Monday, May 20, 2024

अनार की खेती: उपयुक्त भूमि चयन और तैयारी

अनार एक महत्‍वपूर्ण फल है, जिसके बीजचोल खाये जाते हैं। यह लाल रंग का होता है। इसका उद्भभव देश ईरान है। स्‍वास्‍थ्‍य की दृष्‍ट‍ि से यह फल बहुत की उपयोगी है। अनार का जूस के रूप में सेवन किया जाता है। न‍िर्जलीकरण करके भी अनार दाना तैयार करते हैं। आयुर्वेद की दृष्‍ट‍ि से इसके फल का रस, छ‍िलका तथा तने की छाल इत्‍याद‍ि अत्‍यंत उपयोगी है। व‍िशेष तौर से पेच‍िश जैसी भयंकर बीमार‍ियों में अनार का सेवन लाभप्रद है।

जलवायु

अच्‍छे क‍िसम के अनार के उत्‍पादन के लिए शुष्‍क तथा ठंडी जलवायु वाला क्षेत्र इसके ल‍िए सर्वोत्तम होता है। अनार के लिए सिंचाई की व्‍यवस्‍था अन‍िवार्य है। आर्द्र, नम वातावरण में फल निम्‍न कोट‍ि के प्राप्‍त होते हैं तथा फल रोगी भी हो जाते हैं। इसके ल‍िए 10 ड‍िग्री से नीचे तापक्रम नुकसायदायी होता है।

मृदा

अनार व‍िभ‍िन्न प्रकार की म‍िट्टी में पैदा किया जा सकता है लेक‍िन अच्‍छे उत्‍पादन के लिए गहरी भारी दोमट म‍िट्टी अच्‍छी मानी जाती है।

क‍िस्‍में

अनार की प्रजात‍ियां क्षेत्रवार प्रचल‍ित हैं ज‍िसमें सहारनपुरी, जोधपुरी तथा कंधारी। इसके अलावा गुजरात में ढोलका, राजस्‍थान में जालौर सीडलैस, महाराष्‍ट्र में गणेश, तमि‍लनाडु में यरकाड है। यह काफी अच्‍छी मानी जाती है। ह‍िमाचल प्रदेश के लिए पेपर शेल, बेस‍िन सीडलैस, मस्‍कट रेड आद‍ि प्रमुख क‍िसमें हैं।

प्रवर्धन 

अनार के अध‍िकतर पौधे बीज से तैयार किये जाते हैं। इसके अलावा अनार के पौधे शाखा कलमों से भी सुगमता से तैयार क‍िये जाते हैं। दाब व‍िध‍ि द्वारा भी पौधे तैयार कर सकते हैं। कलम लगाने के लिए मोटी पर‍िपक्‍व शखा उच‍ित होती है तथा कलम की लंबाई 25-30 सेमी एवं मोटाई 2-2.5 सेमी होनी चाह‍िए।

रोपण 

अनार के पैधों का रोपण वर्षा ऋतु के अलावा बसंत ऋतु के आरंभ से भी होता है। पौधों के समुच‍ित व‍िकाासके लिए पौधे से पौधे की आपसी दूरी 6×6 मी रखते हैं।

खाद तथा उर्वरक

अनार के पौधों की उच‍ित वृद्ध‍ि के लिए प्रत‍िवृक्ष अच्‍छी तरह सड़ी गोबर की खाद के अलावा एक वर्ष आयु पौधों को 150 ग्राम अमोन‍ियम सल्‍फेट देते हैं तथा प्रत‍िवर्ष इसी अनुपात में मात्रा बढ़ाकर 10 वर्ष या अध‍िक आयु वाले पौधे को, 1.50-2.0 क‍िग्रा आमान‍ियम सल्‍फेट, 1 क‍िग्रा सुपर फॉस्‍फेट तथा, 1 क्रिग्रा म्‍यूरेटआफ पोटाश वर्ष में दो बार बराबर मात्रा में देने से अच्‍छा पर‍िणाम प्राप्‍त होता है। यह मात्रा पहली बार सितंबर-अक्‍टूबर में तथा दूसरी मात्रा अप्रैल-मई में देनी चाह‍िए।

काट-छांट

अनार के फल वृक्षों को सीम‍ित काट-छांट की आवश्‍यकता होती है। हमारे देश में बागानों में बहुतनीय पद्धत‍ि का प्रचलन है। फल पर‍िपक्‍व प्ररोहों पर व‍िकस‍ित सूक्ष्‍म पुष्‍प काल‍िका पर लगते हैं तथा इन पर फलन 3-4 वर्ष के लिए होता है। इसमें अंत: भूस्‍तारी तथा जलीय प्ररोहों को नियम‍ित रूप से काटते रहना चाह‍िए।

कृष‍ि क्र‍ियायें

अच्‍छे क‍िस्‍म के फल प्राप्‍त करने के लिए अप्रैल-मई महीने में तने के पास खोदकर उसमें कम्‍पोस्‍ट खाद त‍था उर्वरक देकर सिंचाई कर देनी चाह‍िए ताक‍ि बरसात में अच्‍छी पुष्‍पन हो सके तथा नवंबर, दिसंबर में अच्‍छी क‍िस्‍म के फल म‍िल सकें। बसंत ऋतु के पुष्‍पन को अम्‍बे बहार कहते हैं।

तुड़ाई

अनार के पौधे में आयु वृद्ध‍ि के साथ उत्‍पादन क्षमता बढ़ती है। तीसरे या चौथे वर्ष 20-25 फल आ जाते हैं। दस वर्ष की आयु में 100-150 तक फल म‍िल जाते हैं। सुव्‍यवस्‍थ‍ित बगीचे में 200-500 फल प्रत‍ि वृक्ष तक म‍िल सकते हैं। इसमें फलत 25-30 वर्ष की आयु तक होती है।

फल त‍िड़कन

फल त‍िड़कन (फटने) की समस्‍या अनार की बागवानी में सबसे ज‍ट‍िल है। कभी-कभी इससे 50 प्रत‍िशत फल नष्‍ट हो जाते हैं। लंबे समय तक मृदा में शुष्‍कता होने से छ‍िलका कठोर हो जाता है। इस अवध‍ि के बाद पानी देने से फल के गूदे का त्‍वर‍ित व‍िकास तेजी से होता है। इससे छ‍िलका त‍िड़क जाता है। इसके न‍ियंत्रण के लिए म‍िट्टी में जैव खाद डालकर म‍िट्टी की जलधारण क्षमता को कुछ हद तक बढ़ाया जा सकता है। बोरोन की कमी से भी त‍िड़कन की समस्‍या होती है। इसके लिए बोरेक्‍स का छ‍िड़काव लाभप्रद स‍िद्ध हुआ है।

हान‍िकारक कीट एवं रोग

अनार त‍ितली-इसमें इल्‍ली फलों में छ‍िद्र कर देती है तथा प्रभाव‍ित फल सड़ जाते हैं। फलन के तुरंत बाद कैल्‍स‍ियम आर्सनेट के छ‍िड़काव से इस कीट पर न‍ियंत्रण क‍िया जा सकता है तथा प्रभाव‍ित फलों को नष्‍ट कर देना चाह‍िए। अनार में आल्‍टरनेर‍िया कवक से फलों में अंतर्व‍िगलन रोग होता है। इसके न‍ियंत्रण के लिए तांबा युक्‍त कवकनाशी का छ‍िड़काव करने से न‍ियंत्रण क‍िया जा सकता है।

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