Tuesday, May 21, 2024

ह‍िटलर ने गुलामी की जिंदगी जी रहे लोगों के मन में स्‍वतंत्रता की भावना को जगाया

एडोल्‍फ को अपने पिता और माता के लगातार अनुरोध के आगे झुकना पड़ गया। उसने पाठशाला जाना आरंभ कर दिया। एडोल्‍फ पाठशाला में पढ़ाए जाने वाले उन्‍हीं विषयों का अध्‍ययन करता जिनमें उसकी रूचि होती थी। वह विशेष कर उन विषयों में अधिक रूचि और लगन से पढ़ता था जो भविष्‍य में चलकर उसकी इच्‍छा-पूर्ति में सहायक होने वाले थे। उन विषयों की अवहेलना करता था जो उसकी नजरों में महत्‍वहीन थे।

एडोल्‍फ ने अपनी शिक्षा के दौरान दो महत्‍वपूर्ण काम‍ किए, पहला उसका राष्‍ट्रवादी बनना और दूसरा इतिहास का गहराई तथा गंभीरता से अध्‍ययन करना और उसे आत्‍मसात् करना। एडोल्‍फ के किशोर काल में ऑस्ट्रिया एक बहुत बड़ा राष्‍ट्रीय राज्‍य था। उस समय जर्मन लोग बहुरष्‍ट्रीयता से परिचित नहीं थे। उन्‍हें बहुराष्‍ट्रीय राज्‍य में अपने जीवन की वस्‍तुस्थिति को समझने की परख थी। वह इस बात को जर्मन का दुर्भाग्‍य मानता था, जो करोड़ों जर्मनों का राइख से अलग कर उन्‍हें एक अजनबी राजा के अधीन रहने के लिए विवश किया जाता था।

एडोल्‍फ की यह दिली ख्‍वाहिश थी कि वह उन गुलामी की जिंदगी गुजारते लोगों के मन में स्‍वतंत्रता की भावना जगा दे। वह उनकी जाति की परंपराओं की रक्षा करने के लिए युद्ध में भाग लेने के लिए उकसाना चाहता था। वह जर्मन निवासियों को यह समझाना चाहता था कि जीवन को बचाने के लिए संघर्ष कितना जरूरी है। दरअसल आस्ट्रिया में बसने वाली बहुराष्‍ट्रीय जनता को आस्ट्रिया की भाषा ही सिखयी जाती थी। इसलिए आस्ट्रिया भाषा की नीति के विरूद्ध उसने संघर्ष करने के लिए पहला कदम आगे बढ़ाया। उसकी जानकारी में उस समय तीन दल थे। पहला साहसी वीरों का दल दूसरा पीठ दिखाने वालों का दल और तीसरा विश्‍वासघातियों का दल ये तीनों प्राचीनकाल से ही चले आ रहे थे।

एडोल्‍फ ने अपनी ओर से एक तरह से नर्सरी के पौधों को सींचना शुरू कर दिया, ताकि व्‍यस्‍क होने पर उन पर पूरा प्रभाव बना सके। उसके विचारों का उद्देश्‍य बच्‍चों का सुसंस्‍कृत करना था। उसने एक बार बच्‍चों को संबोधित करके कहा था- ”जर्मन के भावी भविष्‍यों, यह मत भूलो कि तुम जर्मन हो। तुम्‍हारा राष्‍ट्र जर्मन है। किशोर लड़कियों! आने वाले समय में तुम ही जर्मन की जननी बनोगी। वीर जर्मनों को अपने राष्‍ट्र को मजबूत बनाना है। नवजवान इस बात को अच्‍छी तरह से जानते हैं कि युवा संगठन का ध्‍यान मातृभाषा पर केंद्रित है। अतीत में इन्‍होंने ही आंदोलन को सफल बनाया है। अपने हथियारों, बुद्धिमत्‍ता और नेतृत्‍व क्षमता से संघर्ष में भाग लिया है। जर्मनी के विरूद्ध इन बहादुर, साहसी और बुद्धिमान लोगों को बहकाया गया। किंतु इन बहादुरों ने बुद्धिमता से दुश्‍मनों के इस वार को नाकाम कर दिया। उल्‍टे वह लोग जर्मनी शूरवीरों के गौरव और सम्‍मान में वृद्धि करने वाले सिद्ध हुए।” उसने लोगों को संबोधित करते हुए कहा- ”युद्ध में लगे वीरों की सहायता करने के लिए जर्मनी के लोगों ने चीजों को कम करके खरीदना आरंभ कर दिया था। ताकि बचे हुए धन का सदुपयोग किया जा सके। गैर जर्मन अध्‍यापकों से मिली खोखली शिक्षा का उन्‍होंने विरोध ही नहीं किया, बल्कि सामूहिक रूप से उनके कथनों का खण्‍डन भी किया। संक्षेप में वो लोग देश के प्रति निष्‍ठा के आदर्श थे। उनसे प्रेरणा लेकर आज के युवा वर्ग को ही नहीं बल्कि बुजुर्गों को भी सीख लेनी चाहिए।”

एडोल्‍फ ने इस प्रकार छोटी-सी आयु में ही उस विचार-संघर्ष में भाग लेना आरंभ कर दिया जो प्राचीन आस्ट्रिया में जातियों को एक-दूसरे के विरूद्ध कर रहे थे। जर्मन लीग और स्‍कूल लीग की सभा में जब साउथ में होती तो वहां के जवान अपनी निष्‍ठा प्रकट करने के लिए मक्‍का पुष्‍प और काले-लाल सुनहरी झंडे उठाते थे। उन्‍हें आस्ट्रियाई सरकार की तरफ से चेतावनियां दी जातीं, लाठियां भांजी जातीं, फि‍र भी वे आस्ट्रियाई गीत गाने के स्‍थान पर अपना ‘डयूटा लैंड उवेर ऐलस’ गीत ही गाते थे। संकोची स्‍वाभाव का होने के कारण एडोल्‍फ पक्‍का राष्‍ट्रवादी बन चुका था। मात्र पन्‍द्रह वर्ष की आयु में ही हिटलर परंपरागत राष्‍ट्रीयता और जन-साधारण की धारणा पर आधारित राष्‍ट्रीयता को स्‍पष्‍ट पहचानने लगा था। उसका पूरा झुकाव राष्‍ट्रीयता की ओर था और वह राष्‍ट्र की दिशा में तेजी से कदम बढ़ा रहा था। ऐतिहासिक अध्‍ययन के क्रम में आस्ट्रिया के स्‍कूलों में विश्‍व का इतिहास एक खास विषय था, विशिष्‍ट आस्ट्रियाई इतिहास कम ही पढ़ाया जाता था।

एडोल्‍फ का मानना था कि उस राज्‍य का भाग जर्मनी के संपूर्ण अस्तित्‍व और विकास के साथ बहुत करीब से जुड़ा है।लियोपोल्‍ड पुच्‍छ, एडोल्‍फ हिटलर के इतिहास के प्रोफेसर थे। ये अध्‍यापक ‘लिन्‍स’ में रियालशू के निवासी थे। डॉक्‍टर लियोपोल्‍ड एक बुजुर्ग और सज्‍जन प्रवृत्ति वाले व्‍यक्ति थे। वह शुद्ध आचरण, दयालु हृदय होने के साथ बड़े ही आकर्षक वक्‍ता भी थे। वे पूरे उत्‍साह से एडोल्‍फ तथा उसके साथियों को प्रेरित करते थे। उनकी इतिहास संबंधी जोशीली व्‍यवस्‍थाओं को सुनकर एडोल्‍फ तथा अन्‍य विद्यार्थी वर्तमान को भूलकर जैसे जादू के बंधन में बंध कर अतीत में खो जाते थे। हजारों वर्ष पहले इतिहास की ऐतिहासिक घटनाओं का सजीव वर्णन अकसर एडोल्‍फ और उसके साथियों को कभी उत्‍साहित कर देता था, तो कभी उनकी आंखें नम कर देता था। प्रोफेसर पुच्‍छ भूतकाल का वर्णन अत्‍यंत कुशलता के साथ करते और वर्तमान का उदाहरण देकर उन्‍हें समझाने का प्रयास करते थे।

एडोल्‍फ को उन प्रोफेसर से इतिहास पढ़ने में अत्‍याधिक रूचि थी। इसलिए वह उनसे ज्‍यादा से ज्‍यादा जर्मन का इतिहास पढ़ा करता था। उसके इस अध्‍ययन का ही परिणाम था कि वह यह जान सका कि उस राज्‍य को हथियाने वाले विदेशी शासकों ने जर्मन राष्‍ट्र के भाग्‍य पर विनाशकारी असर डाला था। फि‍र भला वह कैसे ‘हाउस आफ हैब्‍जबर्ग’ का निष्‍ठावान नागरिक बन सकता था। उसके पुराने इतिहास और वर्तमान व्‍यवहार ने यह सिद्ध कर दिया था कि विदेशी शासकों ने अपने निजी स्‍वार्थ के लिए जर्मन हितों का बलिदान देने में कोई बुराई नहीं समझी।

एडोल्‍फ को राज‍नीति का इतना ज्ञान नहीं था जितना कि वह कला में परांगत होता जा रहा था। उस समय आस्ट्रिया की प्रांतीय राजधानी में एक मनोरंजन गृह था, जहां लगभग सभी प्रकार की कलाओं का प्रदर्शन होता रहता था। एडोल्‍फ उस समय बारह वर्ष का था, जब उसी थियेटर में ‘विलियम टेल’ नामक नाटक देखा। थियेटर में नाटक देखने का यह उसका पहला अवसर था। कुछ महीनों बाद एडोल्‍फ ने ‘लहिनग्रेक’ नाटक के नायक का अभिनय देखा। वह उसकी ओर आकर्षित हो गया। ‘बेटिउथ मास्‍टर’ के लिए उसके मन में बहुत उत्‍साह था। इस नाटक को देखने के लिए वह बार-बार आकर्षित होता था।

एडोल्‍फ के इसी कला प्रेम ने उसे इच्छित रोजगार के प्रति तीव्र प्रतिरोध की भावना पैदा करने में उसको बहुत सहयोग दिया। इस अल्‍हड़पन व बढ़ती जवानी के साथ-साथ उसका विद्रोह भी जोर पकड़ता चला गया। उसका यह विश्‍वास था कि वह सराकारी नौकरी में हमेशा असंतुष्‍ट रहेगा, वह अब इतना विशाल वृक्ष बन गया था कि अब उसे किसी भी प्रकार का लोभ या डांट की आंधी उसे अपने स्‍थान से हिला नहीं सकती थी।

 

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