Sunday, April 28, 2024

द्रुत आसन: धावकों, खड़े होकर काम करने वाले लोगों की क्षमता का करता है विकास

द्रुत का अर्थ होता है तीव्र। दौड़ने-चलने, काम करने, सहनशीलता और अन्‍य क्षमताओं में द्रुत गत‍ि की आकांक्षा करने वालों की पूर्व तैयारी का यह आसन अपनी विशेषता के आधार पर ‘द्रुत आसन’ कहलाता है।

कैसे है उपयोगी

धावकों, पैदल चलने व खड़े होकर कार्य करने वालों की क्षमताओं में विकास करने के लिए यह आसन बेहद उपयोगी है। इसे आधुन‍िक भाषा में ‘जॉग‍िंग’ भी कहते हैं।

आसन के लाभ
  • पैर के सभी जोड़ व हड्ड‍ियां पुष्‍ट तथा सामर्थ्‍यवान् होती हैं। जोड़ गत‍िशील बनते हैं।
  • ज्‍यादा मेहनत करने से श्‍वास की गत‍ि तीव्र हो जाती है, जिससे फेफड़े स्‍वस्‍थ, निरोग व पुष्‍ट होती हैं।
  • पूरा शरीर लचीला, फुर्तीला व अत्‍याध‍िक श्रम के प्रत‍ि सहनशील बनता है।
  • मुख पर लाल‍िमा और चमक आने के साथ ही प्रत्‍येक कार्य में उत्‍साह बना रहता है।
आसन के संबंध में आवश्‍यक निर्देश

कमजोर हृदय वाले तथा हाई ब्‍लड प्रेशर के मरीज इस आसन को नहीं करें। यह आसन हमेशा खुले हवादार मैदान, बगीच या बरामदे में करना चाह‍िए।

आसन की विध‍ि

किसी भी खुले स्‍थान पर लगभग एक फुट आगे-पीछे हो सकने लायक स्‍थान का चुनाव कर लें। ब‍िल्‍कुल सीधे तने हुए खड़े हो जाएं। दोनों हाथ कोहनी से मोड़ते हुए मु‍ट्ठि‍यां भींचकर छाती के सामने कर लें। भुजाएं शरीर के ज्‍यादा से ज्‍यादा समीप रखें, सटाएं नहीं, स्‍वतंत्र रहने दें।

अब बायां हाथ और दाह‍िना घुटना आगे की ओर जांघ की ऊंचाई एक आगे उठाकर शीघ्र ही नीचे जाने दें। तत्‍काल ही दायां पैर और दाह‍िना हाथ पहले की स्‍थि‍त‍ि तक आगे लगाकर बार-बार दौड़ने की क्रिया के समान हाथ तथा पैर ऊपर-नीचे लाएं। ध्‍यान रहे कि दौड़ना तो पूरी ताकत लगाकर ही है, लेकिन आगे की ओर नहीं, अपने ही स्‍थान पर। हर बार पैर ठीक उसी जगह पर वापस आए, जहां से कि वह ऊपर उठा था। दोनों हाथ कोहनी के मुड़े हुए की कंधे से झूलते हुए आगे-पीछे उठते-गिरते रहेंगे।

मुंह बंद रहेगा। अपनी श्‍वास को नाक से ही लें तथा नाक से ही छोड़ें। श्‍वास सीने तथा पेट तक भरें और इन्‍हें पूरा खाली करते हुए निकालें।

समय- द्रुत आसन पांच मिनट से बढ़ाते हुए पंद्रह मिनट तक करना ही स्‍वास्‍थ्‍य के लिए पर्याप्‍त है।

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