देवघर स्थित बाबा बैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग की पौराणिक कथा अत्यंत प्रसिद्ध और धार्मिक महत्त्व की है। यह कथा भगवान शिव और उनके परम भक्त रावण से संबंधित है। यह स्थल अब भारत के 12 प्रमुख ज्योतिर्लिंगों में से एक है और इसे अत्यंत पवित्र माना जाता है। यहाँ हर साल लाखों श्रद्धालु बाबा बैद्यनाथ के दर्शन और पूजा-अर्चना के लिए आते हैं, विशेष रूप से श्रावण मास में यहाँ भारी भीड़ रहती है।
कथा के अनुसार, रावण, जो भगवान शिव का परम भक्त था, ने शिव को प्रसन्न करने के लिए घोर तपस्या की। रावण की तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उसे वरदान मांगने को कहा। रावण ने शिव से उनके ज्योतिर्लिंग को लंका ले जाने का वरदान मांगा ताकि वह उसे अपनी राजधानी में स्थापित कर सके। भगवान शिव ने उसकी भक्ति को देखते हुए यह वरदान दे दिया, लेकिन एक शर्त रखी कि यह ज्योतिर्लिंग पृथ्वी पर कहीं भी रख दिया गया तो वह वहीं स्थायी रूप से स्थापित हो जाएगा।
रावण ज्योतिर्लिंग को लेकर लंका की ओर चला। यात्रा के दौरान, देवताओं ने उसे रोकने की योजना बनाई। भगवान विष्णु ने रावण को थका देने के लिए एक योजना बनाई। रावण को लघुशंका की आवश्यकता महसूस हुई और उसने एक ब्राह्मण रूपी भगवान विष्णु को ज्योतिर्लिंग थामने के लिए कहा। भगवान विष्णु ने ज्योतिर्लिंग को थाम लिया, लेकिन थोड़ी देर बाद उन्होंने इसे पृथ्वी पर रख दिया।
इस प्रकार, वह ज्योतिर्लिंग देवघर में स्थापित हो गया। जब रावण ने वापस आकर इसे उठाने की कोशिश की, तो वह सफल नहीं हो सका। रावण ने शिवलिंग को बहुत जोर से दबाया, जिससे लिंग का आकार बदल गया और उसमें दरारें आ गईं। इस प्रकार, बाबा बैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग देवघर में स्थापित हो गया।
बाबा बैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग की पौराणिक कथा में यह भी कहा जाता है कि रावण ने अपनी भक्ति की परीक्षा के रूप में अपनी दसों सिरों की बलि भगवान शिव को अर्पित की थी। जब रावण ने नौ सिर काट दिए और दसवां सिर काटने की तैयारी कर रहा था, तभी भगवान शिव प्रकट हुए और उसकी भक्ति से प्रसन्न होकर उसे वरदान दिया। इस प्रकार, रावण की भक्ति और भगवान शिव की कृपा के कारण बाबा बैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग की स्थापना हुई।
देवघर का यह मंदिर बहुत प्राचीन है और इसकी धार्मिक महत्ता अद्वितीय है। इस मंदिर के चारों ओर का वातावरण धार्मिक और आध्यात्मिकता से परिपूर्ण है। यहाँ आने वाले भक्त शिवलिंग पर जलाभिषेक, दूधाभिषेक, और बेलपत्र चढ़ाकर भगवान शिव की आराधना करते हैं। मान्यता है कि यहाँ सच्चे मन से की गई पूजा और अर्चना से सभी इच्छाएँ पूरी होती हैं और भक्तों को शिव की कृपा प्राप्त होती है।
श्रावण मास के दौरान यहाँ कांवड़ यात्रा का आयोजन होता है, जिसमें देश भर से लाखों श्रद्धालु गंगाजल लाकर बाबा बैद्यनाथ को अर्पित करते हैं। यह कांवड़ यात्रा बहुत ही कठिन और तपस्या से भरी होती है, जिसमें भक्त पैदल चलते हुए गंगा नदी से जल लाते हैं और देवघर में बाबा बैद्यनाथ को चढ़ाते हैं।
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बाबा बैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग की इस पौराणिक कथा और धार्मिक महत्ता के कारण यह स्थान भारत के प्रमुख तीर्थ स्थलों में से एक है। यहाँ की अद्वितीयता और श्रद्धा हर भक्त के दिल में विशेष स्थान रखती है। देवघर का यह मंदिर न केवल धार्मिक आस्था का केंद्र है, बल्कि यह हमारे सांस्कृतिक और पौराणिक धरोहर का भी महत्वपूर्ण हिस्सा है। बाबा बैद्यनाथ की महिमा और उनकी कथा हमें भक्ति, श्रद्धा और भगवान के प्रति समर्पण का संदेश देती है।
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