Wednesday, April 16, 2025

गली-मोहल्लों में सन्नाटा, क्या हमसे छूट गया कुछ?

शहरों के गली-मोहल्लों की रौनक धीरे-धीरे गायब होती जा रही है, और इसके साथ ही लोगों के बीच का आपसी जुड़ाव भी कमजोर पड़ता दिख रहा है। एक समय था जब गली-मोहल्ले सिर्फ रहने की जगह नहीं थे, बल्कि वे एक परिवार की तरह होते थे। लोगों के बीच आपसी संवाद, मेलजोल और सहयोग की भावना प्रबल थी। पड़ोसी एक-दूसरे के सुख-दुख में शामिल होते थे और किसी की परेशानी में तुरंत मदद के लिए आगे आते थे।

बदलती जीवन शैली ने बना दिया व्‍यस्‍त

लेकिन अब समय बदल गया है। शहरीकरण और आधुनिक जीवनशैली ने लोगों के जीवन को बेहद व्यस्त बना दिया है। हर कोई अपनी दुनिया में इतना उलझा हुआ है कि अब किसी के पास दूसरों के लिए समय नहीं बचा है। तकनीकी विकास और सोशल मीडिया के बढ़ते उपयोग ने भी इस दूरी को और बढ़ा दिया है। लोग भले ही वर्चुअल दुनिया में जुड़े रहते हैं, लेकिन वास्तविक जीवन में उनके बीच का संवाद कम होता जा रहा है।

गली-मोहल्लों की वह पुरानी रौनक, जिसमें बच्चे खेलते थे, महिलाएँ एक-दूसरे के साथ गपशप करती थीं, और पुरुष शाम को बैठकर दिनभर की बातें करते थे, अब कहीं खो सी गई है। अब न तो वो चहल-पहल दिखती है और न ही आपसी मेलजोल। ऐसा लगता है जैसे शहर की भागदौड़ और एकाकीपन ने इस रौनक को निगल लिया है।

जीवन की असली खुशी

गली-मोहल्लों की खोई हुई रौनक को वापस लाने के लिए सबसे पहले हमें अपनी प्राथमिकताओं पर ध्यान देना होगा। हमें समझना होगा कि जीवन की असली खुशी सिर्फ भौतिक संपत्ति और व्यक्तिगत सफलताओं में नहीं, बल्कि आपसी रिश्तों और सामुदायिक जुड़ाव में भी है। यह जुड़ाव हमें एक दूसरे के साथ मिलकर रहने, सहयोग करने, और कठिन समय में सहारा देने की प्रेरणा देता है।

इसके लिए जरूरी है कि हम अपने व्यस्त समय से थोड़ा वक्त निकालें और अपने आसपास के लोगों से जुड़ने की कोशिश करें। चाहे वह सुबह की चाय हो, शाम की सैर हो, या सप्ताहांत की बैठकी—छोटे-छोटे मौकों पर भी हम एक-दूसरे से मिल सकते हैं। बच्चों को भी हमें इस माहौल का हिस्सा बनाना चाहिए, ताकि वे बचपन से ही आपसी सहयोग और सामुदायिक जीवन के महत्व को समझ सकें।

आयोजनों से होता है जुड़ाव 

साथ ही, हमें सामुदायिक आयोजनों को बढ़ावा देना चाहिए, जैसे कि त्योहारों पर मिलकर उत्सव मनाना, खेल-कूद प्रतियोगिताओं का आयोजन करना, या फिर मोहल्ले में किसी विशेष अवसर पर सांस्कृतिक कार्यक्रम करना। ऐसे आयोजनों से न केवल आपसी जुड़ाव बढ़ेगा, बल्कि एकता और सामुदायिक भावना भी मजबूत होगी।

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यह परिवर्तन केवल गली-मोहल्लों की सांस्कृतिक पहचान के लिए ही नहीं, बल्कि समाज के ताने-बाने के लिए भी चिंताजनक है। हमें इस बदलते दौर में फिर से उन मूल्यों और संवेदनाओं को जीवित करने की जरूरत है, जो हमें इंसानियत से जोड़ते हैं। आपसी प्रेम, सहयोग और सद्भावना को फिर से बढ़ावा देकर ही हम गली-मोहल्लों की खोई हुई रौनक को वापस ला सकते हैं।


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Amit Mishra
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अमित मिश्रा को मीडिया के विभ‍िन्‍न संस्‍थानों में 15 वर्ष से ज्‍यादा का अनुभव है। इन्‍हें Digital के साथ-साथ Print Media का भी बेहतरीन अनुभव है। फोटो पत्रकारिता, डेस्‍क, रिपोर्ट‍िंंग के क्षेत्र में कई वर्षों तक अमित मिश्रा ने अपना योगदान दिया है। इन्‍हें तस्‍वीरें खींचना और उनपर लेख लिखना बेहद पसंद है। इसके अलावा इन्‍हें धर्म, फैशन, राजनीति सहित अन्‍य विषयों में रूच‍ि है। अब वह TheConnect24.com में बतौर डिज‍िटल कंटेंट प्रोड्यूसर कार्यरत हैं।
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