सोमनाथ मंदिर, गुजरात के सौराष्ट्र क्षेत्र के वेरावल बंदरगाह के पास स्थित है और इसे भारत के बारह ज्योतिर्लिंगों में पहला और सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है। इस मंदिर का इतिहास अत्यंत प्राचीन और समृद्ध है, जिसमें धार्मिक, सांस्कृतिक, और राजनीतिक घटनाओं की एक लंबी श्रृंखला शामिल है।
इतिहास के पन्ने
सोमनाथ मंदिर का इतिहास हजारों वर्षों पुराना है। इसे चंद्रमा के देवता सोम द्वारा स्थापित किया गया माना जाता है। पौराणिक कथा के अनुसार, चंद्रदेव को श्राप से मुक्त होने के लिए भगवान शिव की आराधना करनी पड़ी और इस प्रकार शिवलिंग की स्थापना की गई, जिसे ‘सोमनाथ’ नाम दिया गया।
महाभारत और पुराणों में उल्लेख
महाभारत और स्कंद पुराण जैसे प्राचीन ग्रंथों में सोमनाथ मंदिर का उल्लेख मिलता है। इन ग्रंथों में इसे बहुत ही पवित्र और शक्तिशाली स्थल के रूप में वर्णित किया गया है, जहाँ कई महान ऋषि और मुनि तपस्या के लिए आए थे।
मध्यकालीन इतिहास
मध्यकालीन काल में, सोमनाथ मंदिर को कई बार विदेशी आक्रमणकारियों ने लूटा और नष्ट किया। सबसे प्रमुख आक्रमण महमूद गजनवी द्वारा 1024 ईस्वी में हुआ था, जब उसने मंदिर को लूटा और इसे विध्वंस कर दिया। इसके बाद, मंदिर का कई बार पुनर्निर्माण हुआ।
पुनर्निर्माण के प्रयास
मंदिर का पुनर्निर्माण और संरक्षण विभिन्न शासकों और भक्तों द्वारा समय-समय पर किया गया। सोलंकी वंश के राजा भीमदेव प्रथम ने 11वीं शताब्दी में इसे पुनर्निर्मित कराया। इसके बाद, 14वीं शताब्दी में दिल्ली के सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी ने इसे फिर से नष्ट किया। 16वीं शताब्दी में गुजरात के मुग़ल गवर्नर द्वारा इसका पुनर्निर्माण किया गया।
आधुनिक काल
स्वतंत्रता के बाद, सरदार वल्लभभाई पटेल ने सोमनाथ मंदिर के पुनर्निर्माण के लिए एक अभियान शुरू किया। 1951 में, तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने नए मंदिर की आधारशिला रखी। इस नए मंदिर का निर्माण चालुक्य शैली में किया गया और इसे 1995 में जनता के लिए खोला गया।
स्थापत्य कला और संरचना
सोमनाथ मंदिर की स्थापत्य कला अद्वितीय है। इसका निर्माण चालुक्य शैली में किया गया है, जिसमें पत्थरों की नक्काशी और भव्य शिखर प्रमुख हैं। मंदिर के गर्भगृह में शिवलिंग स्थापित है, जो भक्तों के लिए अत्यंत पूजनीय है।
धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व
सोमनाथ मंदिर न केवल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि इसका सांस्कृतिक महत्व भी अत्यधिक है। यहाँ हर वर्ष लाखों श्रद्धालु दर्शन के लिए आते हैं और विभिन्न धार्मिक उत्सवों में भाग लेते हैं। महाशिवरात्रि और कार्तिक पूर्णिमा जैसे त्योहार यहाँ धूमधाम से मनाए जाते हैं।
संरक्षण और विकास
वर्तमान में, सोमनाथ मंदिर ट्रस्ट द्वारा संरक्षित और प्रबंधित किया जाता है। सरकार और विभिन्न धार्मिक संगठनों के सहयोग से मंदिर का संरक्षण और विकास कार्य निरंतर जारी है।
प्रमुख आक्रमण
गुजरात का सोमनाथ मंदिर भारतीय इतिहास के सबसे प्रमुख धार्मिक स्थलों में से एक है, जिसे कई बार विदेशी आक्रमणकारियों ने लूटा और नष्ट किया। इस मंदिर पर कुल मिलाकर छह प्रमुख आक्रमण हुए, जिनमें से कुछ अत्यंत विध्वंसकारी थे।
- महमूद गजनवी (1024 ईस्वी): सोमनाथ मंदिर पर सबसे पहला और प्रमुख आक्रमण महमूद गजनवी ने 1024 ईस्वी में किया। उसने मंदिर को लूटा, उसकी संपत्ति को हड़प लिया और इसे नष्ट कर दिया।
- अलाउद्दीन खिलजी (1299 ईस्वी): दिल्ली के सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी के सेनापति उलुग खान ने 1299 ईस्वी में सोमनाथ मंदिर पर आक्रमण किया और इसे विध्वंस कर दिया।
- मुगल शासक (14वीं और 15वीं शताब्दी): 14वीं और 15वीं शताब्दी में मुगल शासकों ने भी मंदिर को लूटा और नष्ट किया।
- औरंगजेब (1665 ईस्वी): मुगल सम्राट औरंगजेब ने 1665 ईस्वी में मंदिर को फिर से नष्ट कर दिया।
सोमनाथ मंदिर का इतिहास अद्वितीय है, जो भारतीय संस्कृति, धर्म और स्थापत्य कला की समृद्ध धरोहर को दर्शाता है। यह मंदिर न केवल आस्था का केंद्र है, बल्कि भारतीय इतिहास की अनेक महत्वपूर्ण घटनाओं का साक्षी भी हैं। इसके पुनर्निर्माण और संरक्षण के प्रयास इसे आने वाली पीढ़ियों के लिए एक महत्वपूर्ण धरोहर के रूप में संरक्षित रखने में सहायक हैं।
Theconnect24 के व्हॉट्सएप चैनल से जुड़ने के लिए यहां क्लिक करें
डिस्कलेमर: धर्म संग्रह, ज्योतिष, स्वास्थ्य, योग, इतिहास, पुराण सहित अन्य विषयों पर Theconnect24.com में प्रकाशित व प्रसारित आलेख, वीडियो और समाचार सिर्फ आपकी जानकारी के लिए है, जो विभिन्न प्रकार के स्त्रोत से लिए जाते हैं। इनसे संबंधित सत्यता की पुष्टि Theconnect24.com नहीं करता है। ज्योतिष और सेहत के संबंध में किसी भी प्रकार का प्रयोग करने से पहले अपने विशेषज्ञ की सलाह अवश्य लें। इस सामग्री को Viewers की दिलचस्पी को ध्यान में रखकर यहां प्रस्तुत किया गया है, जिसका कोई भी scientific evidence नहीं है।