योग-मार्ग में एक मान्यता है कि आशिक्षित मानव पशु तुल्य है। जिस प्रकार जन्म से लेकर मृत्यु तक पशु केवल अपनी शारीरिक आवश्यकताओं को पूर्ति के लिए ही सक्रिय होता है, शेष समय में विश्राम करता है, अत: वह चिंताग्रस्त या दु:खी नहीं होता। पशु सिर्फ वर्तमान की चिंता करता है, भूत और भविष्य के लिए परेशान नहीं होता। उसी प्रकार यदि मनुष्य भी रोजी-रोटी, कपड़ा, मकान, पत्नी और परिवार के आगे न सोच पाए, कुछ भी न करे तो ऐसा जीवन पशुवत् ही तो कहा जाएगा।
मानव समाज द्वारा अर्जित आज तक का ज्ञान एक निश्चित पाठ्यक्रम के माध्यम से वर्तमान पीढ़ी को सिखा दिया जाए तो वह कहलाएगी ‘शिक्षा’ और शिक्षित मनुष्य यदि इस शिक्षा का उपयोग केवल शारीरिक सुविधाएं और तृप्ति जुटाने में ही करे तो वह कुएं में मेढक की स्थिति से आगे नहीं गिना जा सकता। जो ‘शिक्षा’ में कुछ और भी शिक्षाएं जोड़ने में समर्थ होगा, वह अपना नाम अमर कर लेगा।
जो व्यक्ति शिक्षा की जानी-मानी दिशाओं को पार कर किसी नई संभावना के द्वार खोल दे, अदृश्य को भी दृष्टि के सम्मुख ला दे वह ‘महामानव’ कहलाएगा। योग की भाषा में शरीर की क्षमताओं को केंद्रीयकरण जिन बिंदुओं पर हो सकता है, उन्हें ‘चक्र’ कहकर पुकारा गया है। योग के ये चक्र ही आधुनिक विज्ञान की भाषा में ग्रंथियां (Glands) कहे जाते हैं।
डिस्कलेमर: धर्म संग्रह, ज्योतिष, स्वास्थ्य, योग, इतिहास, पुराण सहित अन्य विषयों पर Theconnect24.com में प्रकाशित व प्रसारित आलेख, वीडियो और समाचार सिर्फ आपकी जानकारी के लिए है, जो विभिन्न प्रकार के स्त्रोत से लिए जाते हैं। इनसे संबंधित सत्यता की पुष्टि Theconnect24.com नहीं करता है। ज्योतिष और सेहत के संबंध में किसी भी प्रकार का प्रयोग करने से पहले अपने विशेषज्ञ की सलाह अवश्य लें। इस सामग्री को Viewers की दिलचस्पी को ध्यान में रखकर यहां प्रस्तुत किया गया है, जिसका कोई भी scientific evidence नहीं है।