Saturday, June 7, 2025

समर्पण आसन: मानस‍िक तनाव, ब्‍लड प्रेशर को करता है शांत

पंचमहाभूतों (हवा, पानी, मिट्टी, धूप और आकाश) से बना हुआ हमारा यह शरीर हमारे पास प्रकृत‍ि की अमानत है, हमारे जीवन भर के समस्‍त कार्य-कलापों को संपन्‍न कराने वाली धरोहर है। बुद्ध‍ि, धन, पद शक्‍त‍ि व मक्‍कारी आद‍ि के अहंकार में पड़कर हम अपने शरीर का नाश करते हैं। फलस्‍वरूप प्राकृत‍िक नियमों की अवहेलना के अपराधों का दंड जन्‍म-जन्‍मांतर तक भोगते हैं।

प्राकृत‍िक नियमों (ईश्‍वर) के प्रत‍ि कृतज्ञता ज्ञाप‍ित करने के लिए, झूठे अहंकार से बचने के लिए, मन, वचन, काया से प्रकट किए जाने वाले आध्‍यात्मिक कृत्‍य को ही यहां ‘समर्पण-भाव’ कहा जाता है। इस समर्पण-भाव के कारण ही इसे हम ‘समर्पण-आसन’ कहते हैं।

भारत के व्‍यवहार जगत में इस आसन को ‘साष्‍टांग प्रणाम मुद्रा’ भी कहा जाता है। साष्‍टांग का शाब्‍द‍िक अर्थ है-आठों अंगों सहि‍त। आठ अंग, जो इस स्‍थ‍ित‍ि में भूम‍ि के सीधे संपर्क में आते हैं, वे हैं-

  • हथेल‍ियां
  • कोहनी
  • माथा
  • नाक
  • पेट
  • जांघें
  • घुटने
  • पैर के पंजे

आसन के लाभ

  • आध्‍यात्‍म‍िक लाभ के लिए अहंकार-भाव को नष्‍ट करने का प्रमुख आसन है।
  • जट‍िलतम रोगों में जब सभी चिक‍ित्‍सा-पद्धत‍ियां हार मान लें तब यह आसन कभी-कभी चमत्‍कार‍िक ढंग से आश्‍चर्यजनक लाभ पहुंचाता है।
  • समस्‍त मानस‍िक व्‍याध‍ियों में अद्भुत लाभ पहुंचाकर परेशान‍ियाें से मुक्‍त करता है।
  • हृदय रोग, बहुत अध‍िक बढ़े हुए ब्‍लड प्रेशर और मानस‍िक तनाव को शांत करता है।
  • श्‍वास रोग, मिर्गी, ह‍िस्‍टीर‍िया, चक्‍कर आना, अनिद्रा अथवा नींद की कमी को दूर कर उत्तम स्‍वास्‍थ्‍य प्रदान करता है।
  • किसी भी आयु अथवा शारीर‍िक स्‍थ‍ित‍ि में किया जा सकने वाला उत्तम आसन है।

आसन की विध‍ि

चौपरत कंबल, गद्दे या लकड़ी के तख्‍त पर पेट के बल सीधे लेट जाइए। पूरे शरीर को ब‍िल्‍कुल ढीला, एकदम तनाव र‍ह‍ित स्‍थ‍ित‍ि में सुव‍िधानुसार पड़ा रहने दीज‍िए। ऊपर बताए गए आठों अंगों को पृथ्‍वी के संपर्क में लाइए। भीतर लिए जाने वाले श्‍वार को शरीर में प्र‍व‍िष्‍ट करते हुए, श्‍वास-क्रिया को पुन: द‍िशा-परिवर्तन करते हुए तथा भीतर प्रव‍िष्‍ट होने की तत्‍परात का आंतर‍िक सूक्ष्‍म निरीक्षण कीज‍िए।

ध्‍यान: स्‍मरण रखें कि एक क्षण को भी आपका द्रष्‍टा भाव श्‍वास पर से अथवा श्‍वास के समय की किसी भी शारीर‍िक स्‍थ‍ित‍ि में चूकने न पाए। जितनी सूक्ष्‍मता से आपका सजग निरीक्षण भाव होगा, समर्पण आसन का प्रभाव और लाभ उतना ही गहरा होगा।

अवध‍ि: प्रत‍िद‍िन बिस्‍तर पर जाने के बाद नींद आने तक तथा जागते समय ब‍िस्‍तर छोड़ने के पहले पंद्रह मिनट तक यह आसन अवश्‍य ही किया जाए। किसी रोग से मुक्‍त‍ि के लिए, रक्‍तचाप सामान्‍य बनाने के लिए, मानस‍िक तनाव घटाने के लिए पंद्रह मिनट से आधे-एक घंटे तक यह आसन अवश्‍य कीजि‍ए।

धारणा: इस आसन की स्थित‍ि में लेटकर यह अनुभव करें जैसे आप अपने आपको अपने प्रभु, अपने गुरू, अपने इष्‍टदेव अथवा प्रकृत‍ि के चरणों में पूर्णत: सम‍र्प‍ित कर चुके हैं। आपने अपने आपको उसकी भेंट चढ़ा द‍िया है। अब आपका अपना कोई भी विचार, भावना या शर्त शेष नहीं है। आपने अपनी इस नश्‍वर देह को, जो एक द‍िन पराई हो जाने वाली है, उसे आज ही, अभी उसको समर्प‍ित कर द‍िया है। पूरी तरह उसकी मर्जी पर, उसके ही निर्णय पर छोड़ द‍िया है।

समाध‍ि: आपकी चेतना, आपका प्राण, आपकी आत्‍मा अब इस समर्पण भाव की साक्षी मात्र रह गई है। आपको आत्‍मा इस शरीर को पराया मानकर, इससे विलग होकर, पूरी तरह तटस्‍थ होकर एक अनजाने पथ‍िक की तरह इस देह का निरीक्षण कर रही है। इस देह के माध्‍यम से संपन्‍न हुए कार्यों का आपकी साक्षी आत्‍मा बड़ी ईमानदारी से पोस्‍टमार्टम करती रहे। यद‍ि पुन: यदी देह धारण करनी पड़े तो कम से कम वे असंगत और गलत काम करने कसे आपकी साक्षी आत्‍मा इसे रोक सके।

जितनी देर भी आप समर्पण आसन में स्‍थ‍ित रहें उतनी देर तक देह को मृत समझें। कोई आपको बुलाता है, सुनें, पर स्‍मरण रखें, देह पराई हो चुकी है। अत: उससे बोलने या सोचने का काम न लें। काई हिलाता-डुलाता है, मारता-नोचता है, गाल‍ियां देता है, अपमानजनक बातें आपके लिए कहता है, आप हर स्‍थ‍ित‍ि में श्रोता-साक्षी बने रहें। कोई भी प्रत‍िक्रिया आपके शरीर से व्‍यक्‍त न हो। मच्‍छर काटे, मक्‍खी भ‍िनभ‍िनाए, कचरा-धूल गिरे, कुछ चुभ जाए, फ‍िर भी आप साक्षी भाव से सिर्फ देखते रहें, जरा सा भी प्रत‍िकार न करें। यही ‘कायोत्‍सर्ग’ है।


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