History of Gems: रत्न विभन्न प्रकार के रासायनिक तत्वों के मेल से विभिन्न स्थानों पर इनका जन्म होता है। रत्नों में मुख्य रूप से कार्बन, एल्यूमीनियम, बेरियम, बेरेलियम, कैल्शियम, तांबा, हाइड्रोजन, लोहा, फास्फोरस, मैग्नीज, पोटैशियम, गंधक, सोडियम, टिन, र्कोनियम, जिंक तत्व पाये जाते हैं।
कुछ रत्नों को निर्माण वनस्पति के रस से होता है, जैसे मूंगा और मोती। मूंगा समुद्र में लकड़ी के रूप में पाया जाता है। कटिंग, तराशने और पॉलिश के बाद यह देखने योग्य होता है। कोई व्यक्ति समुद्री लकड़ी देखकर नहीं पहचान सकता। मूंगा की लकड़ी जापान में अधिक पायी जाती है। मोती तथा मूंगा जैविक है तथा ‘तृण मणि’ तथा ‘जेट’ की गणना वनस्पतिक रत्नों में की जाती है।
खनिज रत्नों की खानें होती हैं। जैविक रत्नों को समुद्र से निकाला जाता है। वनस्पतिक रत्नों को वन पर्वतों से प्राप्त किया जाता है। पर्वतों की चट्टाटानों तथा नदियों की तलहटी में भी अनेक प्रकार के रत्न पाये जाते हैं। कृत्रिम रत्नों का निर्माण बहुत प्राचीन काल से होता चला आया है। आज के युग में तो बहुत बड़े पैमाने में चल रहा है।
कुछ रत्न प्लास्टिक के तथा अन्य पत्थरों के होते हैं, जिन्हें पहचानने में जौहरी भी धोखा खा जाते हैं। हलांकि गुण और प्रभाव में कृत्रिम रत्न प्राकृतिक रत्नों का मुकाबला करने में सक्षम नहीं होता। आज भी प्राकृतिक रत्नों का महत्व बना हुआ है। नकली तो नकली ही होता है। ये जौहरियों के नजर में तुरंत पकड़ में आ जाता है। जन साधारण भी पानी में डालकर उसकी सत्यता परख सकते हैं।
असली का रंग-रूप ठोस सत्यता वैसी ही रहती है, पर नकली में फर्क आ जाता है। असली रत्नों का महत्व प्राचीन काल से आज तक बना हुआ है।
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