Mystery of gems: जब महाबली दैत्य वृत्रासुर ने देवलोक पर आक्रमण किया, उस समय भगवान विष्णु के आदेश पर, देवताओं के राजा इन्द्र ने महार्षि दधीचि की हड्डियों से ‘वज्र’ नामक अस्त्र का निर्माण किया और उस अस्त्र से वृत्रासुर को मार गिराया। कहते हैं कि अस्त्र निर्माण के समय महर्षि दधीचि की हड्डियों के जो सूक्ष्म खण्ड पृथ्वी पर गिरे उनसे ही हीरे तथा अन्य रत्नों की खानें प्रकट हुई।
समुद्र मंथन
जिस समय समुद्र-मंथन से अमृत कलश निकला, दैत्य उस घड़े को लेकर भागे। यह देखकर देवताओं ने उनका पीछा किया। उस छीना-झपटी में अमृत के कुछ कण छलक कर पृथ्वी पर गिर पड़े, जो कलांतर से विविध रत्नों में परिणत हो गये और इस प्रकार से रत्नों की उत्पत्ति हुई।
- दैत्यराज बलि: दैत्यराज बलि से वामन वेषधारी विष्णु ने साढ़े तीन पग पृथ्वी मांगा। श्री विष्णु ने 3 पग में तीन लोक नाप लिया और शेष आधे पग में उन्होंने दैत्यराज के कहने पर उसके सिर को नापा था। उस समय वामन भगवान के श्री चरण का स्पर्श होने से राजा बलि का संपूर्ण शरीर रत्नमय हो गया। जब देवराज इन्द्र ने दैत्यराज बलि के उस रत्नमय शरीर के ऊपर अपने वज्र से प्रहार किया, जिसके कारण वह खण्ड-खण्ड हो गया और उससे विभिन्न प्रकार के रत्न प्रकट हुये।
- गरूण पुराण: गरूण पुराण के अनुसार प्राचीन काल में बल नामक एक दैत्य ने देवलोक पर चढ़ाई करके जब समस्त देवताओं को हरा दिया, जब देवराज इन्द्र ब्राह्मण का रूप धरकर उस दैत्यराज के पास गये और यज्ञ पशु बनाने की भिक्षा मांगी। महाबली दैत्यराज ने इन्द्ररूपी ब्राह्मण की प्रार्थना स्वीकार कर ली तब देवताओं ने उसका वध कर दिया। उस दैत्यराज के अंग जहां-जहां गिरे, पृथ्वी पर वहां-वहां रत्नों के भण्डार बने। जानकारी के लिये आपको बता दें कि तीन लोक हैं-स्वर्गलोक, पाताल लोक, मृत्युलोक। इन तीन लोकों के रत्नों के संबंध में हम आपको आगे जानकारी देंगे।
स्वर्गलोक के रत्न
- चिंंतामणि: इसका रंग श्वेत होता है। इसे स्वयं ब्रह्माजी धारण करते हैं। यह वांछित कार्य को शीघ्र ही संपन्न कर देती है।
- कौस्तुभ मणि: इसका रंग पद्य के समान है, यह मणि स्वयं में सैकड़ों सूर्यों के प्रकाश लिए हुए है। यह रत्न सागर-मंथन के समय ‘लक्ष्मी’ जी के साथ ही प्रकट हुआ था, इसे भगवान विष्णु स्वयं धारण किए रहते हैं।
- रूद्रमणि: यह चमकीली मणि है जो स्वर्णावत प्रकाशमान तीन रेखाओं से युक्त है, इसे स्वयं शिवजी धारण करते हैं। इसे शिवमणि भी कहते हैं।
- स्यमन्तक मण: नीले रंग की इन्द्रधनुष के समान चमकीली इस मणि से तेज किरण निकलती है। इसे सूर्य भगवान स्वयं धारण किया करते हैं।
पाताल लोक के रत्न
विश्व में प्रमुखत: 9 जाति के सर्प हैं जिनके रंग भी अलग-अलग हैं। जैसे काला, नीला, पीला, हरा, मटिया, श्वेत, लाल, गुलाबी दूधिया। इन सर्पों के पास स्वयं के रंग के समान ही मणियां हैं जो पाताल लोक में वासुकी नाग के संरक्षण में है। इन्हीं मणियों की रोशनी से सर्प अपना समस्त कार्य करते हैं।
मृत्युलोक के रत्न
शिव जी ने कहा-हे पार्वती! अब मैं तुम्हें मृत्युलोक के रत्नों के बारे में बतलाता हूं। राजा बलि की कथा से कौन परिचित नहीं है। भगवान विष्णु ने वामन अवतार धारण करके साढ़े तीन पग पृथ्वी मांगी। श्री विष्णु ने तीन पग में तीनों लोक नापे और आधे पग में उनका शरीर।
राजा बलि ने अपना शरीर वामन रूपी विष्णु को समर्पित कर दिया। भगवान विष्णु के स्पर्श से राजा बलि का शरीर रत्नमय हो गया और इन्द्र के वज्र प्रहार से सभी तत्वों से अलग-अलग रंग के रत्न प्रकट हुए। तब शिवजी ने उस शरीर के अंग-प्रत्यंगों को अपने चार त्रिशुलों पर स्थित कर लिया और उस पर नवग्रहों के रत्न-उपरत्न, नवग्रह एवं बारह राशियों का प्रभाव स्थापित किया। इस नवग्रहों के अनुसार मृत्युलोक में समस्त प्राणियों को शुभ फल प्रदान करते हैं। राजा बलि के शरीर से मुख्य रूपों से 21 रत्न प्रकट हुए-
- माणिक- यह बलि के स्तन से उत्पन्न हुआ।
- मोती- यह बलि के मन से प्रकट हुआ।
- प्रबाल- बलि के कपाल से, शस्त्र-प्रहार से जो रूधिर निकला, वह बहकर समुद्र में गिरा, उससे यह रत्न उत्पत्ति हुई।
- पन्ना- राजा बलि के पित्त से पृथ्वी पर पन्ने की खाने प्रकट हुई।
- पुखराज- यह रत्न राजा बलि के मांस से उत्पन्न हुआ।
- हीरा- बलि के सिर के टुकड़े से यह रत्न बना, जो सभी रत्नों में श्रेष्ठ कहा जाता है।
- नीलम- राजा बलि के नेत्रों से नीलम बना।
- गोमेद- बलि के मेदा से यह रत्न बना।
- लहसुनिया- बलि के यज्ञोपवीत के टुकड़े हुए तो वे सूत्र मिलकर रत्न के रूप में प्रकट हुए।
- फिरोजा- बलि की नसों से इस रत्न की उत्पत्ती हुई।
- चंद्रकाता- यह बलि के नेत्रों में प्रकाश से उत्पन्न हुई।
- घृतकुमारी- यह असुर की आंख से बनी।
- तैल मणि- बलि की त्वचा से इसकी उत्पत्ती हुई है।
- भीष्मक- बलि का सिर कटकर जमीन पर गिरने से इस मणि की उत्पत्ति हुई।
- उपलक मणि- दैत्यराज के कफ से इसका जन्म हुआ।
- स्फटिक मणि- बलि के पसीने से इसका प्रादुर्भाव हुआ।
- पावस- बलि के पेट फटे हुए हृदय से इसका जन्म हुआ।
- उलूम मणि- बलि के जीभ से इसकी उत्पत्ती हुई है।
- लाजवती मणि- बलि के मल से इसका जन्म हुआ है।
- मासर मणि- बलि के मल से इसका भी जन्म हुआ है।
- ईसब संग- बलि के वीर्य से इस मणि की उत्पत्ति हुई है। इस तरह मृत्युलोक में 21 रत्न उत्पन्न हुए।
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