Monday, July 21, 2025

संतुल‍ित जीवन के संरक्षक, जान‍िए रत्‍नों का महत्‍व

रत्‍न की अंगूठ‍ियां ज्‍यादातर सोना, चांदी, तांबा, शीशा, पीतल जैसी धातुओं में ही बनाई जाती है और रत्‍नों का प्रभाव हमारें जीवन में ग्रहों की चाल पर न‍िर्भर करता है। रत्‍न जीवन में उपयोगी ही नहीं आवश्‍यक भी है। बालक के जन्‍म लेने के सवा माह उपरांत भारतवर्ष में लगभग सभी क्षेत्रों में, बालक को मूंगा धारण कराये जाने से यह प्रमाण‍ित होता है कि रत्‍न हम सब के जीवन में जरूरी है।

अब यहां प्रश्‍न उठता है क‍ि रत्‍न और उसका पर‍िचय क्‍या है? ‘रत्‍न’ क‍िसे कहते हैं? रत्‍न शब्‍द का व‍िश्‍लेष रूप में प्रयोग किया जाता है जो विश‍िष्‍ट का द्योतक है, जैसे पुत्र पैदा होता है तो ज्‍योत‍िषी या पंड‍ित पुत्र को, प‍िता के लिए ‘पुत्र रत्‍न’ जन्‍म कुण्‍डली में लिखकर देते हैं यथा ‘पुत्र रत्‍न उत्‍पन्‍न’। जैसे भारत सरकार द्वारा विश‍िष्‍ट कार्यों के लिए महापुरूषों को ‘भारत रत्‍न’ की उपाध‍ि। इस तरह से हम कह सकते है ‘रत्‍न’ शब्‍द श्रेष्‍ठत्‍व का पर्यायवाची है।

पुरूषों में श्रेष्‍ठ किसी व्‍यक्‍त‍ि के लिए ‘नवरत्‍न’, स्‍त्र‍ियों में श्रेष्‍ठ क‍िसी मह‍िला के लिए ‘नारी रत्‍न’, धार्म‍िक क्षेत्र में विश‍िष्‍ट स्‍थान रखने वाले व्‍यक्‍त‍ि को ‘धर्म रत्‍न’, उत्‍तम कव‍ि को ‘कव‍ि रत्‍न’। इसी प्रकार उत्‍तम कलाकार को ‘कला शिल्‍पी रत्‍न’ से संबोध‍ित करके सम्‍मान‍ित किया जाता है।

प्राचीन काल में सोना-चांदी आद‍ि मूल्‍यवान धातुओं को भी रत्‍न कहा जाता था, इसका उदाहरण ‘पंचरत्‍न’ के रूप में दिखता है ज‍िसे आज भी गंगा-स्‍थान में कुंभ के अवसर पर, घाट के अंदर रख करके स्‍नान करते हैं या दान देते हैं। पांच रत्‍न में सोना, कुटका, चांदी का कुटका, तांबे का कुटका, मूंगा, मोती यह पांचों वस्‍तुयें मिलकर ‘पंचरत्‍न’ कहलाती हैं।

पुराने समय में मूल्‍यवान हाथी, घोड़ा तथा सरलता से न प्राप्‍त होने वाली वस्‍तुओं की भी गणना रत्‍नों में की जाती थी। अत्‍यंत प्राचीन काल से ही भूगर्भ में, पहाड़ों पर तथा समुद्र में प्राप्‍त होने वाले हीरा, मोती, माण‍िक्‍य आद‍ि नगीने को रत्‍न कहते हैं।आधुन‍िक युग में मूल्‍यवान वस्‍तुओ तथा मूल्‍यवान धातुओं (सोना, चांदी) को रत्‍न के नाम से ही जाना जाता है। केवल ‘जवाहरात’ (हीरा, मोती, माण‍िक्‍य, पन्‍ना, नीलम, पोखराज, गोमेद, मूंगा, लहसुन‍िया) आद‍ि को रत्‍न के नाम से पुकारा जाता है।

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