Village Story: उत्तर प्रदेश के एक छोटे से गांव धनपुरवा की पहचान कभी पिछड़ेपन और बेरोजगारी से होती थी। लेकिन आज वही गांव आत्मनिर्भरता और महिला सशक्तिकरण का उदाहरण बन चुका है। इस बदलाव की शुरुआत हुई कमला देवी से-एक साधारण गृहिणी, जिसने सिलाई मशीन को हथियार बनाया और पूरे गांव की सोच बदल दी।
कमला देवी का जीवन पहले आम ग्रामीण महिलाओं जैसा ही था-घर के काम, बच्चों की देखभाल और सीमित संसाधनों में दिन गुजारना। लेकिन एक दिन जब उसके पति की नौकरी चली गई, तो घर की आर्थिक स्थिति डगमगाने लगी। कमला ने ठान लिया कि वह कुछ करेगी। उसके पास एक पुरानी सिलाई मशीन थी, जिसे उसने शादी में उपहार स्वरूप पाया था। उसी मशीन को उसने अपने जीवन की दिशा बदलने का जरिया बना लिया।
शुरुआत में कमला ने अपने घर के आंगन में बैठकर गांव की महिलाओं के कपड़े सिलने शुरू किए। धीरे-धीरे उसकी मेहनत और सलीके की चर्चा पूरे गांव में फैल गई। लोग उसके पास आने लगे, और कमला ने nominal दरों पर काम करना शुरू किया। इससे न केवल उसकी आमदनी बढ़ी, बल्कि गांव की महिलाओं को भी सस्ते और अच्छे कपड़े मिलने लगे।
कमला ने सिर्फ खुद तक सीमित नहीं रखा। उसने गांव की अन्य महिलाओं को भी सिलाई सिखाना शुरू किया। उसने पंचायत भवन में एक छोटा प्रशिक्षण केंद्र शुरू किया, जहां हर दिन 10-12 महिलाएं सिलाई सीखने आती थीं। कमला ने उन्हें बताया कि कैसे वे अपने हुनर को रोजगार में बदल सकती हैं। कुछ ही महीनों में गांव की कई महिलाएं अपने घरों में सिलाई का काम शुरू कर चुकी थीं।
कमला की पहल से गांव में एक नया माहौल बना। महिलाएं अब आत्मनिर्भर हो गई थीं। उन्होंने अपने बच्चों की पढ़ाई में योगदान देना शुरू किया, घर की आर्थिक स्थिति सुधरने लगी और सबसे बड़ी बात-उनके आत्मविश्वास में जबरदस्त वृद्धि हुई।
कमला ने अपने प्रशिक्षण केंद्र को एक महिला स्व-सहायता समूह में बदल दिया। इस समूह ने बैंक से लोन लेकर एक सामूहिक सिलाई यूनिट शुरू की, जहां स्कूल यूनिफॉर्म, बैग और अन्य कपड़े तैयार किए जाते थे। स्थानीय स्कूलों और दुकानों से उन्हें ऑर्डर मिलने लगे। अब कमला और उसकी टीम हर महीने 50 हजार से अधिक की कमाई कर रही थी।
कमला की कहानी जिला प्रशासन तक पहुंची। उन्हें महिला उद्यमिता पुरस्कार से सम्मानित किया गया। राज्य सरकार ने उनके केंद्र को एक मिनी प्रशिक्षण संस्थान में बदलने की योजना बनाई। कमला अब अन्य गांवों में जाकर महिलाओं को प्रेरित करती हैं और उन्हें स्वरोजगार के लिए प्रशिक्षित करती हैं।
धनपुरवा गांव की तस्वीर अब पूरी तरह बदल चुकी है। जहां पहले महिलाएं घर तक सीमित थीं, वहीं अब वे आर्थिक रूप से सक्रिय हैं, पंचायत की बैठकों में भाग लेती हैं और अपने बच्चों को उच्च शिक्षा दिलाने का सपना देखती हैं।
कमला कहती हैं, “अगर एक महिला ठान ले, तो पूरा गांव बदल सकता है। स्वरोजगार सिर्फ कमाई का जरिया नहीं, आत्मसम्मान का रास्ता है।”
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