Sunday, April 20, 2025

शलभासन निराशा की भावना को शांत करने का है उत्तम साधन

टिड्डे या पतंगे को शलभ कहा जाता है। इस आसन में शरीर की आकृति बैठे हुए पतंगे के समान दिखने के कारण ही इसे ‘शलभासन’ कहा जाता है।

शलभासन के लाभ

  • मानसिक चिंताओं, तनाव तथा निराशा की भावना को शांत करने का उत्‍तम साधन है।
  • भूलने की बीमारी को दूर कर स्‍मरण शक्‍त‍ि तीव्र करने लिए उत्‍तम आसन है।
  • तिल्‍ली, प्‍लीहा, मूत्राशय और अग्‍न्‍याशय के रोगों का नाश कर उन्‍हें सबल व सक्षम बनाता है।
  • महिलाओं के गर्भाशय संबंधी रोगों को निर्मूल करने की उत्‍तम विधि है।
  • कमर की मांसपेशियों को क्षीणता तथा कटि-कशेरूकाओं की खराबियों को दूर कर कमर को पूर्णत: स्‍वस्‍थ, सबल व लचीला बनाता है। सभी प्रकार के कमर दर्द में आराम पहुंचाता है।
  • पाचन संबंधी समस्‍त रोगों को दूर कर मलशुद्ध एवं बवासीर आदि में भी लाभ पहुंचाता है।
  • फेफड़ों से तथा श्‍वास रोगों से संबंधि‍त क्षीणताओं को समाप्‍त करने में सहायक आसन है।

आसन करने की विधि

  • विधि-1: चौपरत कंबल बिछाकर उसपर पैर के बल लेट लाइए। दोनों हाथ शरीर से सटे हुए तथा हथेलियां जांघों से चिपकाकर रखिए। ढुड्डी जमीन पर टिकी हुई, नाक और माथा फर्श से ऊपर उठाकर रखिए। सांस अंदर भरते हुए सिफ बायां पैर पर्याप्‍त कड़ा करके यथासंभव ऊपर उठाकर सांस तथा पैर वहीं रोक दीजिए। जब तक आसानी से सांस रोक सकें तब तक पैर भी स्थिर उठा रहना चाहिए। सांस छोड़ते हुए पैर धीरे-धीरे ही नीचे लाइए। अब पुन: सांस धीरे-धीरे भरते हुए ही दाहिना पैर जितना अधिक ऊपर उठा सकें, उठाइए। पैर को तब तक ऊपर उठाए रखें जब तक सांस को बाहर निकालने की जरूरत न हो। पिफर सांस छोड़ते हुए पैर को नीचे लाइए। शरीर को बिल्‍कुल ढीला छोड़कर कुछ देर तक विश्राम कीजिए।

जो स्‍थूलकाय हों, जिनको कमर की रीढ़ के गुरियों में कोई खराबी हो, कमर काफी कड़ी हो, उन्‍हें पहले उपर्युक्‍त अभ्‍यास कर लें तो उन्‍हें भी शलभासन का अधिक लाभ तथा उसमें कुशलता प्राप्‍त हो सकेगी।

  • विधि-2: विधि एक के अनुसार पेट के बल लेट जाएं। दोनों हाथ शरीर तथा जांघों से सटा लीजि‍ए। कुछ लोग हथेलियों को जांघों के नीचे रखते हैं तथा इन हथेलियों के सहारे से जांघों तथा पैरों को ऊपर उठाते हैं। कुछ योगा ट्रेनरों की दृष्‍ट‍ि से यह इसलिए गलत है, क्‍योंकि पैरों के संतुलन का बोझ पेट तथा कमर की मांसपेशियों पर पड़ने के बजाय हथेलियों पर पड़ता है। इस तरह शलभासन से होने वाले लाभ नगण्‍य अथवा शूल्‍य हो जाते हैं।

पेट के बल लेटकर दोनों हथेलियों से, दोनो ओर से जांघों को कस लीजिए। दोनो पैर, घुटने व पंजे आपस में सटाकर खूख कड़ा कर लीजिए। सांस भरते हुए दोनों पैर एक साथ, एक सी स्थिति में ऊपर उठाइए। घुटनों को जरा भी मुड़ने या झूलने न दें। पैरों को कमर से लेकर पंजों तक एकदम कड़ापन और बिलकुल सीधी रेख में रखते हुए ही जितना ऊपर उठा सकें, अवश्‍य ही उठाइए। जब तक सांस अंदर हो रोक सकें, रोके रहें और पैरों को भी स्थिर रखते हुए ही रोके रहिए। सांस छोड़ने की इच्‍छा होने पर अत्‍यंत धीरे-धीरे छोड़ते हुए सांस के साथ ही पैर भी नीचे लाते जाइए। पूरे शरीर को पूर्णत: शिथिल छोड़कर थोड़ा विश्राम करें।

नोट- तीन माह से अधिक की गर्भवती स्त्रियों को यह आसन नहीं करना है।

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