Sunday, April 28, 2024

मेरूदंडासन से अपने शरीर को बनाएं लचीला और मजबूत

शरीर विज्ञान के अंतर्गत आप जान चुके हैं कि रीढ़ की हड्डी अथवा मेरूदंड ही शरीर का मुख्‍य आधार तथा नियामक है। इस आसन को ‘मेरूदंडासन’ कहा गया है।

आसन के लाभ
  • मेरूदंड अत्‍यंत लचीला, मजबूत और स्‍वस्‍थ हो जाने से शरीर को मनचाहे ढंग से मोड़ा जा सकता है।
  • मेरूदंड के साथ ही शरीर को अत्‍यंत व्‍यस्‍त मांसपेश‍ियां, अस्‍थ‍ियां व नस-नाड़‍ियां भी स्‍वस्‍थ, पुष्‍ट व लचीली हो जाने से पूरे शरीर में फुर्ती आती है।
  • वृद्धावस्‍था में भी शरीर स्‍फूर्तीवान्, कांत‍िवान् तथा उत्‍साह के भरा-पूरा रहता है।
  • पेट का मोटापा, पेट की झुर्र‍ियां तथा शरीर का मोटापा कम होकर शरीर सक्षम बनता है।
  • उदर रोगों से छुटकार दिलाकर कब्‍ज तथा पाचन शक्‍त‍ि की क्षीणता दूर करता है।
  • आमाशय तथा पेट की आंतों के अनेक रोगों से मुक्‍त‍ि दि‍लाता है।
  • स्‍वप्‍नदोष, शुक्र-तारल्‍य, बवासीर आद‍ि रोगों को भी दूर करने में समर्थ आसन है।
  • मह‍िलाओं को हाेने वाले प्रदर (श्वेत, रक्‍त), प्रमेह व गर्भाशन में होने वाले अनेक रोगों को दूर करने के लिए अत्‍यंत लाभकारी आसन है।
  • कमर के ददर्ज, साइट‍िका और वात रोग होने की आशंका नहीं रहती।

आसन की विशेषता

मेरूदंडासन वास्‍तव में चार आसनों का संयुक्‍त आसन है। रीढ़ की हड्डी को पूर्णत: लचीला, स्‍वस्‍थ तथा सक्षम बनाने के लिए मेरूदंड के ये चारों आसन थोड़ी-थोड़ी देर अवश्‍य कर लेना चाह‍िए। पाद-हस्‍तासन, त्र‍िकोणासन (उत्‍थ‍ित), कट‍ि चक्रासन तथा पृष्‍ठ चक्रासन (अर्द्ध) आद‍ि। यद‍ि 2-3 बार कर लिये जाएं तो पूर्ण मेरूदंडासन हो जाता है।

विशेष निर्देश

आधुन‍िक चिक‍ित्‍सा-विज्ञान की खोजों में मेरूदंड ( स्‍पाइनल कॉड) के ऐसे अनेक रोगों का पता लग चुका है, जिनके कारण रोगी को शेष जीवन अपंग अथवा दूसरों की दवा पर निर्भर रहकर व्‍यतीत करना पड़ता है। ‘स्‍पांड‍िलाइट‍िस’ मेरूदंड की विकृत‍ि, व्‍यवस्‍था में गड़बड़ी, कशेरूकाओं में टूट-फूट, चोट अथवा अप्राकृत‍िक अंतर आद‍ि अनेक कारणों का ही एक नाम है। इस रोग से छुटकारे की कोई सुन‍िश्‍च‍ित उपचार योजना अब तक खोजी नहीं जा सकी है। साधारण व्‍यक्‍त‍ि की बात तो जाने दीज‍िए, अनेक चिक‍ित्‍सक भी इस रोग को ज‍ट‍िलताओं के कारण इसका उपचार करने से कतराते हैं।

निषेध

वास्‍तव में मेरूदंडासन इन ‘स्‍पांड‍िलाइट‍िस’ रोगों के उपचार की यौग‍िक व्‍यवस्‍था है। अत: इन रोगों के लिए ‘योग्‍य’ गुरू के निर्देशन की आवश्‍यकता अवश्‍य ही है। योगासन सिखाने वाले, योगी जैसे वस्‍त्र धारण करने वाले अथवा योग की बारीक‍ियों का विद्वत्तापूर्ण विशलेषण प्रस्‍तुत करने मात्र से ही कोई ‘योग्‍य गुरू’ नहीं बन जाता। शरीर-व‍िज्ञान की बारी‍कि‍यां तथा रोगों की शारीर‍िक क्षमता और सीमा का सूक्ष्‍म ज्ञान जिस गुरू को हो, सिर्फ उसे ही योग गुरू अथवा अध‍िकारी गुरू कहा जाता है। उसका निर्देशन अवश्‍य लें।

पहली विध‍ि

दोनों पैरों के पंजे तथा एड़‍ियां आपस में सटे हुए रखकर सीधे तनकर खड़े हाे जाइए। बायां हाथ कमर पर जमाकर सांस भरते हुए दाह‍िना हाथ स‍िर के ऊपर की ओर इस प्रकार उठाइए क‍ि दाह‍िनी भुजा दाह‍िने कान को स्‍पर्श करती रहे।

दाह‍िने हाथ से सिर को बाईं ओर को दबाते हुए धीरे-धीरे सांस छोड़ते हुए बाईं ओर को झुकते चले जाइए। बाईं हथेली कमर की दाह‍िनी ओर को धकेलते हुए सहारा भी देती रहेगी। बाईं कोहनी इस हालत में ही झुकती हुई पृथ्‍वी पर लंब रूप से सीधी रहेगी। दाह‍िनी और ज‍ितना ज्‍यादा-से-ज्‍यादा तनाव सहन कर सकें, अवश्‍य ही कीज‍िए।

सांस भरते हुए पूर्व स्‍थ‍ित‍ि में वापस लौट‍िए। उठा हुआ हाथ तथा कमर पर ट‍िका हुआ हाथ वापस नीचे की ओर झूलकर शरीर से सट जाएंगे। सांस सामान्‍य चलेगी। कमर के ऊपर सभी मांसपेश‍ियां व कंधे बारी-बारी से उचका तथा गिराकर कुछ क्षण विश्राम की स्‍थ‍ित‍ि में रूकेंगे।

दूसरी विध‍ि

सावधान की स्‍थ‍ित‍ि में तने हुए, पंजे-एड़‍ियां आपस में सटी हुई सीधे खड़े हों। हथेली कमर पर जमा लें। सांस भरते हुए बायां हाथ बाएं कान से सटता हुआ ऊपर की ओर उठा लीज‍िए। सांस धीरे-धीरे छोड़ते हुए दाह‍िन ओर झुकते चले जाइए। बायां हाथ सिर, गरदन व कंधों को दाह‍िनी ओर नीचे दबाता जाए। दाह‍िनी हथेली कमर को बाईं ओर से धकेलती हुई सहारा भी देगी। पूरा सहने योग्‍य तनाव बन जाने के बाद झुकना बंद कर दें। सांस लेते हुए वापर सीधे हो जाइए। दोनाे हाथ नीचे की ओर झूलते छोड़कर कंधों को ऊपर-नीचे उचकाते हुए मांसपेश‍ियों की अकड़न दूर की‍ज‍िए। कुछ देर विश्राम कीज‍िए।

तीसरी विध‍ि

पैर के पंजे आपस में सटे रखते हुए सीधे तनकर सावधान मुद्रा में खड़े होइए। सांस भरते हुए दोनों हाथ सिर की ओर ऊपर उठाकर भुजाओं को कानों से स्‍पर्श करा दीज‍िए। गर्दन तथा कंधें जरा भी इधर-उधर हटे ब‍िना वैसे ही चिपके रखकर, सांस छोड़ते हुए सामने जमीन की ओर झुकते चले जाइए। स‍िर घुटनों की ओर अध‍िकतम समीप रखते हुए हथेल‍ियों से पैर को अंगुल‍ियां स्‍पर्श कीज‍िए। इस विध‍ि में पैरों के पिछले भाग तथा नितंबों, पीठ, गर्दन और हाथों की मांसपेशि‍यों में भरपूर ख‍िंचाव की स्‍थ‍ित‍ि ही इस आसन का उद्देश्‍य है। सांस छोड़ते हुए वापस पूर्ववत् स्‍थ‍ित‍ि में आ जाइए।

चौथी विध‍ि

दोनों पैरों के पंजे-एड़ि‍यां आपस में सटाकर, सीधे तनकर सावधान की मुद्रा में खड़े हो जाइए। सांस भरते हुए दोनों हाथ ऊपर की ओर उइाइए। दोनों भुजाएं दोनो कानों को स्‍पर्श करती हुई सीधी ऊपर की ओर तनी हो। दोनों हथेल‍ियां खुली आमने-सामने हों। दोनों हाथ गर्दन तथा सिर को जरा भी टस-मस न होने दें। इसी स्‍थ‍ित‍ि में पीछे की ओर झुकते चले जाइए। बिना किसी कष्‍ट के ज‍ितना ज्‍यादा से ज्‍यादा पीछे की ओर से नीचे की ओर झुक सकें, शरीर संतुलि‍त रख सकें, झुकते चले जाइए। शूल्‍य सांस की स्‍थि‍त‍ि में जितना देर रूक सकें, अवश्‍य रूकें। बाद में सांस भरते हुए सीधे हो जाएं। सांस छोड़ते हुए हाथ नीचे गिराकर गहरी सांस लेकर मांसपेश‍ियों को विश्राम दें।

चारों विध‍ियों का अभ्‍यास करते हुए, अपने शरीर की मांसपेश‍ियों का सूक्ष्‍म निरीक्षण करते हुए उनपर पड़न वाले खिंचाव और श‍िथ‍िलता का अध्‍यययन कीजि‍ए।

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