्प निकलते हैं। पुष्प, पत्ती के कक्ष से निकलते हैं तथा बसंत ऋतु में फलन प्रारंभ हो जाता है। फल वर्षा ऋतु से प्रारंभ होकर नवंबर, दिसंबर में तैयार हो जाते हैं। अच्छी फसल के लिए बीच-बीच में देशी किसमें भी लगानी चाहिए, इससे परागण अच्छा होता है।
गुड़ाई
दक्षिण भारत के कुछ क्षेत्रों में पूरे वर्ष भर फल मिलते रहते हैं जबकि उत्तर भारत में फल नवंबर-दिसंबर में मिलते हैं। पूर्ण विकसित तथा परिपक्व वृक्ष 2.5 से 3 क्विंटल फल प्राप्त होते हैं।
हानिकारक कीट
सामान्य तौर पर आंवले में कीट तथा रोग अधिक नहीं लगते हैं। कुछ कीट पौधों को हानि पहुंचाते हैं, जैसे छाल भक्षी इल्ली तना और शाखाओं की छाल खाकर उसको क्षति पहुंचाती है तथा ऊपरी भाग पर छल्ले की तरह निशान बन जाता है। प्रभावित भाग को एल्ड्रिन से उपचारित करना चाहिए या 0.05% मैलाथियान का छिड़काव करना चाहिए। अगस्त-सितंबर महीने में छोटी इल्ली प्ररोहो में प्रवेश कर पौधे के तने तथा शाखाओं को नुकसान पहुंचाती है। इसकी रोकथाम के लिए पेट्रोल या मिट्टी का तेल सुराख में डाल कर बंद कर देना चाहिए।
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