कलयुग का आदर्श मार्ग
शास्त्रों के अनुसार, कलयुग में कर्म को विशेष प्रधानता दी गई है। कलयुग, जो कि वर्तमान युग है, को हिन्दू धर्मग्रंथों में एक ऐसा समय बताया गया है जब धर्म, सत्य, और नैतिकता में गिरावट आती है। इस युग में धार्मिक अनुष्ठानों और तपस्या की शक्ति कम हो जाती है और व्यक्ति के कर्म ही उसकी पहचान और सफलता का मुख्य आधार बन जाते हैं।
शास्त्रीय प्रमाण
- भगवद्गीत: भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को कर्मयोग का उपदेश देते हुए कहा कि “कर्म ही पूजा है” और “कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन”। इसका अर्थ है कि व्यक्ति को केवल कर्म करने का अधिकार है, फल की चिंता नहीं करनी चाहिए। यह उपदेश कलयुग में विशेष रूप से महत्वपूर्ण माना गया है।
- महाभारत: महाभारत में भी कहा गया है कि कलयुग में व्यक्ति को अपने कर्मों के आधार पर ही फल प्राप्त होगा। अच्छे कर्म करने वाले व्यक्ति को सुख और समृद्धि मिलती है, जबकि बुरे कर्म करने वाले को कष्ट और दुख का सामना करना पड़ता है।
- श्रीमद्भागवत पुराण: इस पुराण में भी वर्णित है कि कलयुग में अन्य युगों की तुलना में व्यक्ति के कर्मों का महत्व अधिक होता है। कलयुग में तपस्या, यज्ञ, और अन्य धार्मिक क्रियाएं उतनी प्रभावी नहीं होतीं, जितनी कि सतयुग, त्रेतायुग, और द्वापरयुग में होती थीं। इसलिए, कर्म का महत्व अधिक हो जाता है।
कलयुग में कर्म का महत्व
कलयुग में व्यक्ति के कर्म ही उसकी पहचान बनते हैं। अच्छे कर्म करने से व्यक्ति को समाज में सम्मान और प्रतिष्ठा मिलती है। कर्म ही वह साधन है जिससे व्यक्ति अपने जीवन को सफल बना सकता है और मोक्ष की प्राप्ति कर सकता है। कलयुग में भाग्य और संयोग से अधिक व्यक्ति के प्रयास और कर्मों को प्रधानता दी जाती है।
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शास्त्रों में कलयुग में कर्म की प्रधानता को स्पष्ट रूप से बताया गया है। यह संदेश हमें प्रेरित करता है कि हम अपने कर्मों पर ध्यान दें और सदैव अच्छे कर्म करने का प्रयास करें।
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