निर्जला एकादशी हिंदू पंचांग के अनुसार ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को मनाई जाती है। यह एकादशी वर्ष 2024 में 17 जून को मनाई जाएगी। इस दिन व्रत रखने वाले भक्त पूरे दिन बिना जल और अन्न का सेवन किए व्रत रखते हैं। निर्जला एकादशी का आरंभ 17 जून को 4 बजकर 43 मिनट से हो जाएगा और 18 जून को सुबह 6 बजकर 24 मिनट तक रहेगी। ऐसे में निर्जला एकादशी का व्रत 18 जून को रखा जाएगा और इस व्रत का पारण अगले दिन सुबह 19 जून को होगा।
निर्जला एकादशी का क्या है महत्व?
निर्जला एकादशी का धार्मिक और आध्यात्मिक दृष्टिकोण से बहुत महत्व है। यह एकादशी सभी एकादशियों में सबसे महत्वपूर्ण मानी जाती है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इस व्रत का पालन करने से व्यक्ति को समस्त एकादशियों का फल प्राप्त होता है। इस दिन भगवान विष्णु की पूजा की जाती है और व्रत रखा जाता है।
यह क्यों है महत्वपूर्ण?
- धार्मिक मान्यता: पौराणिक कथाओं के अनुसार, महाभारत काल में भीमसेन ने इस एकादशी व्रत का पालन किया था। भीमसेन को व्रत रखने में कठिनाई होती थी, इसलिए उन्होंने महर्षि वेदव्यास से परामर्श किया। वेदव्यास जी ने उन्हें निर्जला एकादशी व्रत की महिमा बताई और कहा कि इस एकादशी का पालन करने से सभी एकादशियों का फल मिलता है। इसलिए इसे भीमसेनी एकादशी भी कहा जाता है।
- पुण्य फल: ऐसा माना जाता है कि इस व्रत को करने से व्यक्ति के समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं और वह मोक्ष की प्राप्ति करता है। इस दिन भगवान विष्णु की पूजा-अर्चना करने से विशेष पुण्य प्राप्त होता है।
- स्वास्थ्य लाभ: धार्मिक दृष्टिकोण से हटकर, इस व्रत का स्वास्थ्य पर भी सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। उपवास और जल का त्याग शरीर को विषैले तत्वों से मुक्त करने में सहायक होता है और आंतरिक शुद्धि का कार्य करता है।
इस व्रत को करने का क्या लाभ है?
- पापों का नाश: निर्जला एकादशी व्रत के पालन से व्यक्ति के पापों का नाश होता है और उसे पुण्य की प्राप्ति होती है।
- मोक्ष की प्राप्ति: धार्मिक मान्यता के अनुसार, इस व्रत का पालन करने से व्यक्ति को मोक्ष प्राप्त होता है और वह जन्म-मरण के चक्र से मुक्त हो जाता है।
- धार्मिक संतुष्टि: इस व्रत के पालन से भगवान विष्णु का आशीर्वाद मिलता है और व्यक्ति की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।
- स्वास्थ्य लाभ: यह व्रत शरीर को डिटॉक्स करने में सहायक होता है और उपवास के माध्यम से पाचन तंत्र को विश्राम मिलता है।
इसे कैसे करना चाहिए?
- तैयारी: निर्जला एकादशी व्रत के लिए एक दिन पहले ही मानसिक और शारीरिक तैयारी करनी चाहिए। व्रत के एक दिन पहले सात्विक भोजन ग्रहण करें और अधिक मात्रा में पानी पिएं।
- व्रत का पालन: व्रत के दिन सूर्योदय से पहले उठकर स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र धारण करें। भगवान विष्णु की मूर्ति या तस्वीर के सामने दीप प्रज्वलित करें और पूजा करें। पूजा में तुलसी के पत्ते, फल, फूल, पंचामृत और गंगाजल का प्रयोग करें।
- पूजा विधि: भगवान विष्णु की प्रतिमा के सामने व्रत का संकल्प लें और उन्हें पुष्प, फल, तुलसी दल, और पंचामृत अर्पित करें। विष्णु सहस्रनाम या विष्णु स्तुति का पाठ करें। दिन भर भगवान का स्मरण करते रहें और भजन-कीर्तन करें।
- जल और अन्न का त्याग: व्रत के दिन जल और अन्न का पूरी तरह से त्याग करें। यह व्रत कठिन माना जाता है क्योंकि इसमें जल भी नहीं पिया जाता, लेकिन यह इस व्रत की विशेषता है। यदि स्वास्थ्य कारणों से जल का त्याग संभव न हो, तो थोड़ी मात्रा में जल लिया जा सकता है।
- एकादशी व्रत कथा: व्रत के दिन एकादशी व्रत कथा का पाठ या श्रवण करें। यह कथा व्रत का महत्व और इसके फल की जानकारी देती है।
- संध्या पूजा: संध्या के समय पुनः भगवान विष्णु की पूजा करें और आरती उतारें। इस दिन गरीबों और जरूरतमंदों को दान-दक्षिणा देने का भी विशेष महत्व है।
- व्रत का पारण: अगले दिन द्वादशी तिथि को व्रत का पारण करें। पारण के लिए भगवान विष्णु को पंचामृत और तुलसी दल अर्पित करें और फिर जल और अन्न ग्रहण करें।
निर्जला एकादशी व्रत का पालन करने से व्यक्ति को आध्यात्मिक शांति, पापों से मुक्ति और मोक्ष की प्राप्ति होती है। इस व्रत का धार्मिक महत्व अत्यंत उच्च है और इसे करने से व्यक्ति को कई लाभ प्राप्त होते हैं। कठिन होते हुए भी यह व्रत अनुशासन, समर्पण और आस्था की परीक्षा है, जो व्यक्ति को आध्यात्मिक और शारीरिक रूप से मजबूत बनाता है।
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