First War of Independence: सन् 1857 के स्वतंत्रता संग्राम के समय भारत के गवर्नर जनरल थे लॉर्ड चार्ल्स जॉन कैनिंग। वे 1856 से 1862 तक इस पद पर रहे। लॉर्ड कैनिंग को भारतीय इतिहास में इसलिए भी विशेष रूप से याद किया जाता है क्योंकि उनके कार्यकाल में ही भारत में पहला व्यापक विद्रोह हुआ जिसे ‘1857 की क्रांति’ कहा गया। यह विद्रोह ब्रिटिश शासन के खिलाफ आम जनता, सैनिकों, किसानों, और रियासतों का एकजुट आक्रोश था।
लॉर्ड कैनिंग ने विद्रोह के दौरान संयमित नीति अपनाते हुए पूरे प्रशासन को संतुलित बनाए रखने की कोशिश की। इसी कारण उन्हें “क्लेमेंसी कैनिंग” (Clemency Canning) भी कहा गया, क्योंकि उन्होंने विद्रोह के बाद भी बदले की नीति नहीं अपनाई और माफी की नीति अपनाई। उनका कार्यकाल भारतीय प्रशासन के बदलावों और ब्रिटिश क्राउन के अधीन भारत को लाने का गवाह बना।
लॉर्ड कैनिंग और विद्रोह की शुरुआत (First War of Independence)
1857 की क्रांति की चिंगारी मेरठ से भड़की, लेकिन उसकी पृष्ठभूमि पहले से तैयार थी। लॉर्ड कैनिंग को इस विद्रोह की संभावना के बारे में पूर्व संकेत मिल चुके थे, लेकिन उन्होंने इसे गंभीरता से नहीं लिया। विद्रोह की मुख्य वजहें थीं-कारतूसों में गाय और सुअर की चर्बी, ईस्ट इंडिया कंपनी की नीति, धार्मिक हस्तक्षेप, और आर्थिक शोषण। मेरठ में 10 मई को सैनिकों ने विद्रोह किया और यह देखते ही देखते दिल्ली, कानपुर, झांसी, लखनऊ और बिहार जैसे प्रमुख क्षेत्रों में फैल गया। लॉर्ड कैनिंग ने विद्रोह को दबाने के लिए ब्रिटिश सेनाओं को संगठित किया और पंजाब तथा मद्रास की सेना को विद्रोहियों के विरुद्ध इस्तेमाल किया। हालांकि विद्रोह क्रूर रूप से दबा दिया गया, लेकिन इसने भारतीय जनता में राष्ट्रवाद की भावना को जन्म दे दिया।
लॉर्ड कैनिंग की नीतियां और प्रतिक्रियाएं
विद्रोह के दौरान लॉर्ड कैनिंग की सबसे महत्वपूर्ण नीति रही “क्षमा” और “प्रशासनिक पुनर्निर्माण”। उन्होंने विद्रोहियों को सामूहिक दंड देने की बजाय, व्यक्तिगत रूप से दंडित करने का निर्णय लिया। उन्होंने ब्रिटिश अधिकारियों को आदेश दिया कि आम नागरिकों के साथ अत्याचार न करें। साथ ही, लॉर्ड कैनिंग ने रियासतों के साथ संबंधों को सुधारने और उन्हें ब्रिटिश राज में बनाए रखने की नीति अपनाई। उन्होंने रियासतों को आश्वासन दिया कि अगर वे लॉयल रहेंगे, तो उनकी सत्ता बनी रहेगी। उनकी यह नीति आगे चलकर “डॉक्ट्रिन ऑफ लैप्स” के परित्याग का कारण बनी। लॉर्ड कैनिंग की उदार दृष्टि ने अंग्रेजों के भीतर भी मतभेद पैदा कर दिए, परंतु इतिहास में उन्हें एक संतुलित प्रशासक के रूप में याद किया जाता है।
लॉर्ड कैनिंग के समय भारत में शासन का हस्तांतरण
1857 के विद्रोह के बाद लॉर्ड कैनिंग के नेतृत्व में ही भारत में एक बड़ा प्रशासनिक बदलाव आया। 1 नवम्बर 1858 को ब्रिटेन की रानी विक्टोरिया की घोषणा के साथ भारत का शासन ईस्ट इंडिया कंपनी से हटाकर सीधे ब्रिटिश क्राउन के अधीन कर दिया गया। यह बदलाव ‘भारत सरकार अधिनियम 1858’ के तहत हुआ। लॉर्ड कैनिंग को ही भारत का पहला ‘वायसरॉय’ (Viceroy of India) नियुक्त किया गया। इसका अर्थ था कि अब वह रानी विक्टोरिया की ओर से भारत पर शासन करेंगे। यह बदलाव भारत के प्रशासन में अधिक नियंत्रण, जवाबदेही और ब्रिटिश संसद की सीधी निगरानी का प्रतीक था। लॉर्ड कैनिंग के नेतृत्व में भारत में एक नई प्रशासनिक व्यवस्था की नींव रखी गई, जो आगे चलकर भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन की आधारशिला बनी।
लॉर्ड कैनिंग की ऐतिहासिक विरासत
लॉर्ड कैनिंग भारतीय इतिहास के उन गिने-चुने ब्रिटिश अधिकारियों में से हैं, जिनका दृष्टिकोण संयमित और सुधारात्मक माना गया। उन्होंने 1857 के बाद भारतीय समाज और शासन में स्थिरता लाने का प्रयास किया। लॉर्ड कैनिंग की पहल पर ही 1859 में भारतीय दंड संहिता (IPC) लागू की गई, जो आज भी भारत के न्यायिक ढांचे का आधार है। साथ ही, उन्होंने प्रेस को अधिक स्वतंत्रता देने की नीति अपनाई, जो आगे चलकर सामाजिक सुधारों और स्वतंत्रता की आवाज का माध्यम बनी। उन्होंने 1861 में इंडियन काउंसिल एक्ट लागू किया, जिससे भारतीयों को भी कानून निर्माण में सीमित भागीदारी मिली। लॉर्ड कैनिंग की ऐतिहासिक विरासत यही बताती है कि वह केवल एक गवर्नर जनरल ही नहीं, बल्कि भारत के प्रशासनिक परिवर्तन के सूत्रधार भी थे।
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