तिलक का कहना था कि पढ़ना-लिखना सीख लेना ही शिक्षा नहीं है, शिक्षा वहीं है जो हमें जीविकोपार्जन के योग्य बनाए, देश का सच्चा नागरिक बनाए और हमें पूर्वजों का ज्ञान तथा अनुभव दे। उन्होंने राष्ट्रीय शिक्षा की जोरदार वकालत की। बंगाल के राष्ट्रवादियों के कार्यक्रम में राष्ट्रीय शिक्षा को अपनाए जाने के पूर्व ही तिलक, आगरकर और चिपलूणकर के मन में इसकी एक रूपरेखा बन चुकी थी।
तिलक का कहना था कि राष्ट्रीय शिक्षा से ही राष्ट्रीय चरित्र का निर्माण हो सकेगा, देशवासी मत-मतान्तरों से ऊपर उठकर संगठित हो सकेंगे और देश की शक्ति बढ़ेगी।
तिलक ने राष्ट्रीय शिक्षा का ऐसा पाठ्यक्रम प्रस्तुत किया जो व्यवहारिक था और देशवासियों के सर्वांगीण विकास में सहायक था। स्वदेशी आंदोलन के दिनों में राष्ट्रीय शिक्षा के लिए उन्होंने महाराष्ट्र में ‘समर्थ विद्यालय’ स्थापित किए थे। तिलक की राष्ट्रीय शिक्षा, भारतीय पद्धति और पाश्चात्य पद्धति, दोनों का समन्वय थी।
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