नदियों और तालाबों में मुछआरे मछली मारने के लिए जिस नौका का प्रयोग करते हैं, उससे मिलती-जुलती शारीरिक आकृति के कारण ही इसे नौका आसन कहा गया है। नौका आसन दो प्रकार के होते हैं। एक रूकी हुई स्थिर नौका, दूसरी तैरती हुई नौका। अत: यहां दोनो प्रकार की नौकाओं की आकृति वाले योगासन के बारे में जानकारी दी जा रही है।
नौका आसन के लाभ
- पेट की आंतों में चिपका हुआ पुराना मल निकालने में सहायता करता है।
- पेट से कृमि व गैस बनने के कारणों व स्थितियों में सुधार लाता है।
- बोलने में हकलाहट व अशुद्ध उच्चारण के कारणों को दूर करने में सहायक है।
- स्त्रियों के मासिक धर्म तथा गर्भाशय की अशुद्धियां दूर करता है।
- कमर का दर्द व कमर की मांसपेशियों की कमजोरियां दूर करता है।
- रीढ़ की हड्डी को लचीला, पुष्ट व सक्षम बनाता है।
- पैर के अंगूठे से लेकर सिर तक की समस्त मांसपेशियों में बार-बार खिंचाव तथा शिथिलन क्रिया होने से शरीर की मालिश होकर मांसपेशियां मजबूत होती हैं।
- लीवर तथा गुर्दों का अच्छा व्यायाम होने से पाचनशक्ति तीव्र तथा मूत्र रोगों एवं रक्त की अशुद्धियां दूर करने में सहायता मिलती है।
नौका आसन के विशेष लाभ
नौकासन के प्रचलित अभ्यासों के साथ ही प्राणायाम भी सम्मिलित कर लिया जाय तो विशेष लाभों में वृद्धि होती है। श्वास कष्ट दूर होते हैं, मस्तिष्क में व्यर्थ विचारों का जन्म रूकता है। मस्तिष्क की कोशिकाएं स्वस्थ व दीर्घजीवी बनकर वृद्धावस्था में होने वाले विस्मृति रोग नहीं होने देतीं। साथ ही प्राणायाम की इस विधि के कारण शरीर के रोगकूपों तथा बालों की जड़ों तक रक्त-संचार तीव्र होकर लसीका नामक द्रव के निर्माण से समस्त कोशिकाओं को उचित पोषण प्राप्त होता है।
नौका आसन के साथ प्राणायाम की विधि
पैर के अंगूठों से लेकर सिर की मांसपेशियों तक शरीर के प्रत्येक अंग-प्रत्यंग में मृतासन की तरह पूर्ण खिंचाव करते हुए सांस धीरे-धीरे अंदर भरिए। साथ ही शरीर को कमर पर साधकर सिर तथा पैर ऊपर उठाइए। जितनी देर सांस भरने में तथा शरीर ऊपर उठाने में लगी है, उससे चौगुनी देर तक सांस अंदर ही रोककर, सांस भरने की अवधि से दोगुनी देर सांस बाहर छोड़ते हुए शरीर को शिथिल कीजिए। प्राणायाम की इस अवधि के साथ तीन-चार बार नौकासन अवश्य ही कीजिए। प्रत्येक नौकासन के बाद सांस सामान्य होने तक विश्राम और शिथिलन क्रिया भी कीजिए।
विधि
ठोस समतल स्थान पर चौपरत कंबल बिछाकर शवासन में पीठ के बर लेट जाइए। दोनो हथेलियां जांघों पर पास-पास में रख लीजिए। अब धीरे-धीरे श्वास अंदर खींचते हुए कमर के ऊपर का धड़ तथा गर्दन को एक साथ ऊपर उठाते जाइए। गर्दन को भूमि से लगभग एक फुट ऊपर लाकर वहीं स्थिर कर दीजिए। जब तक इसी स्थिति में रहे सकें, रूके रहिए। थकान सी आने पर धीर-धीरे सांस छोड़ते हुए, शरी का तनाव कम करते हुए वापस भूमि पर आइए। थोड़ी देर तक शवासन के समार शरीर शिथिल छोड़कर विश्राम कीजिए। सांस सामान्य होने दीजिए।
इस बार कमर से नीचे के भाग, पैरों की मांसपेशियां को यथासंभव कड़ा कीजिए। धीरे-धीरे सांस भरते हुए दोनो पैर सटे रखकर ही ऊपर की ओर उठाइए। दोनो एडि़यां जब भूमि से लगभग एक फुट ऊपर उठ जाएं तब उन्हें वहीं स्थिर कर दीजिए। इस स्थिति में पेट तथा नाभि के नीचे पेड़ू पर भारी जोर पड़ता है। इसी स्थिति में जितनी ज्यादा से ज्यादा देर तक रूके रह सकते हैं, अवश्य ही रूके रहिए। थकान आने पर सांस छोड़ते हुए अत्यंत सावधानीपूर्वक पैर भूमि पर वापस लाइए। स्मरण रखें कि एडि़यों को जरा भी झटका या चोट नहीं पहुंचनी चाहिए। शरीर को पूरी तरह शिथिल छोड़कर सामान्य होने दीजिए।
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