टिड्डी बेहद हानिकारक कीट है। इनका रंग हरा, भूरा एवं पीला होता है। ये करोड़ों की संख्या में कई किलोमीटर तक लंबे दल बनाकर उड़ती हैं और मार्ग में पड़ने वाले हरे-भरे खेतों, बागों व पेड़ पौधे की पत्तियों व फलों को खाकर संपूर्ण क्षेत्र को नष्ट कर देती हैं। इनके आक्रमण के पश्चात अकाल पड़ जाता है।
टिड्डियां प्राय: सितंबर और अक्टूबर के महीने में रेतीले स्थानों पर अंडे देती हैं। मादा रेत या नर्म मिट्टी में लगभग 5 मी गहरा गड्ढा खोदकर उसमें 80-100 तक बेलनाकार अंडे देती हैं। वर्षा आरंभ होते ही अंडों से छोटे-छोटे पंखहीन बच्चे निकलते हैं जो फुदक-फुदक कर चलते हैं। ये महीने भर में पांच-छह बार त्वचा बदलकर पूर्ण वृद्धि प्राप्त कर लेते हैं एवं पंखों द्वारा उड़ने लगते हैं।
टिड्डी करोड़ों एवं अरबों की संख्याओं में चलती हैं एवं जब आती हैं तक अंधेरा छा जाता है। इसका एक उदाहरण 2020 में कोविड के समय देखा गया था जब पाकिस्तान के रास्ते भारत आयी टिड्डियों के दल ने कई जिलों की फसलों, बागों को तबाह कर दिया था।
टिड्डी का प्रकोप जब भी बढ़े तो इसे सामूहिक रूप से मारने का कार्य तेजी से किया जाना चाहिए और सभी टिड्डियों को मारना आवश्यक है। यह एक ऐसा कीट है जिसे सामूहिक प्रयास करके ही नियंत्रित किया जा सकता है, क्योंकि इसक प्रकोप झुण्ड में फसलों एवं वृक्षों पर होता है।
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