Friday, October 17, 2025

Narak Chaturdashi significance: नरक चतुर्दशी पर यमराज की पूजा का धार्मिक महत्व

Narak Chaturdashi significance: नरक चतुर्दशी, जिसे रूप चौदस या छोटी दिवाली भी कहा जाता है, दीपावली से एक दिन पहले मनाया जाता है। इस दिन मृत्यु के देवता यमराज की पूजा का विशेष महत्व है। धार्मिक मान्यता है कि यमराज की आराधना से अकाल मृत्यु का भय दूर होता है और जीवन में सुख-समृद्धि आती है। यह पर्व न केवल आध्यात्मिक शुद्धि का प्रतीक है, बल्कि पूर्वजों के प्रति श्रद्धा और आत्मा की मुक्ति की कामना का अवसर भी है। इस लेख में हम जानेंगे कि नरक चतुर्दशी पर यमराज की पूजा क्यों की जाती है और इसके पीछे क्या पौराणिक और सांस्कृतिक कारण हैं।

अकाल मृत्यु से मुक्ति की कामना

नरक चतुर्दशी (Narak Chaturdashi) पर यमराज की पूजा का प्रमुख उद्देश्य अकाल मृत्यु के भय को दूर करना है। मान्यता है कि इस दिन यमराज को दीपदान करने से व्यक्ति को मृत्यु के समय कष्ट नहीं होता और आत्मा को शांति मिलती है। यह परंपरा विशेष रूप से दक्षिण दिशा में दीप जलाकर निभाई जाती है, क्योंकि दक्षिण दिशा को यमराज का स्थान माना गया है। इस दिन की पूजा से व्यक्ति को दीर्घायु और स्वस्थ जीवन का आशीर्वाद मिलता है। यह श्रद्धा और भय के संतुलन का प्रतीक है, जो जीवन की नश्वरता को स्वीकारते हुए आत्मिक शुद्धि की ओर प्रेरित करता है।

पितृों को मार्गदर्शन देने की परंपरा

नरक चतुर्दशी (Narak Chaturdashi) पर यमराज की पूजा के साथ दीपदान करने की परंपरा पितृों को मार्ग दिखाने से जुड़ी है। मान्यता है कि पितृपक्ष में धरती पर आए पूर्वज इस समय परलोक लौटते हैं और दीपक उनके मार्ग को रोशन करता है। यमराज की पूजा से पितृ प्रसन्न होते हैं और परिवार को सुख-शांति का आशीर्वाद देते हैं। यह परंपरा पूर्वजों के प्रति श्रद्धा और सम्मान का प्रतीक है। दीपदान न केवल धार्मिक कर्तव्य है, बल्कि यह आत्मीय संबंधों की स्मृति को जीवित रखने का माध्यम भी है। इस दिन का दीपक पितृों के लिए श्रद्धा का प्रकाश बन जाता है।

आत्मा की शुद्धि और पापों से मुक्ति

नरक चतुर्दशी (Narak Chaturdashi) को आत्मा की शुद्धि और पापों से मुक्ति का पर्व माना जाता है। यमराज की पूजा से व्यक्ति अपने कर्मों की समीक्षा करता है और आत्मिक सुधार की दिशा में अग्रसर होता है। यह दिन आत्मा को नरक के भय से मुक्त करने का प्रतीक है। धार्मिक ग्रंथों में उल्लेख है कि इस दिन स्नान, ध्यान और यमराज की पूजा से व्यक्ति को पूर्व जन्मों के पापों से मुक्ति मिलती है। यह आत्मा की यात्रा को शुद्ध और शांत बनाने का अवसर है। पूजा के साथ संयम और साधना का भाव इस दिन को विशेष बनाता है।

नरकासुर वध की पौराणिक कथा

नरक चतुर्दशी (Narak Chaturdashi) का संबंध राक्षस नरकासुर के वध से भी है। पौराणिक कथा के अनुसार, भगवान कृष्ण ने इस दिन नरकासुर का वध कर 16,100 कन्याओं को मुक्त किया था। इस विजय को अंधकार पर प्रकाश की जीत माना जाता है। यमराज की पूजा इस दिन इसलिए की जाती है क्योंकि यह मृत्यु और पुनर्जन्म के चक्र को समझने और सम्मान देने का अवसर है। नरकासुर की कथा हमें यह सिखाती है कि अधर्म का अंत निश्चित है और धर्म की स्थापना के लिए मृत्यु भी एक माध्यम बन सकती है। यह दिन न्याय और धर्म की पुनर्स्थापना का प्रतीक है।

रूप सौंदर्य और मानसिक शुद्धि का पर्व

नरक चतुर्दशी (Narak Chaturdashi) को रूप चौदस भी कहा जाता है, जिसमें शरीर और मन की शुद्धि का विशेष महत्व है। इस दिन उबटन, स्नान और दीपदान के साथ यमराज की पूजा की जाती है। यह परंपरा दर्शाती है कि बाह्य सौंदर्य के साथ आंतरिक शुद्धता भी आवश्यक है। यमराज की पूजा से व्यक्ति अपने जीवन के अंत को स्वीकारते हुए वर्तमान को सुंदर और सार्थक बनाने का प्रयास करता है। यह दिन आत्मनिरीक्षण और मानसिक संतुलन का प्रतीक है। रूप चौदस का संदेश है कि सच्चा सौंदर्य आत्मा की शुद्धता में निहित होता है।

यम दीपदान की परंपरा

नरक चतुर्दशी (Narak Chaturdashi) पर यमराज के नाम से दीप जलाने की परंपरा को यम दीपदान कहा जाता है। यह दीपक घर के मुख्य द्वार या दक्षिण दिशा में रखा जाता है। मान्यता है कि यह दीपक यमराज को समर्पित होता है और इससे परिवार को अकाल मृत्यु से सुरक्षा मिलती है। यह परंपरा पीढ़ियों से चली आ रही है और इसे विशेष श्रद्धा से निभाया जाता है। यम दीपदान न केवल धार्मिक अनुष्ठान है, बल्कि यह जीवन की नश्वरता को स्वीकारते हुए मृत्यु के देवता को सम्मान देने का प्रतीक है। यह दीपक जीवन और मृत्यु के संतुलन का संदेश देता है।

सामाजिक एकता और पारिवारिक समृद्धि

नरक चतुर्दशी (Narak Chaturdashi) का पर्व सामाजिक और पारिवारिक एकता को भी बढ़ावा देता है। यमराज की पूजा के साथ परिवार के सभी सदस्य एकत्र होकर दीपदान करते हैं, जिससे आपसी संबंध मजबूत होते हैं। यह दिन रिश्तों की गरिमा और सामूहिक श्रद्धा का प्रतीक बन जाता है। यमराज की पूजा से परिवार में समृद्धि और सुख-शांति आती है। यह पर्व हमें यह सिखाता है कि मृत्यु के भय से ऊपर उठकर जीवन को प्रेम, सम्मान और एकता से जीना चाहिए। यह सामाजिक समरसता और पारिवारिक बंधन को मजबूत करने का अवसर है।

धर्म और न्याय के प्रतीक यमराज का सम्मान

यमराज केवल मृत्यु के देवता नहीं, बल्कि धर्म और न्याय के प्रतीक भी हैं। नरक चतुर्दशी (Narak Chaturdashi) पर उनकी पूजा से व्यक्ति अपने कर्मों की समीक्षा करता है और न्याय के प्रति श्रद्धा प्रकट करता है। यमराज का सम्मान जीवन के अंत को स्वीकारने और धर्म के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देता है। यह दिन हमें यह सिखाता है कि मृत्यु जीवन का एक अनिवार्य सत्य है, जिसे सम्मान और श्रद्धा से स्वीकारना चाहिए। यमराज की पूजा आत्मा को धर्म के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देती है और जीवन को सार्थक बनाती है।

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Amit Mishra
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अमित मिश्रा को मीडिया के विभ‍िन्‍न संस्‍थानों में 15 वर्ष से ज्‍यादा का अनुभव है। इन्‍हें Digital के साथ-साथ Print Media का भी बेहतरीन अनुभव है। फोटो पत्रकारिता, डेस्‍क, रिपोर्ट‍िंंग के क्षेत्र में कई वर्षों तक अमित मिश्रा ने अपना योगदान दिया है। इन्‍हें तस्‍वीरें खींचना और उनपर लेख लिखना बेहद पसंद है। इसके अलावा इन्‍हें धर्म, फैशन, राजनीति सहित अन्‍य विषयों में रूच‍ि है। अब वह TheConnect24.com में बतौर डिज‍िटल कंटेंट प्रोड्यूसर कार्यरत हैं।
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