नार्को टेस्ट और पॉलिग्राफ टेस्ट दोनों ही ऐसे वैज्ञानिक उपकरण और तकनीकें हैं जिनका उपयोग किसी व्यक्ति की सत्यता की जांच करने के लिए किया जाता है। दोनों की प्रक्रिया, आधार, और उपयोगिता में महत्वपूर्ण अंतर हैं। आइए इन दोनों के बीच के अंतर और उनके पहले उपयोग के बारे में विस्तार से समझें।
नार्को टेस्ट क्या है?
नार्को टेस्ट एक प्रकार का मनोवैज्ञानिक परीक्षण है जिसमें व्यक्ति को एक विशेष प्रकार की दवा, जैसे सोडियम पेंटोथल, दिया जाता है। यह दवा व्यक्ति को अर्ध-निद्रा की स्थिति में ले जाती है, जहाँ उसकी आत्म-संयमित झूठ बोलने की क्षमता कम हो जाती है और वह अधिक सच्चाईपूर्ण जवाब देने के लिए प्रेरित होता है। इस स्थिति में व्यक्ति के अवचेतन मन की गतिविधियाँ सक्रिय हो जाती हैं, जिससे उसे सही जवाब देने की संभावना बढ़ जाती है।
पॉलिग्राफ टेस्ट क्या है?
पॉलिग्राफ टेस्ट, जिसे लाई डेटेक्टर टेस्ट भी कहा जाता है, एक वैज्ञानिक उपकरण है जो व्यक्ति की शारीरिक प्रतिक्रियाओं को मापता है जैसे कि रक्तचाप, नाड़ी दर, श्वसन दर, और त्वचा की विद्युत चालकता। जब व्यक्ति सवालों के जवाब देता है, तो उसकी शारीरिक प्रतिक्रियाओं में परिवर्तन होता है, जिसे पॉलिग्राफ उपकरण रिकॉर्ड करता है। इन मापदंडों का विश्लेषण करके यह निर्धारित करने की कोशिश की जाती है कि व्यक्ति सच बोल रहा है या झूठ।
दोनों में मुख्य अंतर
प्रक्रिया
- नार्को टेस्ट: इस परीक्षण में व्यक्ति को दवा दी जाती है जिससे वह अर्ध-निद्रा की स्थिति में आ जाता है।
- पॉलिग्राफ टेस्ट: इस परीक्षण में व्यक्ति की शारीरिक प्रतिक्रियाओं को मापा जाता है जब वह सवालों के जवाब देता है।
उपकरण
- नार्को टेस्ट: इसमें सोडियम पेंटोथल जैसी दवाओं का उपयोग किया जाता है।
- पॉलिग्राफ टेस्ट: इसमें पॉलिग्राफ मशीन का उपयोग किया जाता है जो विभिन्न शारीरिक प्रतिक्रियाओं को रिकॉर्ड करती है।
आधार
- नार्को टेस्ट: यह अवचेतन मन की गतिविधियों पर आधारित होता है।
- पॉलिग्राफ टेस्ट: यह शारीरिक प्रतिक्रियाओं पर आधारित होता है।
परिणाम
- नार्को टेस्ट: व्यक्ति के अवचेतन मन से अधिक सच्चे जवाब मिलने की संभावना होती है।
- पॉलिग्राफ टेस्ट: शारीरिक संकेतों के आधार पर सत्यता का पता लगाया जाता है, जो हमेशा सटीक नहीं हो सकता।
कानूनी मान्यता
- नार्को टेस्ट: कई देशों में कानूनी मान्यता संदिग्ध है और इसे न्यायालयों में स्वीकार नहीं किया जाता।
- पॉलिग्राफ टेस्ट: कुछ न्यायालयों में इसे स्वीकार किया जाता है, लेकिन इसकी विश्वसनीयता पर विवाद बना रहता है।
पहली बार उपयोग
नार्को टेस्ट: नार्को टेस्ट का पहला ज्ञात उपयोग 20वीं सदी की शुरुआत में हुआ था। सबसे पहले इस तकनीक का उपयोग अमेरिकी डॉक्टर रॉबर्ट हाउस ने 1922 में किया था। उन्होंने इसे अपराधियों की सत्यता जाँचने के लिए उपयोग किया था।
पॉलीग्राफ टेस्ट: पॉलिग्राफ टेस्ट का आविष्कार और पहला उपयोग 1921 में अमेरिका में जॉन ए. लार्सन द्वारा किया गया था। लार्सन, जो एक पुलिस अधिकारी और फिजियोलॉजिस्ट थे, ने इस उपकरण का विकास बर्कले, कैलिफोर्निया पुलिस विभाग के लिए किया था। इस तकनीक को लार्सन के सहकर्मी लियोनार्ड कीलर ने और अधिक परिष्कृत किया, जिसने 1930 के दशक में पॉलिग्राफ उपकरण को व्यावसायिक रूप से उपलब्ध कराया।
नार्को टेस्ट और पॉलिग्राफ टेस्ट दोनों ही महत्वपूर्ण उपकरण हैं जिनका उपयोग अपराध जाँच और सत्यापन प्रक्रिया में किया जाता है। हालांकि, दोनों के अपने-अपने फायदे और नुकसान हैं। नार्को टेस्ट व्यक्ति को अर्ध-निद्रा की स्थिति में लाकर सच्चाई उगलवाने का प्रयास करता है, जबकि पॉलिग्राफ टेस्ट व्यक्ति की शारीरिक प्रतिक्रियाओं को मापकर उसकी सत्यता की जाँच करता है। इन दोनों की कानूनी मान्यता और विश्वसनीयता पर हमेशा विवाद रहा है, लेकिन ये उपकरण कई मामलों में उपयोगी साबित हुए हैं।
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