जिस देह से प्राण छूट गए हों, समस्त चेतनाएं लुप्त हो चुकी हों, ऐसी निष्प्राण देह को लगभग एक घंटे तक, जब तक खून में जरा भी गर्मी या बहाव शेष हो तब तक ‘शव’ कहा जाता है। योगाचार्यों ने शरीर की इस स्थिति के सूक्ष्म निरीक्षण के बाद ही ‘शवासन’ की रचना की है। वैसे शवासन की अत्यंत सूक्ष्म जानकारियों के आधार पर इससे मिलते-जुलते दो और भी योगासन हैं, जिन्हें प्रेतासन और मृतासन कहा जाता है।
शवासन के लाभ
- तीव्र रक्तचाप और हृदय रोगियों के उपचार का सर्वोत्तम साधन है।
- शरीर को नया उत्साह, नई शक्ति और नव-जीवन प्रदान करता है।
- कम-से-कम समय में अधिक-से-अधिक लाभ प्राप्त कर लेने का अचूक नुस्खा है।
- शरीर और मन की सारी थकान इस आसन से आसानी से उतर जाती है।
- आधुनिक जीवन में होने वाला भयंकर मानसिक तनाव, निराशा, कुंठाग्रस्तता आदि से छुटकारा मिल जाता है।
- नींद की कमी व अनिद्रा रोग आदि से छुटकारा दिलाकर मस्त नींद लाता है।
- मांसपेशियों में उत्पन्न हुई ऐंठन, थकान, अस्थियों तथा अस्थि-बंधनों में उत्पन्न खराबियां, रक्तवाहिनी नलिकाओं में उत्पन्न होने वाले अवरोध, रक्त की विषाक्तता आदि अनेक अशुद्धियां दूर कर इन अंगों को स्वस्थ व सक्षम बनाता है।
- गहरे अभ्यास से मन शांत एवं चिंतारहित हो जाता है। चेहरे की क्लांति दूर कर प्रसन्नता लाता है।
शवासन की विशेषता
खड़े-खडे़, बैठे-बैठे अथवा चलते-चलते थक जाने पर, किसी कार्य की एकरसता से बुरी तरह ऊब जाने पर, विशेषकर महिलाओं को घर-गृहस्थी के काम निबटाते-निबटाते बुरी तरह उकता जाने पर, शरीर के पोरे-पोर में एक अव्यक्त सी टूटन आ जाने पर, यदि सिर्फ दस मिनट के लिए ‘पूर्ण शवासन’ कर लिया जाय तो नए उत्साह और नई शक्ति से पुन: कार्य करने की तत्परता प्राप्त होती है तथा शारीरिक कष्टों से मुक्ति मिल जाती है।
योगासन सर्वोत्तम व्यायाम हाने के बावजूद व्यायाम की परंपराओं से हटकर है। यदि योगासन करते समय कुछ कठिन आसनों का अभ्यास आप कर रहे हों तो हर पंद्रह मिनट बाद आपको ‘शवासन’ अवश्य करना चाहिए।
शवासन की विधि
चित्र में अथवा किसी व्यक्ति को शवासन करते हुए देखकर यह सर्वाधिक आसान, आसन प्रतीत होता है, लेकिन यह उतना ही कठिन है। इसकी शर्तों का पालन पूरे अर्थों में कर पाना ही शवासन है। अन्य सभी योगासनों में शरीर को विभिन्न स्थितियों में तोड़ा-मरोड़ा जाता है और ऐसा करना वास्तव में आसान है। शवासन में कोई कठिन प्रयास नहीं करना पड़ता, शरीर को सिर्फ निर्जीव, पूर्णत: तनाव रहित छोड़ना पड़ता है। पकड़ना बहुत आसान है, छोड़ना उतना ही कठिन है।
किसी भी आरामदायक स्थान पर, समतल जगह पर, कंबल पर अथवा तख्त पर पीठ के बल लेट जाइए। सिर के नीचे सिरहाना बिलकुल मत रखिए। दोने पैर पास-पास हों। पैरों के पंज और धुटने जिस आरामदायक स्थिति में जिस ओर को लुढ़कना चाहते हों, लुढ़क जाने दीजिए। अपनी ओर से कोई भी नियंत्रण उनपर मत दीजिए। यदि हाथ शरीर से सटे हुए हों तो हथेलियां पृथ्वी की ओर हाेंगी। यदि हाथ शरीर से कुछ फासले पर रखने में सुविधा प्रतीत होती हो तो हथेलियां आकाश की ओर रहेंगी।
आपकी गर्दन सीधी रहे अथवा किसी भी ओर को लुढ़की हुई स्थिति में हो, गर्दन और माथे की मांसपेशियों में तनिक भी तनाव या सिकुड़न महसूस न होने दें। इस तरह आपको शरीर पृथ्वी पर पूरी तरह से स्वतंत्र पड़ा हो, किसी भी मांसपेशी पर जाेर नहीं पड़ रहा हो।
शवासन का गहन प्रयोग
उपर्युक्त स्थिति शवासन से मिलती-जुलती सी तो अवश्य है, परंतु अभी निश्चेष्ट शव की स्थिति कदापि नहीं है। आप शरीर को ढीला छोड़ने के लिए प्रयास कर रहे हैं। प्रयास करना ही तो तनाव की स्थिति है। आइए स्व-निरीक्षण के माध्यम से शरीर को पूर्णत: तनावरहित तथ नियंत्रणहीन बनाया जाए।
अपने अंतर्मन की आंखों से पूरे शरी का, सिर से लेकर पांव तक निरीक्षण कीजिए। अब अपनी अंतश्चेतना को पैरों पर केंद्रित कीजिए। उसकी मांसपेशियाें का सूक्ष्म निरीक्षण कीजिए। यदि कहीं भार पड़ रहा है, असहज स्थिति है, तनाव मौजूद है तो उसे वापस लीजिए और उसे उसकी प्राकृतिक-सहज स्थिति में जाने के लिए स्वतंत्र छोड़ दीजिए। मन-ही-मन दोहराइए- मैं पैरों के पंजों पर से अपने सारे नियंत्रण, सारी इच्छाएं, सारे दबाव हटा रहा हूं। पैरो के पंजे शिथिल, निष्प्राण होते जा रहे हैं, बिल्कुल स्वतंत्र। अब मेरी पिंडलियां तनावमुक्त हो रही हैं, स्वतंत्र हो रही हैं। मेरे घुटने जैसे मुड़ना चाहें, जिस ओर, अपने बोझ से, अपनी सहज और स्वतंत्र स्थिति में लुढ़कना चाहें, लुढ़क जाएं। मै अपनी मर्जी, अपना नियंत्रण इनपर से वापस उठा रहा हूं। घुटने भी सहज हैं। मेरी जांघों पर कोई भार नहीं है, कोई तनाव नहीं है, जांघ मेरी नहीं है। वे स्वतंत्र और निश्चेष्ट हो चुकी हैं।
नितंब, कमर, पेट भी पूरी तरह भाररहित है, हलके और स्वतंत्र हैं। छाती, पीठ, गर्दन भी तनावरहित है, स्वतंत्र है। हाथों की अंगुलियां, हथेलियां, कोहनी, भुजाएं, कंधे, पूरी तरह निश्चेष्ट हो चुके हैं। पूरी तह भारहीन तनावरहित। अब सिर पर मेरा कोई नियंत्रण नहीं है। मस्तिष्क में कोई विचार शेष नहीं हैं, शव का अपना कोई विचार नहीं होता। मेरे शरीर का एक-एक अंग शिथिल हो चुका है। भाररहित और सभी प्रकार के तनावों से मुक्त हो चुका है। मैने किसी भी अंग पर कोई भी स्थिति, कोई भी बंधन नहीं लादा है। यह सभी प्रकार की इच्छाओं से मुक्त हो चुका है।
आपके इस निर्देशन से, इस प्रकार तटस्थ निरीक्षण से सचमुच ही यह शरीर शिथिल हो जाएगा। यदि कोई दूसरा व्यक्ति आपके शरीर को उठाए तो वह उसकी बांहों में गीले कपड़े की तरह अपनी स्वतंत्र स्थिति में उठ जाना चाहिए।
शवासन की निर्विचार स्थिति
हमारा मन बड़ा ही चंचल है। वायु क गति की तरह इठलाता, फुदकता यहां-वहां भागता ही रहता है। स्वतंत्र पानी के बहाव की तरह चट्टानों को तोड़ता, खाई-खंदकों में उछलता, मनचाही दिशा में यह मन भागता ही रहता है। वास्तव में मन में उठने वाले विचार एक क्षण के हजारवें भाग के लिए भी रूकते नहीं हैं। असंगत विचार, एक विचार के अनेक विचार ही तो वह बाधा है, जो मन को तनाव से भरते रहते हैं। जब तक मस्तिष्क में विचार है, तब तक तनाव मौजूद है। जब तक तनाव मौजूद है, तब तक शरीर पूर्ण विश्राम में, पूर्ण शिथिलता में जा ही नहीं सकता। जब तक सारा शरीर और मस्तिष्क पुर्णत: शिथिल नहीं होता, तब तक नींद आ ही नहीं सकती। यदि मन को कहीं एकाग्र करने का प्रयास भी किया जाए तो यह एकाग्रता ही सिर को भारी और तनावग्रस्त बना देती है। विचार फिर भी रूकते नहीं है। एक विचार अनेक विचारों को जन्म देता चला जाता है। विचारों पर विचार, और-और विचार। विचारों की अनियंत्रित भीड़ आपके होश गुम कर देगी। आप अपनी चेतना को, अपनी सजगता को, अपने होशो-हवास को कायम ही न रख पाएंगे। आप दृष्टा नहीं, आप कर्ता नहीं, आप तो एक खिलौना बन जाएंगे, जिसे कोई नटखट बालक अपने शरारतपूर्ण कारनामों से कष्ट दे रहा हो।
यदि आपको नींद चाहिए तो निर्विचार का गहन प्रयोग कीजिए। अपे श्वास को भीतर आता और बाहर जाता देखिए। सांस आप न लें। सांस पर अपनी जरा सी भी व्यवस्था न लादें। आप हट जाएं इस क्रम के बीच से, बिलकुल हट जाएं। सांस ताे स्वतंत्र है, उसे अपनी स्वतंत्रता से ही आने-जाने दें। सिर्फ साक्षी भाव से, तटस्थ द्रष्टा की तरह देखते रहें। देखने में जरा सी भी चूक न हो, जरा सा भी ध्यान कहीं बंटने न पाए। आप कुछ ही क्षणों में पाएंगे कि विचार थम चुके हैं, शरीर शिथिल हो चुका है और आप बेहोशी की नींद में कहीं गुम हो चुके हैं। सिर्फ दस मिनट, एक क्षण भी ज्यादा नहीं। दस मिनट में ही अपने होश वापस लाएं। उठ बैठें। आप पूरी तरह से तरोताजा होंगे, थकान से पूरी तरह मुक्त।
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