Happiness: खुशी आती कहां से और जाति कहां से है। इस बारे में अनेक डॉक्टर और मनोवैज्ञानिकों ने लंबा शोध किया और वह इस नतीजे पर पहुंचे की खुशी जहां से आती है, वहीं चली जाती है। फिक्र, उलझन, परेशानियां इन सब बातों से हमारा मूड खराब हो जाता है, खुशियां गायब हो जाती हैं, पर यह नहीं बताया जा सकता है कि मूड किस वजह से खराब हो जाता है और खुशियां आखिरकार गायब क्यों हो जाती हैं। जब किसी बात को लेकर हमारा मूड खराब हो जाता है, उसी वक्त दिमाग के न्यूट्री ट्रांसमीटर में जबरदस्त परिवर्तन होता है।
प्राकृतिक तौर पर मूड बेहतर बनाने वाले केमिकल एसएएमआई का उत्पादन गिर जाता है, रक्त में ग्लूकोज का स्तर कम हो जाता है। खुशियों का संबंध हमारे भावनाओं से भी है। हमारी भावनाएं हर समय बदलती रहती हैं। उसी के अनुसार खुशी का स्तर भी बढ़ता और घटता है। कोई भी व्यक्ति पूरे सप्ताह में समान रूप से खुश नहीं रह सकता है। किसी दिन खुशी का स्तर बहुत ज्यादा होता है, किसी दिन खुशी का स्तर बहुत कम होता है।
सप्ताह के दिन और मूड के बीच में भी संबंध होता है। इस बारे में मनोवैज्ञानिक और डॉक्टरों ने शोध किया। उन्होंने पाया कि लोग बुधवार, शुक्रवार और शनिवार के दिन अधिक खुश रहते हैं। रविवार, सोमवार और मंगलवार के दिन कम खुश रहते हैं और बुधवार का दिन सामान्य दिन होता है। इस बारे में उन्होंने अलग-अलग शोध किया और अलग-अलग कार्य करने वाले लोगों को शामिल किया।
उन्होंने पाया कि भले ही काम का प्रभाव मूड पर असर डालता हो पर साप्ताहिक कैलेंडर भी उनके मूड को सही और खराब करता है। जो लोग सप्ताह के आखिरी दिन छुट्टियों के लिए रखते हैं, वह छुट्टियों की तैयारी के चक्कर में तनाव की स्थिति में आ जाते हैं। मजेदार बात यह है की छुट्टी से लौटने के बाद खुश होने की वजह उनका मूड थोड़ा खराब हो जाता है। ऐसी स्थिति शरीर की थकान या हार्मोनल गड़बड़ी की वजह से भी हो सकती है।
पहले यह माना जाता था की शादी तनाव पैदा करती है। एक शोध के अनुसार शादी से शरीर में हार्मोनल परिवर्तन होता है जो जीवन में खुशियां पैदा करता है। खुशियां पाने के लिए शादी अच्छा उपाय है। वैज्ञानिकों का कहना है कि जो लोग निराशा में डूबे होते हैं, जिनके अंदर उत्साह खत्म हो गया, उन्हें शादी कर लेनी चाहिए। शादी के बाद मिलने वाली खुशी को लेकर कितने लोग कितने दिनों तक अधिक खुश रह सकते हैं, इस बारे में भी मनोवैज्ञानिकों ने शोध किया।
विभिन्न आयु के 5000 जोड़ों पर लगभग शोध किया गया। इस शोध में पाया गया है कि ज्यादातर लोग अपनी शादी के पहले साल में सबसे अधिक खुश रहते हैं। शादी के चौथे और पांचवें साल में उनकी खुशी में गिरावट आ जाती है। छठे और आठवें साल में कुछ सुधार आता है। धीरे-धीरे या पहले वाली स्थिति में आ जाता है। शादी की 25वीं वर्षगांठ मनाते-मनाते दोनों नवविवाहित जोड़ों की तरह खुश रहने लगते हैं।
यह सिलसिला जीवन के अंतिम समय तक चलता है। जो लोग शादी के पहले साल में खुश नहीं रहते हैं उनका दांपत्य जीवन आगे चलकर भी खुशनुमा नहीं रहता है, आपसी बंधन जल्दी टूट जाता है। कुछ लोग भले ही इसे घसीटते हुए कुछ सालों तक ले जाएं पर इसे संभालना उनके लिए मुश्किल हो जाता है।
जो लोग अधिक खुश रहते हैं, उनमें रोग प्रतिरोधक क्षमता अधिक रहती है इसलिए बीमार कम पड़ते हैं। डॉक्टर का कहना है कि ऊर्जावान और खुशमिजाज व्यक्ति के शरीर में रोगों से लड़ने के हारमोंस तेजी से तैयार होते हैं, जिससे उसके बीमार होने की आशंका कम हो जाती है। उसका शरीर संक्रामक रोग की चपेट में कम आता है। खुश रहने वाले व्यक्तियों में आत्मविश्वास भी अधिक होता है, उनका आत्मविश्वास उन्हें कुछ भी करने के लिए तैयार रखता है।
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