आज देश की सरकार ध्वनि प्रदूषण, वायु प्रदूषण, जल प्रदूषण को दूर करने के लिये प्रतिवर्ष अरबों रूपये खर्च कर रही है लेकिन इस सब प्रदूषणों से लाख गुना ज्यादा भयावाह मन का प्रदूषण है जिसे रोकने को कोई प्रयास ही नहीं किया जा रहा है। इस मन के प्रदूषण के कारण ही मन को अशांति, उग्रवाद, अलगाववाद, हिंसा और पारिवारिक विघटन की हजारों वारदातें प्रतिदिन हो रही हैं।
संतान बुजुर्गोंं के प्रति समर्पित नहीं हैं। पत्नी पति के प्रति समर्पित नहीं है। भाई-भाई को दुश्मन बन रहा है। ये सब मन के प्रदूषण के कारण ही है। जिसका कोई उपाय दूर-दूर तक नजर नहीं आ रहा है, एक आशा की किरण अध्यात्म ही है।
अध्यात्म भीरू बनकर ही इस विकराल समस्या का समाधान हो सकता है, वो भी तब जब हम स्वयं अध्यात्म को अपने जीवन में उतारें और अध्यात्म महासागर में डुबकी लगायें। इस समस्या का सद्चिंंतन के अलावा अन्य कोई समाधान नहीं है जो केवल अध्यात्म द्वारा ही प्राप्त हो सकता है और तभी मन और तन की शांति संभव है।
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