Sunday, June 15, 2025

Negative effects of pooja room in southwest: नैऋत्य दिशा में भूलकर भी न बनाएं मंदिर-जानिए इसके दुष्परिणाम

Negative effects of pooja room in southwest: पूजा घर घर की पवित्रता, ऊर्जा और आध्यात्मिक शक्ति का केंद्र होता है। यदि इसे सही दिशा में न बनाया जाए, तो यह सकारात्मकता फैलाने की बजाय नकारात्मक प्रभाव दे सकता है। वास्‍तु शास्‍त्र के अनुसार नैऋत्य कोण (दक्षिण-पश्चिम दिशा) को पूजा घर के लिए अत्यंत अशुभ माना गया है। यह दिशा स्थिरता, भारी ऊर्जा और मृत आत्मा की दिशा मानी जाती है। इस ब्लॉग में हम जानेंगे कि आखिर वास्‍तु के अनुसार नैऋत्य कोण में पूजा घर क्यों नहीं बनाना चाहिए।

नैऋत्य कोण-भारी और स्थिर ऊर्जा का स्थान

नैऋत्य कोण, जो कि दक्षिण और पश्चिम के बीच का हिस्सा है, वास्‍तु में भारी ऊर्जा (Dense Energies) से युक्त माना जाता है। यह दिशा भूमि तत्व (Earth Element) से जुड़ी है और इसमें स्थिरता, मजबूती और गहराई का प्रभाव होता है। ऐसे में यदि पूजा घर यहां हो, तो वहां प्रवाहित होने वाली हल्की, पवित्र और दिव्य ऊर्जा बाधित हो जाती है। पूजा का उद्देश्य होता है ऊर्जा को ऊपर उठाना और वातावरण को शुद्ध करना, लेकिन भारी ऊर्जा से यह अवरुद्ध हो सकता है। नतीजा यह होता है कि मन एकाग्र नहीं होता और ईश्वर से जुड़ाव में बाधा आती है।

मानसिक अशांति और ध्यान में विघ्न

वास्‍तु अनुसार नैऋत्य कोण में पूजा घर होने से घर के सदस्यों को मानसिक शांति प्राप्त नहीं होती। ध्यान या प्रार्थना के समय व्यक्ति को बेचैनी, अनजाना डर या असहजता महसूस हो सकती है। यह इसलिए होता है क्योंकि इस दिशा में स्वाभाविक रूप से ऐसी ऊर्जा प्रवाहित होती है जो चिंतन और साधना में बाधा पहुंचा सकती है। ध्यान का मुख्य उद्देश्य है चित्त की शांति और ईश्वर से जुड़ाव, लेकिन जब स्थान ही प्रतिकूल हो तो मन बार-बार भटकता है। यह स्थिति लंबे समय तक बनी रही तो इसका असर मानसिक स्वास्थ्य पर भी पड़ सकता है।

परिवार में बढ़ती है कलह और असंतोष

नैऋत्य कोण में स्थित पूजा घर का प्रभाव सिर्फ आध्यात्मिक नहीं, बल्कि सामाजिक और पारिवारिक जीवन पर भी दिखने लगता है। इस दिशा की ऊर्जा पारिवारिक स्थिरता और नेतृत्व से जुड़ी होती है। यदि यहां पूजा स्थान बना दिया जाए, तो यह संतुलन बिगाड़ सकता है। घर के मुखिया की सोच में भारीपन, भ्रम या तनाव आ सकता है, जिससे निर्णय लेने में परेशानी होती है। कई बार देखा गया है कि ऐसे घरों में पति-पत्नी या माता-पिता और बच्चों के बीच तकरार और मतभेद बढ़ जाते हैं।

पूजा में बार-बार आती है बाधा

जब पूजा घर गलत दिशा में होता है, तो उसमें न तो शांति होती है और न ही स्थायित्व। नैऋत्य कोण में बने मंदिर में पूजा के दौरान मन में एकाग्रता की कमी, किसी न किसी कारणवश ध्यान भटकना, आरती या मंत्रोच्चारण में त्रुटियां होना आम हो जाता है। कई बार दीपक बार-बार बुझना, धूप-अगरबत्ती का सुगंध न टिकना या वातावरण में भारीपन महसूस होना -ये सभी संकेत होते हैं कि स्थान वास्‍तु के अनुकूल नहीं है। यदि इन संकेतों को नजरअंदाज किया गया, तो पूजा का प्रभाव धीरे-धीरे कम होने लगता है।

पूजा घर के लिए सर्वोत्तम दिशाएं

वास्‍तु शास्‍त्र के अनुसार, पूजा घर के लिए सर्वोत्तम दिशा ईशान कोण (उत्तर-पूर्व) है। यह दिशा जल तत्व से जुड़ी होती है और यह मानसिक शांति, ईश्वर का आशीर्वाद तथा आध्यात्मिक उन्नति की दिशा मानी जाती है। इसके अलावा पूर्व दिशा और उत्तर दिशा भी अनुकूल मानी जाती है, विशेषकर तब जब घर में पर्याप्त स्थान न हो। पूजा करते समय व्यक्ति का मुख पूर्व या उत्तर की ओर होना चाहिए। इससे ध्यान केंद्रित रहता है, सकारात्मक ऊर्जा प्रवाहित होती है और परिवार में सुख-शांति बनी रहती है। इसलिए घर बनवाते समय या मंदिर की स्थापना से पहले वास्‍तु का ध्यान अवश्य रखें।

वास्‍तु शास्‍त्र के अनुसार पूजा घर एक ऊर्जा केंद्र है, और इसकी दिशा बेहद मायने रखती है। नैऋत्य कोण में बना पूजा स्थान न केवल आध्यात्मिक उन्नति में बाधा बनता है, बल्कि यह मानसिक, पारिवारिक और भावनात्मक स्तर पर भी अशुभ प्रभाव डाल सकता है। यदि आप चाहते हैं कि आपके घर में सुख, शांति और समृद्धि बनी रहे, तो पूजा घर की दिशा का चुनाव समझदारी से करें।

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Amit Mishra
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अमित मिश्रा को मीडिया के विभ‍िन्‍न संस्‍थानों में 15 वर्ष से ज्‍यादा का अनुभव है। इन्‍हें Digital के साथ-साथ Print Media का भी बेहतरीन अनुभव है। फोटो पत्रकारिता, डेस्‍क, रिपोर्ट‍िंंग के क्षेत्र में कई वर्षों तक अमित मिश्रा ने अपना योगदान दिया है। इन्‍हें तस्‍वीरें खींचना और उनपर लेख लिखना बेहद पसंद है। इसके अलावा इन्‍हें धर्म, फैशन, राजनीति सहित अन्‍य विषयों में रूच‍ि है। अब वह TheConnect24.com में बतौर डिज‍िटल कंटेंट प्रोड्यूसर कार्यरत हैं।
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