Saturday, April 19, 2025

लाजवर्त रत्‍न राहु, केतु के बुरे असर को करता है दूर

लाजवर्त रत्‍न को संस्‍कृत में राजावर्त और अंग्रेजी में Lapis कहते हैं। यह दो प्रकार का होता है। पहला-नीले के सफेद छीटे या बिंदु होते हैं। दूसरा-नीले में पीले चमकते हुए बिंदु होते हैं यही श्रेष्‍ठ माना जाता है। गहरे रंग वाला श्रेष्‍ठ होता है और साधारण नीले रंग वाला रत्‍न सामान्‍य माना गया है।

यह रूस के साइबेरिया में पाया जाता है। सबसे ज्‍यादा अफगानिस्‍तान में पाया जाता है। वैसे यह शनि का रत्‍न है परंतु श्‍वेद बिंदु से युक्‍त गहरे रंग वाला लाजवर्त राहु एवं केतु के बुरे असर को दूर करने के लिए एवं उसके शुभ प्रभाव को बढ़ाने के लिए धारण करने से लाभ मिलता है।

गहरे नीले रंग में चमकती पीली बिंदुओं या छीटों वाले लाजवर्त को शुक्र की खराब दशा में उसके खराब प्रभाव को दूर करने एवं शुक्र प्रभाव को बढ़ाने के लिए धारण करना उचित होगा। रक्‍त संचार की गड़बड़ी के कारण होने वाली बेहोशी, मिर्गी या चर्म विकार आदि जैसे रोग होने पर इस रत्‍न को गले में धारण करना चाहिए तथा 3 हफ्ते गुलाब जल में इस रत्‍न को डालकर 3 चम्‍मच की मात्रा में दिन में तीन बार पीने से लाभ मिलता है।

बाजार में इसकी माला भी मिलती है। इस मनका को धारण करने से हिम्‍मत बढ़ती है। मन का भय दूर होता है। कार्यों में सफलता एवं सम्‍मान मिलता है। बच्‍चों को मनका धारण कराने से  उनको रोग नहीं होता।

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