कलयुग की समयसीमा और पौराणिक गणना
Kaliyuga predictions: हिंदू पुराणों के अनुसार, चार युग होते हैं-सतयुग, त्रेतायुग, द्वापरयुग और कलयुग। महाभारत युद्ध के बाद द्वापरयुग समाप्त हुआ और उसी समय से कलयुग की शुरुआत मानी जाती है। कलयुग की कुल अवधि 4,32,000 वर्ष बताई गई है और इसके प्रारंभ को लगभग 3102 ईसा पूर्व माना जाता है। इस हिसाब से अब तक लगभग 5000 से अधिक वर्ष बीत चुके हैं, यानी हम कलयुग के प्रारंभिक चरण में हैं। “घोर कलयुग” का अर्थ है कलयुग का वह कालखंड जिसमें अधर्म अपने चरम पर होगा।
घोर कलयुग के लक्षण: जब धर्म बचेगा केवल नाम का
पुराणों में वर्णित है कि जब धर्म के चार स्तंभों में से केवल एक शेष रहेगा, तभी घोर कलयुग आरंभ होगा। समाज में अन्याय, अत्याचार, झूठ, भ्रष्टाचार और अज्ञानता का बोलबाला होगा। बच्चे माता-पिता की सेवा नहीं करेंगे, गुरु-शिष्य का रिश्ता केवल औपचारिक रह जाएगा। धर्म के नाम पर दिखावा होगा और सच्ची श्रद्धा विलुप्त हो जाएगी। जल, वायु और अन्न दूषित होंगे, लोग केवल स्वार्थ में जीवन जीएंगे।
पवित्र ग्रंथों में वर्णित भविष्यवाणियां
श्रीमद्भागवत महापुराण और विष्णु पुराण में घोर कलयुग की कई भविष्यवाणियां दी गई हैं। इन ग्रंथों में लिखा है कि लोग केवल धन के आधार पर सम्मान पाएंगे, और धर्म का स्थान अर्थ ले लेगा। महिलाएं केवल आकर्षण की वस्तु मानी जाएंगी और विवाह का उद्देश्य विलुप्त हो जाएगा। गुरु, ब्राह्मण, और साधु भी मोह और लोभ के वशीभूत हो जाएंगे। जलवायु परिवर्तन, आपदाएं और महामारी आम बात हो जाएगी।
आध्यात्मिक दृष्टि से घोर कलयुग का प्रभाव
घोर कलयुग केवल भौतिक नहीं, बल्कि आध्यात्मिक दृष्टिकोण से भी एक अंधकारमय काल होगा। आत्मा का ज्ञान लुप्त होता जाएगा और लोग भोग-विलास की दौड़ में खो जाएंगे। पूजा-पाठ, ध्यान और सेवा की भावना केवल दिखावे तक सीमित रह जाएगी। सत्य को मानने वाला व्यक्ति समाज में उपेक्षित होगा। इस समय में सच्चे साधक और ईश्वरभक्त ही संसार रूपी संकट से बच पाएंगे।
घोर कलयुग से कैसे करें बचाव?
पुराणों में कहा गया है कि घोर कलयुग से बचने के लिए हरि नाम संकीर्तन सबसे प्रभावी उपाय है। अपने जीवन में संयम, सच्चाई और सेवा की भावना बनाए रखें। नियमित रूप से श्रीमद्भागवत, रामचरितमानस या गीता का पाठ करें। बच्चों में संस्कार डालें और परिवार में प्रेम बनाए रखें। जितना हो सके प्रकृति, जीव-जंतुओं और जरूरतमंदों की सेवा करें।
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