Adolf Hitler: हिटलर को अध्यापाक द्वारा पढ़ाया गया पाठ वह एक ही बार में याद कर लिया करता था। वह बचपन से ही बहुत कुशाग्र बुद्धि का बालक था। यही नहीं, उसमें एक विशेष गुण और था वह अपनी वाणी से शीघ्र ही सामने वाले को प्रभावित कर लिया करता था। उसकी यह प्रतिभा उसकी बढ़ती आयु के साथ प्रखर होती चली जा रही थी। एडोल्फ की मां का सपना एडोल्फ को एक महान व्यक्ति बनाना था। वह एडोल्फ को अधिकतर वीरता एवं साहस से भरपूर कहानियां सुनाकर उसे उन्हीं के सामन साहसी और वीर बनने के लिए प्रेरित किया करती थी। उसकी मां को एडोल्फ का शरारती बच्चों के साथ खेलना जरा भी पसंद नहीं था।
एडोल्फ हिटलर की मां ने उसको बपचन में जो वीरता और साहस की कहानियां सुनायी थीं, यह उन्हीं का प्रभाव था कि उसे हार से सख्त नफरत थी। वह हर क्षेत्र में विजयी रहता था। एडोल्फ की अक्सर शरारती बच्चों के साथ बहस होती रहती थी, जिसके कारण उसके अंदर बेहिचक बोलने का गुण विकसित होता जा रहा था। स्कूल में जहां उसकी बुद्धिमता और कुशाग्रता के कारण ईर्ष्या रखने वाले विद्यार्थी थे, वहीं उसके अनकों मित्र थे जो एडोल्फ को बहुत पसंद करते थे।
हिटलर स्कूल में अपने सहपाठियों के साथ खेलता और घर आकर अपनी छोटी बहन पौला के साथ समय बिताता था। वह पौला को बहुत स्नेह करता था। वह मां से नजर बचाकर अपने पड़ोसी बच्चों के साथ करीब के जंगल में खेलने चला जाता था। इतना सब होने के बाद भी वह अपनी पढ़ाई के प्रति लापरवाह नहीं था। वह पूरे ध्यान से पढ़ता था, यही कारण था कि वह प्राथमिक शिक्षा में प्रथम आया था। एक कुशाग्र बालक होने के कारण एडोल्फ ने बचपन से ही अपने जीवन-लक्ष्य की ओर आगे बढ़ना शुरू कर दिया था।
एडोल्फ हिटलर ने अपने भावी जीवन में कभी व्यवसाय करने का सोचा भी नहीं था। यही वजह थी कि उसे अपने पिता के व्यवसाय से कोई दिलचस्पी नहीं थी। जैसे-जैसे उसकी आयु बढ़ती जा रही थी, वैसे-वैसे वह अपने भीतर छिपी प्रतिभा को पहचानने लगा था। वह अपने साथ के बच्चों के लिए अच्छा नेता बनकर उभर रहा था। वह अपनी उम्र के बच्चों से अपनी बात मनवाने के गुण से परिचित था, इसलिए वह जो कुछ भी अपने साथियों से कहता था, सब उसका अनुसरण करते थे। अपनी जोरदार बहस के कारण तथा अपने से अधिक उम्र के व्यक्ति के सामने बेहिचक बोलने से उसे एक अलग ही पहचान मिल रही थी।
एडोल्फ ने कुछ ही समय में सरलता से इतना कुछ सीख लिया था कि किसी और बच्चे को वहां तक पहुंचने में वर्षों लग जाते हैं। एडोल्फ को गिरजाघरों में होने वाली सभाएं बेहद पसंद थी। इसलिए वह खाली समय में लम्बांच के गिरजाघर में चला जाता था और वहां के सामूहिक गान में लोगों का साथ देता था। प्रार्थनाओं के मनमोहक सौंदर्य से वह काफी प्रभावित था। वह ऐबट को सर्वोत्तम मानवीय आदर्श मानता था। उस पर अपने पिता का प्रभाव था। उसके पिता ने भी बचपन में एक पुजारी से प्रेरणा ली थी। ठीक वैसे ही उस पर थी ऐबट का प्रभाव था।
एडोल्फ हिटलर को कभी भी अपने पिता का प्रोत्साहन नहीं मिला। उन्हें एडोल्फ का कुशल वक्ता होना जरा भी अच्छा नहीं लगता था। वह चाहते थे उनका बेटा पढ़-लिख कर किसी सरकारी विभाग की नौकरी करे। इसीलिए उन्होंने एडोल्फ को रिचालशूल में पढ़ाने का मन बनाया था। उनका मानना था कि लाईसियम में पढ़ाए जाने वाले शास्त्रीय विषय एडोल्फ के स्वाभाविक गुणों के अनुकूल नहीं हैं।
एडोल्फ के पिता को उनका व्यक्तिव विशेषकर उनका स्वाभाव बहुत अखरता था। उनका विचार था कि केवल अच्छा वक्ता होने से व्यापार नहीं किया जा सकता है। वास्तविकता तो यही थी कि एडोल्फ के पिता ने कभी उसके मनोभावों को समझने की चेष्टा नहीं की। वह उसके भविष्य को लेकर चिंतित रहते थे। उनका कहना था कि या तो उनका बेटा कोई अच्छी सरकारी नौकरी करे या कोई व्यवसाय संभाले। किन्तु किशोर एडोल्फ को ना तो व्यवसाय में ही रूचि थी और न ही सरकारी नौकरी में कोई दिलचस्पी।
एडोल्फ एक दिन अपने पिता की किताबों को उलट-पलट कर देख रहे थे, तभी उनके हाथ कुछ पुस्तकें लगीं। जिनका संबंध सैनिक विषयों से था। उस किताब के दो खण्ड थे। इनमें 1870-71 के फ्रांसीसी जर्मन सैनिकों के युद्ध से जुड़ी घटनाओं को विस्तार से जानने की जिज्ञासा पैदा हो गयी। इस प्रकाशन की उसने अन्य पुस्तकें भी पढ़ी, जो युद्ध और सैनिकों से संबंधित थी। उन पुस्तकों का अध्ययन करने के बाद एडोल्फ के मन-मस्तिष्क में एक तीव्र संघर्ष की भावना जन्म लेने लगी। फ्रांसीसी और जर्मन के युद्ध को लेकर उसके मन में तरह-तरह के प्रश्न उठने लगे।
एडोल्फ बहुत गंभीरता से सोचता था कि जर्मन में रहने वाले तथा युद्ध में लड़ने वाले जर्मन वासियों में क्या भिन्नता है। एडोल्फ के जीवन का यह पहला अवसर था जब उसके मन में ऐसे उत्तेजक प्रश्नों ने जन्म लिया। उसके जन्म से पूर्व ही जर्मन दो भागों में विभक्त हो चुका था- पहला आस्ट्रिया तथा दूसरा हंगरी। वह अक्सर अपने जेहन में उभरते प्रश्नों का जवाब खोजने की कोशिश करता था। इस संबंध में वह लोगों से वार्तालाप भी करता था, मगर उन लोगों से उसके प्रश्नों के जो उत्तर मिलते थे, उनसे वह कतई भी सहमत नहीं था। उसका मन इन जवाबों को स्वीकार ही नहीं करता था। उस समय उसकी समझ में केवल इतना ही आया कि सभी जर्मनवासी इतने सौभाग्यशाली नहीं थे, जो बिस्मार्क के राज्य से संबंधित होते।
औटो फोन बिस्मार्क प्रशिया प्रांत का रहने वाला एक जमींदार था। उसने अपनी राजनीतिक प्रतिभा और ताकत व तलवार के बल पर जर्मन को एक राज्य बनाने में सफलता प्राप्त की थी। यह बात 1866 से 1877 के बीच की है। बिस्मार्क ने अपने कुशल नेतृत्व में पहले जर्मनी के पुराने शत्रु, फ्रांस को युद्ध में परास्त किया। उसके बाद पोलैंड को भी हराकर उसका काफी भू-भाग जर्मनी में शामिल कर लिया। इन घटनाओं के पूर्व जर्मनी करीब 300 छोटे-छोटे राज्यों में बंटा हुआ था। जर्मनी की राजनीति में आस्ट्रिया तथा हंगरी के सम्राट का हस्तक्षेप चलता था।
औटो फोन बिस्मार्क ने आस्ट्रिया व हंगरी को भी पराजित किया। बिस्मार्क से पूर्व यही काम फ्रैडरिक नामक एक महान पुरूष ने किया था। उसने भी जर्मनी को संगठित किया था। फ्रैडरिक जर्मनी का एक स्वतंत्र प्रांत प्रशिया का शासक था। जो अपनी योग्यता और नेतृत्व क्षमता के बल पर जर्मनी का मुकुटधारी राजा बन गया था। उसकी ताजपोशी 1701 ई0 में की गयी थी। फ्रैडरिक उस परिवार का पूर्वज था जिसमें कैसर नाम राजा ने जन्म लिया था। कैसर के राज्य में सारा जर्मन संगठित हुआ। वह बहुत ही थोड़े समय में उद्योग-धंधों के एक बड़े भू-भाग का नेता बन गया।
इन दोनों महान व्यक्तियों की जीवनी को पढ़कर किशोर एडोल्फ ने भी यह निश्चय किया कि उसे भी जर्मनी राज्य को संगठित करना होगा। मगर उस दिशा में काम करने से पहले उसे कुछ अध्ययन करना था, ताकि फिर वह पूरी तैयारी के साथ इस काम को करने के लिए प्रतिबद्ध हो सके। इसके लिए वह जर्मनी के इतिहास से संबंधित पुस्तकों का अध्ययन करने में जुट गया।
एडोल्फ के पिता ने अपने बेटे के अंदर आए इस बदलाव को बहुत जल्दी महसूस कर लिया। उसका इस क्षेत्र में पदार्पण बहुत ही नागवार गुजरा। उनकी इच्छा थी कि उनका बेटा उन्हीं की तरह सरकारी नौकर बने। उन्होंने अपने जीवन में बड़े कष्ट झेले थे और कठिन परिश्रम किया था, तब कहीं जाकर उन्होंने अपनी मंजिल पायी थी। उस समय एडोल्फ की आयु मात्र ग्यारह वर्ष थी। उसके पिता ने उसकी रूचि को देखकर अपने अगामी जीवन की अच्छाई-बुराई और उंच-नीच का भेद बताकर उन्हें समझाने की बहुत कोशिश की। उस वक्त एडोल्फ के मन पर अपने पिता के द्वारा कही बातों का कोई असर नहीं हुआ। विचारों के इन्ही मतभेद के कारण एडोल्फ और उसके पिता के संबंधों में कटुता आने लगी। वे आपस में मिलकर कोई काम नहीं करते थे। उनके बीच मूक-विरोधियों जैसी स्थिति बनी हुई थी।
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