Monday, June 16, 2025

गुरूड़ासन: शारीरिक और मानसिक लाभों का खजाना

गुरूड़ासन: पक्ष‍ियों में सबसे व‍िशाल, सबसे अध‍िक शक्‍त‍िशाली और सूक्ष्‍म दृष्‍ट‍ि के लिए ‘गरूड़’ का नाम ल‍िया जाता है। आज का ग‍िद्ध पक्षी गरूण का ही लघु रूप माना जाता हैं। अपनी विश‍िष्‍ट क्षमताओं और समर्पण-भाव के लिए प्रस‍िद्ध गुरूड़ भगवान विष्‍णु के प्रिय वाहन का स्‍थान प्राप्‍त कर सका था। इन्‍हीं व‍िश‍िष्‍टताओं को दर्शाने वाले योगासन को इसल‍िए गरूड़ के नाम पर ‘गरूड़ासन’ नाम द‍िया गया है।

गरूड़ासन के लाभ
  • साइट‍िका में लाभकारी आसन है।
  • हाइड्रोसील, अंडकोषों में वृद्ध‍ि और प्रॉस्‍टेट ग्रंथ‍ि बढ़ने पर हितकारी आसन है।
  • हाथ-पैरों की अस्‍थ‍ियों को सुदृढ़ व न‍िरोग करता है। इनकी सहनशीलता और क्षमता में वृद्ध‍ि करता है। हाथ-पैरों की मांसपेश‍ियों तथा नस-नाड़‍ियों को स्‍वस्‍थ व सक्षम बनाता है।
  • शरीर के संतुलन तथा मानस‍िक धैर्य में वृद्ध‍ि कर समझ को पैना बनाता है।
गरूड़ासन की व‍िध‍ि

पैर के दोनों अंगूठे तथा एड़यिां आपस में सटाकर, ब‍िल्‍कुल सीधे तनकर खड़े हो जाएं। दोनों हाथों को शरीर के सामन की ओर छाती के बराबर अंतर की दूरी रखते हुए पृथ्‍वी के समानांतर आगे बढ़ाइए। अब दाह‍िने हाथ को बाएं हाथ की कोहनी के नीचे से निकालते हुए कलाई तथा हथेली को शरीर के समानांतर ऊपर की ओर उठाइए। इस स्‍थि‍त‍ि में दोनों हाथ आपस में इस प्रकार गुंथ जाएंगे, जैसे कोई बेल क‍िसी वृक्ष के चारों ओर ल‍िपटकर ऊपर चढ़ती है। इसी तरह गुंथे हुए दोनों हाथों को हथेल‍ियों को आमने-सामने से इस प्रकार मिलाइए कि प्रणाम की मुद्रा बन जाए। अब शरीर का संतुलन बनाए बनाए रखते हुए दाह‍िने पैर को सामने की ओर सीधा फैलाइए। इस फैले- बढ़े हुए पैर को थोड़ा बाईं ओर झुकाकर दाह‍िने जांघ की बाईं जांघ पर ट‍िका दीज‍िए। दाह‍िने घुटने को भीतर की ओर मोड़ते हुए, दाहि‍ने पैर के पंजे से बाएं पैर की पिंडली को दबाते हुए दाह‍िने ओर से बाहर निकालने का प्रयास कीज‍िए। अब आपके दोनो पैर भी आपस में लता-वृक्ष की तरह आपस में ब‍िल्‍कुल गुंथी हुई स्‍थ‍ित‍ि में लिपट जाएंगे। पैरों के आपस में गुंथ जाने पर मिली हुई हथेल‍ियों को अपनी नाक से अवश्‍य सटा लीज‍िए। यही गुरूड़ासन की पूर्ण स्‍थ‍ित‍ि है।

गरूड़ासन के लिए खास ट‍िप्‍स

इस आसन के दौरान हाथ-पैरों के आपस में बुरी तरह गुंथ जाने से पेश‍ियों में अत्‍याध‍िक ख‍िंचाव उत्‍पन्‍न होने से शीघ्र दर्द सा होने लगात है तथा रक्‍त संचार भी रूकता है। इसल‍िए सभी याेग अभ्‍यास करने वालों को सलाह दी जाती है कि इस आसन को शुरूआती समय में ज्‍यादा समय के लिए नहीं करें, बल्क‍ि धीरे-धीरे अभ्‍यास और अवध‍ि में वृद्ध‍ि करते जाएं।

गरूड़ासन कितनी देर तक करें

कई रोगों के उपचार के लिए तथा कुछ कठ‍िन साधनाओं के लिए इसक अवध‍ि का क्रम धीरे-धीरे बढ़ाते हुए आधे घंटे तक किया जा सकता है।


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