Monday, August 4, 2025

नींद नहीं हो रही पूरी, रहते हैं तनाव में तो करें प्रेतासन

शारीरिक और मानस‍िक विकृ‍त‍ियाें का प्रतीक है प्रेत। यह भी एक निष्‍प्रयोजन जीवन है। इसे प्रेत योन‍ि कहा जाता है। विश्राम की यह भी एक स्‍थ‍ित‍ि हो सकती है। इसी आधार पर ‘प्रेतासन’ की रचना की गई है।

आसन की आवश्‍यकता

प्रत्‍येक व्‍यक्‍त‍ि के शरीर में भ‍िन्‍नता होती है। इस भ‍िन्‍नता के कारण ही अनेक पुरूणों और महिलाओं को ‘शवासन’ की शास्‍त्रीय विधि‍ सुखद आराम नहीं पहुंचाती। मह‍िलाओं को अपनी शारीर‍िक लज्‍जा और व्‍यावहार‍िक सीमाओं के कारण  ‘शवासन’ निर्लज्जता का प्रतीक प्रतीत होता है। वैसे नींद में किसी को भी अपने शरीर की सुध‍ि नहीं रहती। अत: नींद में यही सब हो सकता है। योगाचार्यों ने साधकों को चुनाव की सुव‍िधा प्रदान करने के लिए ही ‘प्रेतासन’ की भी व्‍यवस्‍था कर दी है। अत: आपको ‘समर्पण आसन’, ‘शवासन’ तथा ‘प्रेतासन’ में से अपने लिए उपयुक्‍त योगासन चुनने में कोई परेशानी नहीं होनी चाह‍िए। जिन्‍हें अपनी किसी अंदरूनी झ‍िझक के कारण, शारीर‍िक अवयवों को पूर्ण शिथ‍िलता या विश्राम न मिल पाने के कारण तनाव बना ही रहता हो, वे प्रेतासन का अभ्‍यास करके देखें, आशा है, शवासन के स्‍थान पर उन्‍हें प्रेतासन ही पसंद आ जाय।

आसन के लाभ 

शवासन से होने वाले समस्‍त लाभ प्रेतासन से भी प्राप्‍त होते हैं। सिर्फ हृदय के रोग‍ियों को थोड़ा कम लाभ प्राप्‍त हो पाता है। फ‍िर भी यह निरापद आसन है।

आसन की विध‍ि

चौपरत कंबल, मुलायम गद्दा, समतल भू‍म‍ि, फर्श अभवा तख्‍त पर अपनी मनपसंद करवट से लेट जाइए। इस स्‍थ‍ित‍ि में नीचे वाला पैर पूरी लंबाई में फैला हुआ सीधा रहेगा। नीचे वाला हाथ शरीर से सटा हुआ, स्‍वतंत्र स्‍थ‍ित‍ि में पीठ की ओर से नितंबोंं के पास तक लगभग सटा हुआ सा रहेगा। ह‍थेली सुव‍िधानुसान खुली अथवा अधखुली सी आकाश की ओर रहेगी। ऊपरवाला पैर घुटने से मोड़कर कमर की सीध में अथवा छाती के पास तक, जैसी भी स्‍थ‍ित‍ि आपको सुखद और सुव‍िधाजनक लगती हो, उस स्‍थ‍ित‍ि में आगे की ओर रखें।

ऊपरवाला हाथ मुख के शवासन की तरह ही एक-एक अंग का निरीक्षण अंतश्‍चक्षुओं से करते हुए, उन्‍हें पूर्णत: शिथ‍िल, तनाव मुक्‍त तथा भारहीन हाेने का निर्देश देते हुए, उन्‍हें सहज स्‍थ‍ित‍ि में रखते हुए क्रमश: पैर के पंजों, टखनों, पिंडल‍ियों, घुटनों, जांघों, नितंबों, कमर-पेट, पीठ-छाती, हथेल‍ियों, कलाइयों, कोहन‍ियों, भुजाओं, कंधों, गर्दन, सिर, आंखों, माथा आद‍ि को श‍िथ‍ि‍ल करते हुए ही ऊप तक निरीक्षण कीज‍िए।अब अपने शरीर का सारा भार पृथ्‍वी पर डालते हुए प्रत्‍येक अंग को इतना अध‍िक ढीला छोड़ दीज‍िए, जैसे कि वह खंड-खंड होकर ब‍िखर चुका हो, एकदम न‍िर्जीव हो। सबसे अंत में श्‍वा के आने-जाने का निरीक्षण करते हुए प्रत्‍येक नि:श्‍वास के साथ शरीर की थकान, ऊब, चिंताएं और विचार विसर्ज‍ित करते जाइए।


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