बुद्ध पूर्णिमा 2025 में कब है?
बुद्ध पूर्णिमा 2025 में 12 मई, सोमवार को मनाई जाएगी। यह तिथि हिंदू पंचांग के अनुसार वैशाख मास की पूर्णिमा को आती है, जो बेहद शुभ मानी जाती है। इस दिन भगवान गौतम बुद्ध का जन्म हुआ था, इसलिए यह दिन बौद्ध अनुयायियों और हिंदू श्रद्धालुओं दोनों के लिए अत्यंत पावन होता है। पंचांग के अनुसार, पूर्णिमा तिथि 11 मई को रात 9:30 बजे शुरू होगी और 12 मई को रात 11:20 बजे तक रहेगी। इस अवधि में पूजा, स्नान और दान करना अत्यधिक पुण्यदायक माना गया है।
बुद्ध पूर्णिमा पर स्नान का सही तरीका और मुहूर्त
बुद्ध पूर्णिमा पर पवित्र नदी में स्नान का अत्यधिक महत्त्व है। कहा जाता है कि इस दिन किया गया स्नान जीवन के पापों को दूर करता है और मोक्ष का मार्ग प्रशस्त करता है। 2025 में स्नान का शुभ मुहूर्त 12 मई को प्रातः 04:10 बजे से 11:45 बजे तक उत्तम है। स्नान से पहले श्रद्धालु गंगाजल मिलाकर जल में डुबकी लगाते हैं और सूर्य को अर्घ्य देते हैं। स्नान करते समय “ॐ नमः बुद्धाय” मंत्र का जाप करने से विशेष फल प्राप्त होता है। घर में स्नान करने वाले लोग भी गंगाजल मिलाकर पूजा के साथ स्नान कर सकते हैं।
दान की विधि और इसका पुण्यफल
बुद्ध पूर्णिमा के दिन दान का अत्यंत महत्व है। इस दिन किए गए दान से पितृदोष और पूर्व जन्मों के पाप दूर होते हैं। श्रद्धालुओं को अन्न, वस्त्र, फल, जल, शर्बत, गौदान, छाता, चप्पल और दक्षिणा आदि का दान करना चाहिए। गरीबों को भोजन कराने से विशेष पुण्य प्राप्त होता है। विशेष रूप से इस दिन बौद्ध विहारों, आश्रमों और ज़रूरतमंदों को वस्त्र व अन्न देना अत्यधिक फलदायी होता है। दान करने से व्यक्ति के जीवन में सकारात्मक ऊर्जा आती है, और शांति, समृद्धि व सौभाग्य की प्राप्ति होती है। दान से मन की तृप्ति और आत्मिक संतोष मिलता है।
पूजा विधि और व्रत का महत्व
इस दिन भगवान बुद्ध की पूजा विधिपूर्वक करनी चाहिए। उनकी मूर्ति को स्नान कराकर, वस्त्र पहनाकर, चंदन, पुष्प, दीप व धूप अर्पित करें। पूजा के बाद धम्मपद या बुद्ध वचनों का पाठ करें। व्रत करने वाले भक्त पूरे दिन सात्विक भोजन लेते हैं या उपवास रखते हैं। ध्यान और मौन साधना इस दिन विशेष महत्व रखती है। चंद्रमा को अर्घ्य देकर व्रत पूर्ण किया जाता है। यह दिन आत्मचिंतन, संयम और सत्य के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देता है। पूजा में “बुद्धं शरणं गच्छामि” का जाप करना लाभकारी होता है।
बुद्ध पूर्णिमा का आध्यात्मिक महत्व
बुद्ध पूर्णिमा केवल एक पर्व नहीं, बल्कि आध्यात्मिक जागरण का दिन है। भगवान बुद्ध ने इस दिन संसार को चार आर्य सत्य, अष्टांगिक मार्ग और करुणा का संदेश दिया था। यह दिन हमें अपने अंदर की बुराइयों से मुक्ति पाने, अहिंसा अपनाने और आत्मज्ञान की ओर अग्रसर होने की प्रेरणा देता है। बौद्ध अनुयायी इस दिन विशेष ध्यान, भिक्षा, सेवा और ध्यान में लीन रहते हैं। मंदिरों और बौद्ध विहारों में दीप प्रज्ज्वलित किए जाते हैं और भगवान बुद्ध की शिक्षाओं का स्मरण किया जाता है। यह पर्व मानवता, शांति और आत्मबल का प्रतीक है।