भगवान श्रीकृष्ण का जन्म भाद्रपद माह की कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को रोहिणी नक्षत्र में हुआ था। इस दिन को हम जन्माष्टमी के रूप में धूमधाम से मनाते हैं। श्रीकृष्ण के जीवन और उनकी लीलाओं का वर्णन भारतीय संस्कृति में एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है। उनका जन्म दिन धर्म, प्रेम, और नीति के प्रतीक के रूप में मनाया जाता है।
श्रीकृष्ण का जन्म लगभग 3,228 ईसा पूर्व हुआ था। यदि हम 2024 तक की गणना करें, तो 26 अगस्त को भगवान श्रीकृष्ण की आयु 5,251 वर्ष हो जाएगी। यह आयु उनकी दिव्यता और अनंतता को दर्शाती है, जो समय की सीमाओं से परे हैं। यद्यपि श्रीकृष्ण का जीवनकाल मानवीय दृष्टिकोण से कुछ दशकों का ही था, लेकिन उनकी उपस्थिति और शिक्षाएं अनंत काल तक जीवित रहेंगी।
जन्माष्टमी का पर्व भगवान श्रीकृष्ण की अनंतता और उनके द्वारा दी गई शिक्षाओं को याद करने का अवसर होता है। इस दिन उनके बाल्यकाल से लेकर उनके अद्वितीय कृत्यों और शिक्षाओं का स्मरण किया जाता है। भक्ति और श्रद्धा से भरे इस दिन को मनाने के लिए श्रद्धालु व्रत रखते हैं, भजन-कीर्तन करते हैं और रात को श्रीकृष्ण के जन्म के समय पूजा-अर्चना करते हैं।
श्रीकृष्ण की शिक्षा, गीता का उपदेश, और उनकी लीलाएं सभी युगों के लिए प्रासंगिक हैं। उनका संदेश धर्म, कर्म और भक्ति का समन्वय है। उनका जीवन हमें सिखाता है कि कैसे विषम परिस्थितियों में भी धर्म का पालन करते हुए जीवन को सार्थक बनाया जा सकता है।
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जन्माष्टमी के अवसर पर, जब हम 26 अगस्त 2024 को श्रीकृष्ण की 5,251वीं जयंती मनाएंगे, तो यह हमारे लिए उनके आदर्शों और उपदेशों का स्मरण करने का अवसर होगा। उनके जीवन की अनंतता हमें यह संदेश देती है कि सत्य और धर्म की राह पर चलने वाला व्यक्ति कभी नष्ट नहीं होता, बल्कि वह युगों-युगों तक जीवित रहता है।
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