Monday, May 20, 2024

जर्मनी के तानाशाह एडोल्‍फ हिटलर के पूर्वज, जान‍िए उनके वंश का संघर्ष

दूसरे विश्‍व युद्ध को जन्‍म देने वाले, नाजी पार्टी के निर्माता जर्मनी के तानाशाह एडोल्‍फ हिटलर का जन्‍म 20 अप्रैल 1889 में हुआ था। जहां हिटलर का जन्‍म लिया, वह ऑस्ट्रिया का एक छोटा सा कस्‍बा था। जिसका नाम ‘ब्राउनाद-आन-इन’ था। एडोल्‍फ हिटलर के परदादा का नाम ‘मार्टिन हिटलर था। इनका जन्‍म 1762 में वाल्‍टर श्‍लेग में हुआ था। मार्टिन हिटलर का बचपन वाल्‍टर श्‍लेग में ही बीता, जैसे ही वह युवावस्‍था में पंहुचे, ‘स्‍पीटल’ चले आये और वहीं रहने लगे और अंत तक यहीं रहे। यहां तक कि 1889 में जब उनका निधन हुआ, तब भी वह वहीं रहते थे।

मार्टिन हिटलर का एक ही पुत्र था, जिनका नाम जोहानन जार्ज हिटलर था। जार्ज की जन्‍म तिथि अज्ञात है। जोहानन जार्ज हिटलर को घूमने फिरने में बहुत रूचि थी। देशाटन के दौरान ही उनकी भेंट ‘अन्‍ना मारिया’ नामक एक युवति से हुई। उन्‍होंने अन्‍ना मारिया को अपने घर में एक नौकरानी की हैसियत से रख लिया। जोहानन जार्ज हिटलर अन्‍ना मारिया से प्रेम करने लगे थे। इसका परिणाम यह हुआ कि अन्‍ना मारिया कुंआरी मां बन गयी। उसने 1837 में एक पुत्र को जन्‍म दिया जिसका नाम उन्‍होंने अलोइस रखा।

अन्‍ना मारिया और जोहानन जार्ज हिटलर ने जब विधिवत एक दूसरे से विवाह किया, तब अलोइस की आयु पांच वर्ष थी। विवाह के बाद भी अलाइस के नाम के आगे स्क्कि ग्राडवर ही चलता रहा। उसकी मां ने अपने पुत्र को वैधता प्रदान करने के लिये कोई पहल नहीं की थी। अलोइस अगले कई साल तक अपने नाम के साथ अपनी मां का नाम जोड़ता रहा। एक दिन उसके पिता के भाई ने पादरी से आग्रह करके अलोइस स्क्कि ग्राडवर के स्‍थान पर ‘अलोइस हिटलर’ कर दिया जाये।

पादरी ने जार्ज के भाई की इच्‍छानुसार जन्‍म रजिस्‍टर में संशोधन कर दिया। इस तरह अलोइस स्क्कि ग्राडवर का नाम अलोइस हिटलर हो गया। अलोइस बचपन से ही बहुत परिश्रमी थे। उनका परिवार बहुत ही निर्धन था। मात्र 13 वर्ष की उम्र में ही उन्‍होंने अपने परिवार की आर्थिक तंगी से तंग आकर परिवार का साथ छोड़ दिया था। उनकी कम आयु को देखते हुए लोगों ने उन्‍हे वापस घर लौटने को कहा। उन्‍होंने किसी की बात नहीं सुनी और कुछ सीखने की इच्‍छा लेकर वह वियाना आ गये। वह जूते बनाने का हुनर सीखने के लिए वियाना आये थे। जिस समय उन्‍होने घर छोड़ा उनकी जेब में मात्र तीन ‘गुलडैन’ थे।

घर से निकलने के बाद अगले चार वर्षों तक उन्‍होंने कारीगरी की ट्रेनिंग प्राप्‍त की। उस समय का तेरह वर्ष का किशोर 17 वर्ष की युवावस्‍था में पहुंच चुका था। उन्‍होंने शहर में महसूस किया कि सरकारी नौकरी की बेहद महत्ता है। सरकारी नौकरी में पैसा और आराम तो था ही, साथ ही सम्‍मान भी बहुत था। अन्‍य किसी काम में इतनी सुविधाएं नहीं थीं। यही सोच कर वह सरकारी नौकरी को हासिल करने में लग गये। तेइस-चौबीस वर्ष की आयु में उन्‍हें असैनिक सरकारी संस्‍थान में नौकरी मिल गयी।

अपने उद्देश्‍य व निश्‍चय को प्राप्‍त करने के बाद उसे अपने कस्‍बे की याद सताने लगी। जब वह गांव वापस आया तो उसके गांव में कोई ऐसा व्‍यक्ति नहीं मिला जो उसके बचपन से परिचित हो। अलोइस को हाथ पर हाथ धरे बैठना कतई पसंद नहीं था। वह हर वक्‍त किसी न किसी काम में लगे ही रहते थे। यहां तक कि जब छप्‍पन वर्ष की आयु में उन्‍हें सेवा-कार्य से निवृत किया गया, तब भी उन्‍होंने खाली हाथ बैठना पसंद नहीं किया। अपने समय का सदुपयोग करने के लिये उन्‍होंने खेती-बाड़ी करने पर विचार किया और आस्ट्रिया के बाहरी भाग में लम्‍बांच नामक स्‍थान पर एक फार्म खरीद लिया। इस फार्म में अलोइस खुद धरती का सीना चीर कर फसल उगाता था।

ब्राउनाद-आन-द-इन शहीदों के कारण एक बहुत ही सम्‍माननीय कस्‍बा था। यह छोटा सा कस्‍बा हिटलर के लिए और वर्तमान पीढ़ी के लिए प्रेरणा स्‍त्रोत एवं उपयोगी था। हिटलर को अपने इस छोटे से कस्‍बे पर गर्व था। क्‍योंकि यहां लगभग सौ वर्ष पूर्व एक सच्‍चे राष्‍ट्रवादी तथा फ्रांसीसियों के शत्रु ‘जाहन्‍ज पल्‍म’ को मृत्‍यु-दण्‍ड दिया गया था। जाहंज पल्‍म पेशे से पुस्‍तक विक्रेता था और उसका अपराध मात्र इतना था कि वह जर्मनी से बहुत प्रेम करता था। जाहंज पल्‍म ने अपनी मृत्‍यु को सामने देखकर भी उसने अपने साथियों के नामां को नहीं बताया था और चुपचाप देश के लिये बलिदान दे दिया। इस घटना ने पूरे जर्मनी को झकझोर कर रख दिया।

उस जमाने में जर्मनवासी गुलाम होने की मानसिक यन्‍त्रणा से गुजर रहे थे, अपनी स्‍वतंत्रता के‍ लिए संघर्ष कर रहे थे। इसी संघर्ष ने 1800 में ‘जर्मनी का घोर’ नामक एक पुस्‍तक प्रकाशित हुई। जिसके वितरण के कार्य में ‘जाहन्‍जफि‍लिया पल्‍म’ नामक युवक का बहुत बड़ा योगदान रहा। इसके अपराध में उसे गिरफ्तार करके फ्रांसीसियों को सौंप दिया गया। पल्‍म को गिरफ्तार कराने में एक बवेरियन एजेन्‍ट का हाथ था। पल्‍म पर मुकदमा चलाया गया। पल्‍म ने अपने जान की परवाह न करते हुए उसने पुस्‍तक के लेखक का नाम नहीं बताया। जिस कारण 26 अगस्‍त 1806 को उसे गोली से उड़ा दिया गया। पल्‍म की तरह ही ल्‍यूश्‍लागेटर का प्रकरण भी लगभग कुछ ऐसा ही है। 1814 में उसे एक तोपखाने का अधिकारी बना कर सेना में भर्ती किया गया था। ल्‍यूश्‍लागेटर दोनों श्रेणियों में ”आयरन क्रास” जीते थे।

1823 में फ्रांस द्वारा शहर पर अधिकार कर लेने पर उसे जर्मनी की तरफ से सत्‍याग्रह किया तथा फ्रांस में कोयला जाने से रोकने के लिए अपने मित्रों के साथ मिलकर उसने एक पुल उड़ा दिया। एक जर्मन जासूस इन सबको फ्रांसीसियों द्वारा गिरफ्तार करवा दिया। ल्‍यूश्‍लागेटर ने अपने समस्‍त साथियों को बचाने के लिए सारा आरोप अपने सिर ले लिया। इस कारण उसे मौत की सजा हुई, और उसके मित्र को अलग-अलग अवधि का कारावास और सजा मिली। इन शहीदों के कारनामे हिटलर के आने वाले जीवन के लए प्रेरणा स्‍त्रोत बने।

 

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