Sunday, May 19, 2024

जीवन में संतुलन: जानकारी की अधिकता भी तनाव का कारण

तनाव आज के समाज में बहुत चर्चित विषय है। आप टेलीविजन खोलिए विशेषज्ञ तनाव पर चर्चा करते मिल जाएंगे, अखबारों पत्रिकाओं यहां तक कि इन के लाभों की चर्चा में भी तनाव एक विषय है। अब इसकी एक अपनी ही समस्या है। इतने ज्यादा लोग तनाव पर ज्ञान दे रहे हैं कि लोग पूरी तरह से दिग्भ्रमित हो गए हैं।

मानसिक तनाव और समाज

सूचना की अधिकता और अत्याधिक सूचना तक पहुँच अपने आप में तनाव का कारण हो गया है। इसका मतलब यह नहीं कि तनाव पुराने जमाने में नहीं था। मनुष्य तो आदिकाल से मानसिक तनाव से जूझता रहा है। पहले तनाव का कारण था अत्याधिक अनिश्चितता से उत्पन्न भ्रम,इस भ्रम को मनोविज्ञान की भाषा में दुश्चिंता भी कहते हैं। अनिश्चितता और दुश्चिंता का यह चक्र ही मानसिक तनाव का कारण था।

वर्तमान युग में विज्ञान और प्रौद्योगिकी के विकास ने मनुष्य को अनिश्चितताओं से दूर किया,अब मनुष्य पूर्वानुमान कर सकता है। सांख्यिकी और सूचना प्रौद्योगिकी का इस्तेमाल कर भविष्य के बारे में राय कायम कर सकता है। साथ ही होने वाली घटनाओं का काफी हद तक पूर्वानुमान कर उनसे बचने या उनका सामना करने की तैयारी कर सकता है। लेकिन जो सोचने की बात है। वो यह कि तनाव से मुक्ति फिर भी नहीं मिली बल्कि कुछ प्रक्षेप बढ़ा हुआ ही दिखता है।

समाज में सामंजस्य का घोर अभाव

तनाव का असर समाज में बढ़ रहे असंतोष आक्रोश अवसाद मनोविकार एवं हिंसा से समझा जा सकता है। असामान्य मनोविज्ञान की भाषा में समाज में सामंजस्य का घोर अभाव दिख रहा है। इसी के चलते सामाजिक अस्थिरता बढ़ रही है। पुराने दिनों में जानकारी की कमी तनाव का कारण थे, वर्तमान में जानकारी की अधिकता तनाव का कारण है। लेकिन जो बुनियादी पहलू है। वह मानव जीवन का अवश्यंभावी अभिशाप है। अर्थात आप कुछ भी कर ले तनाव तो होगा इसीलिए शास्त्री मनोविज्ञान के दृष्टिकोण से आधुनिक मनोविज्ञान का दृष्टिकोण भिन्न है।

शास्त्रीय मनोविज्ञान में तनाव के कारणों की खोज कर उन पर रोक लगाने पर बल था। लेकिन आधुनिक मनोविज्ञान में तनाव को झेलने की क्षमता को विकसित करने पर बल दिया जा रहा है। इसका मूल कारण यह है कि तनाव केवल बाहरी कारणों पर निर्भर नहीं करता बल्कि इस बात पर निर्भर करता है। हम उन कारणों को किस नजरिए से देखते हैं। तनाव एक सोचने का ढंग है। यही कारण है कि अलग-अलग लोग एक ही इंद्रिय जन्म प्रत्यक्षण को भिन्न भिन्न दृष्टिकोण से देखते हैं। उदाहरण के तौर पर विफलता को ही लें कुछ लोग विफलता को अवसर का अंत मान सकते हैं। वहीं कुछ लोग विफलता को कुछ बेहतर प्रयास करने का अवसर, विख्यात वैज्ञानिक एडिशन का कथन था कि मैं 10000 बार विफल नहीं हुआ मैंने 10000 तरीके सीखे जो कारगर नहीं थे तो यह सोच का खेल है।

चिंतन से समस्‍या का समाधान

समस्या को देखकर आप चिंता भी कर सकते हैं और चिंतन भी, चिंता जहां समस्या बढ़ाएगी, चिंतन वहीं उस समस्या का समाधान सुलझाने का मार्ग प्रशस्त करेगी। मगर तनाव झेलने की क्षमता बढ़ाना एक तरह का मानसिक अनुशासन खोजता है। मन को नियंत्रित कर ही तनाव झेलने की क्षमता बढ़ाई जा सकती है। इसके कई तरह के उपाय हैं। जो सभी मनोवैज्ञानिक मानते हैं। वह है कि ईश्वर की सत्ता पर आस्था और खुद पर विश्वास यानी प्रार्थना और ध्यान लेकिन इसके लिए भी सोचने के ढंग में बदलाव लाना पड़ेगा मस्तिष्क को स्थित प्रज्ञ करना पड़ेगा तन और मन दोनों स्वस्थ रखना होगा।

 

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