Monday, May 20, 2024

वोटर्स की अंगुली पर सच का प्रहार, जानें चुनाव में इस्‍तेमाल होने वाली स्‍याही का रहस्‍य

18वीं लोकसभा के गठन की न‍िर्वाचन प्रक्र‍िया शुरू है। कुल 7 चरण में मतदान होना है। फ‍िलहाल दूसरे चरण का मतदान समाप्‍त हो चुका है। इस प्रक्र‍िया में सबसे आवश्‍यक अंगुली में लगाई जाने वाली नीली स्‍याही का निशान है। मतदान के दोहराव, झूठे-फर्जी मतदान को रोकने में काम आने वाली यह स्‍याही दशकों से भारत के नागर‍िकों के सुरक्ष‍ित मतदान तथा उनके अध‍िकार का प्रतीक है।

मतदान केन्‍द्र पर मौजूद चुनाव क‍र्मी, मतदान करने आए मतदाता की उंगली में निशान लगाकर यह सुन‍िश्च‍ित करते हैं क‍ि न सिर्फ उस व्‍यक्‍त‍ि ने मतदान किया बल्‍क‍ि उसके मतदान का अध‍िकार भी सुरक्ष‍ित है। यह चुनावी स्‍याही इतनी स्‍याह और ज‍िद्दी होती है की किसी चीज से साफ नहीं किया जा सकता। यह त्‍वचा के मृत कोश‍िकाओं के साथ ही उंगली से छूटती है।

इस स्‍याही को देश में एक मात्र कंपनी मैसूर पेन्‍टस एंड वार्न‍िश लिमि‍टेड तैयार करती है। लोकतंत्र के महापर्व की अम‍िट निशानी बन चुकी इस स्‍याही का इत‍िहास कई दशक पुराना है, तथा इसका इत‍िहास मैसूर के राजवंश से भी जुड़ा है। आज उन्‍हीं के विरासत की निशानी मतदाताओं की उंगली पर मिलती हैं।

भारत की स्‍वतंत्रता से पूर्व कर्नाटक के मैसूर में वाड‍ियार वंश का शासन था। आज भी मैसूर का हाथ‍ियों वाला विश्‍व प्रस‍िद्ध दशहरा इसी वंश के द्वारा शुरू किया गया उत्‍सव है। स्‍वतंत्रता से पहले महाराज कृष्‍ण राज वाड‍िआर चतुर्थ मैसूर के शासक थे।

वाड‍िआर वंश के राजा कृष्‍णराज ने 1937 में पेंंट और वार्न‍िश की एक फैक्‍ट्री खोली, ज‍िसका नाम मैसूर लाख एण्‍ड पेन्‍टस रखा। स्‍वतंत्रता के कुछ समय बाद कर्नाटक सरकार ने इसका अध‍िग्रहण कर ल‍िया, फ‍िर यहां पर नहीं मिटने वाली चुनावी स्‍याही का उत्‍पादन शुरू हुआ। 1989 में फैक्‍ट्री का नाम मैसूर पेन्‍टस एण्‍ड वार्न‍िश लिमि‍टेड किया गया।

इस फैक्‍ट्री के ज‍र‍िए चुनाव आयोग, चुनाव से जुड़ी एजेंस‍ियों को ही इस स्‍याही का उपयोग करनी की अनुमत‍ि मिली और उन्‍हीं को सप्‍लाई की जाती है। जानकारी के ल‍िये आपको बता दें क‍ि इसको मुख्‍य पहचान तब मिली, जब इस नीले रंग की स्‍याही को आम चुनाव में शाम‍िल किया गया। इसका मुख्‍य श्रेय देश के पहले मुख्‍य निर्वाचन आयुक्‍त सुकुमार सेन को जाता है।

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