Sunday, May 19, 2024

उत्तर प्रदेश: बेहिसाब फीस में वृद्ध‍ि, स्‍कूल संचालकों की बढ़ रही मनमानी, शिक्षा व‍िभाग के अध‍िकारी मौन

प्रतापगढ़। जिले में कुकुरमुत्तों की तरह जगह-जगह खुले प्राईवेट स्कूल संचालकों द्वारा बच्चों के अभिभावकों को आकर्षित करने के लिए लोक लुभावन प्रचार किये जा रहे हैं। बेहतर शिक्षा, अनुशासन, सुविधा, आधुनिक शिक्षा और बच्‍चों के अच्छे भविष्य को लेकर स्कूलों द्वारा अभिभावकों के सामने हौवा खड़ा किया जाता है। अभिभावकों को आकर्षित करने का यह स्कूलों का नजरिया है। अभिभावक भी अपने बच्चों के दाखिले को लेकर इस समय फिक्रमंद है। वह लोगों से जानकारी कर रहे हैं कि कौन से स्कूल में बढ़ियां पढ़ाई हो रही है। कई स्कूलों का दौरा कर जायजा ले रहे हैं। मसलन फीस, कॉपी- किताब, ड्रेस, स्कल में सुविधा, पढ़ाई का स्तर, साल भर का खर्च आदि की स्थिति।

फीस का ऑकड़ा लेकर एक बच्चे के पीछे साल भर का हिसाब जोड़ने पर परिजन हैरान व परेशान हैं। फीस व खर्च के मामले में अब किससे शिकायत की जाए। कोई सुनने वाला नहीं है। जिले में कई स्कूल ऐसे हैं, जिनमें साल भर का खर्च जोड़ा जाए तो एक बच्चे के पीछे लाखों रूपए आ रहे हैं। यदि किसी घर में दो या तीन बच्चे पढ़ने वाले हों तो उसके मानसिक व आर्थिक स्थिति का सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है। यानी कम आमदनी वाले अभिभावक की सारी कमाई बच्चों को पढ़ाने में ही खर्च हो रही है।

दो साल पूर्व स्कूलों की मनमर्जी पर काफी हो-हल्ला प्रदेश स्तर पर मचा था। जिले में भी डीएम व शिक्षा विभाग के अधिकारियों से शिकायत हुई थी। उस समय शासन-प्रशासन के अधिकारियों ने स्कूलों के संचालकों को फीस के संबंध में कई हिदायतें दी लेकिन स्कूल संचालकों पर उनका कोई असर नहीं हुआ। शिक्षा माफियाओं की मनमानी पर अभिभावक हैरान व परेशान तो हैं लेकिन उन्हें पता है कि उनकी परेशानी कोई सुनने वाला नहीं है। थक-हार कर अच्छी शिक्षा के नाम पर लुटने को बेबस अभिभावक तैयार हैं।

क्‍या फीस में बढ़ोतरी शिक्षकों के भुगतान का हिस्‍सा है ?

स्कूल संचालक शिक्षकों के वेतन के नाम पर अभिभवकों से मनमर्जी फीस वसूल करते हैं। जबकि वास्तविकता में ऐसा नहीं है। शिक्षकों को भी विद्यालय में कम वेतन देकर उनका शोषण किया जा रहा है। बेरोजगारी के समय में नौकरी जाने के खतरे से कोई वेतन बढ़ाने का नाम नहीं लेता है।

दस्तखत का खेल

कई स्कूल संचालक शिक्षकों को नौकरी में रखते समय बॉन्‍ड भरा लेते हैं। जिससे उन्हें बंधुआ मजदूर की तरह नौकरी करना होता है। वेतन देते समय शिक्षकों से दस्तखत पूरे पर कराया जाता है। जबकि पेमेंट करते समय दो से पॉच हजार काटकर दिया जाता है।

विद्यालय का व्यापारिक चेहरा

एक बार विद्यालय में पैसा लगा दो तो जीवन पर पैसा कमाने की फैक्ट्री के रूप में काम करता है। शिक्षा माफियाओं ने शिक्षा को व्यवसाय बना दिया। इस धंधे में न कोई छापा न कोई धर पकड़, सारी कमाई सफेद। यही कारण है कि स्कूल संचालकों के पास कुछ सालों में कई शिक्षण संस्थान बनकर तैयार हो जाते हैं।

जिम्मेदारों के बच्चों के लिए मुफ्त शिक्षा

बड़े स्कूलों के शिक्षकों ने बताया कि शिक्षा व प्रशासन के अधिकारियों के बच्चों को स्कूलों में फ्री में सुविधा दी जाती है। उनसे कोई शुल्‍क नहीं लिया जाता है। इस श्रेणी में वे अधिकारी हैं जिनके बच्चे छोटे हैं। जिले के और भी विभागों के अधिकारियों के बच्चों को सुविधा मिल रही है। ऐसे में प्राइवेट स्कूल संचालकों की मनमानी का दंश अभिभावकों को झेलना पड़ रहा है।

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