जहर मोहरा एक प्राकृतिक औषधि है, जिसे विषहरण के लिए प्रयोग किया जाता है। यह विशेष प्रकार के पत्थर या खनिज के रूप में पाया जाता है, जिसका उपयोग प्राचीन काल से विष को निष्क्रिय करने के लिए किया जाता रहा है। इसे आमतौर पर सांप या अन्य जहरीले जीवों के काटने के बाद प्रयोग किया जाता है।
जहर मोहरा मुख्य रूप से भारत और इसके आस-पास के क्षेत्रों में पाया जाता है। इसके उपयोग के लिए इसे पीसकर या पाउडर के रूप में घाव पर लगाया जाता है। इसका सही और सुरक्षित उपयोग चिकित्सा विशेषज्ञ की सलाह से ही करना चाहिए।
जहर मोहरा अफगानिस्तान और भारत में अधिक मिलता है। यह हरा, पीला, श्वेत एवं हरा पीला मिश्रित, धानी रंग का होता है। इसके धारण करने से बिच्छू आदि जहरीले कीड़ों के काटने पर भी विष का प्रभाव नहीं होता है। इससे बने प्याले में अगर विष डालकर रखा जाये तो वह विष अपना प्रभाव खो देता है।
इसके आयुर्वेद में भिन्न-भिन्न कंपनियों के अलग-अलग योग हैं। जैसे-वैद्यनाथ का जहर मोहरा पिष्टी और भष्म दोनों प्राप्त होते हैं। इसकी भस्म व पिष्टी न बहुत गर्म होती है और न ठण्डी। एक से तीन रत्ती तक की मात्रा में मलाई के साथ सुबह, शाम लेने से हार्ट की घबराहट, दिमागी परेशानी, बच्चों का सूखा रोग, कहीं पर होने वाली जलन शांत हो जाती है। जीर्ण ज्वर में, अजीर्ण में, हैजा, बच्चों में पीले हरे दस्त आने पर लीवर संबंधी रोग, सूजन आदि होने पर अवस्था के अनुसार 1.2 से 2 रत्ती तक शहद के साथ लेने से आराम मिलता है।
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जीर्ण ज्वर में, अजीर्ण में, हैजा, बच्चों में पीले हरे दस्त आने पर लीवर संबंधी रोग, सूजन आदि होने पर अवस्था के अनुसार 1.2 से 2 रत्ती तक शहद के साथ लेने से आराम मिलता है।
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