Tuesday, June 17, 2025

मूलाधार चक्र: शक्ति और सामर्थ्य का संग्रह

मूलाधार चक्र: शरीर में मलद्वार तथा मूत्रद्वार के बीच की सीवन के ठीक पीछे सुषुम्‍ना के निचले छोर से निकले ज्ञान-तंतुओं का एक सघन जाल सा फैला है। इसको आकृत‍ि ‘कुंडली’ मारे हुए सांप की तरह प्रतीत होता है। अत: इसे योग में ‘कुडलिनी शक्‍त‍ि’ भी कहा गया है। मूलाधार का अर्थ है- ‘काम-क्रिया’ जो नए शरीर का जन्‍म देने का मूल आधार है।

कुंडल‍िनी शक्‍त‍ि मूलाधार में सोई पड़ी रहती है। यद‍ि इसे जगाया जाय तो यह सुषुम्‍ना मार्ग से ऊपर के केंद्रों की ओर बढ़ सकती है। शरीर सर्वोच्‍च शिखर ‘मस्‍ति‍ष्‍क’ है, जहां से हजारों-हजार ज्ञान-तंतु निकलकर शरीर की समस्‍त क्रियाओं का संतुलन और नियमन करते हैं। हजारों-हजार ज्ञान-तंतुओं का यह शारीर‍िक बिंदु ही ‘सहस्रार चक्र’ कहलाता है। कुंडल‍िनी शक्‍त‍ि को इस ब‍िंदु तक पहुंचाकर ‘मानवता’ की श्रेष्‍ठतम शक्‍त‍ि में बदलना ही इस यात्रा का उद्देश्‍य है।

‘मूलाधार चक्र’ तथा एड्रीनल ग्रंथ‍ि व गोनाड्स ग्रंथ‍ि आसपास ही स्‍थ‍ित है। इनसे रिसने वाले हारमोंस मनुष्‍य में कामवासना, मोह-ममता, भय, घृणा, द्वेष, दुस्‍साहस आद‍ि निषेधात्‍मक भावों को जन्‍म देते हैं। हिंसा, लोभ, अहंकार, अपराध भाव आद‍ि एड्रीनल ग्रंथ‍ि से अधिक हारमोंस निकलने के कारण जनमते हैं। प्रत‍िभा का प्रादुर्भाव भी इन्‍हीं हारमोंस की देन हैं। इस चक्र की दो संभावनाएं हैं

  • हमारे जन्‍म का आधार यह मूलाधार चक्र ही है। माता-पिता की प्रजनन ग्रंथ‍ियों के आपसी तालमेल के कारण, उनके शरीर को एक-एक कोश‍िका संयोग कर हमारे संपूर्ण शरीर-रचना का आधार बनी। हम भी पितृऋृण और मातृऋृण चुकाने के लिए, सृष्‍ट‍ि का अस्‍त‍ित्‍व बनाए रखने के लिए दूसरे शरीर का निर्माण करें।
  • एक दूसरी संभावना और भी है और वह यह है  कि ‘बायोलॉज‍िकल एक्‍सीडेंट’ से हमारा जन्‍म हुआ है। हो ही गया है। अब हम क्‍यों न इस यात्रा के सर्वोच्‍च शिखर ‘समाध‍ि’ या ‘मुक्‍त‍ि’ को छूने का प्रयास करें। आए ही हैं तो क्‍यों न इस सृष्‍ट‍ि का अंत‍िम छोर भी छू डालें। कोल्‍हू के बैल की तरह एक ही दायरे में घूमने को कब तक संपूर्ण यात्रा और ‘नियत‍ि’ मानते रहेंगे ?

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